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३२२ ] [ मत्स्य पुराण

कुरज्भनयन: श्रीमान्‌ सस्मृतो नपलक्षण: । १०

कृतवीर्य्यस्तदारांध्य सहस्रांशु दिवाकरम्‌ ।

' उपवास ब्रं तेदिव्येर्वेदसुक्तेश्च नारद ! ।

पुत्रस्य जीवनायालभेतत्‌ स्नानमवाप्स्यति ।११

कृतवीय्येंण वे पृष्ट इदं वक्ष्यति भास्करः ।

अशेषदुष्टशमनं सदा कल्मषनाशनम्‌ ।१२

अलं क्लेशेन महता पुत्रस्तव नराधिप ! ।

भविष्यति चिरञ्जीवो किन्तु कल्मषनाशनम्‌ ।१३

सप्तमी स्नपनं वक्ष्ये सवेलोकदिताय वे ।

जातस्य मृतवत्सायाः सप्तमे मासि नारद ! ।

अथवा शुक्लसप्तम्यामेतत्‌ सर्व प्रशस्यते । १४

वह राजा सातो द्वीपों के सहित समस्त भूतल का परिपालन

करेगा । हे नारद ! सतत्तर सहस्न वर्ष पर्यन्त वह॒ पालन करेगा ।८।

उसके भी उत्पन्न मात्र हुए एक सौ पुत्र सबके सव च्यवन के शाप से

विनाश को प्राप्त हौ जा्येगे ।€। जिस समय में उसका पत्र सहस्रबाहु

होगा जो मृगके समानि सुन्दर नेत्रो वाला--श्री से सम्पन्न और सम्पूर्ण

नृप के लक्षणों से युक्त होगा।१०। उस समय में राजा कृतवीयं सहस्नांशु

भगवान्‌ दिवाकर की आराधना करके जो कि उपवास-त्रत और हे

नारद ! दिव्य वेदों-यूक्तों के-द्वारा की गयी धी-पुत्र के जीवन के लिये

यह पर्याप्त स्नान प्राप्त करेगा ।११। राजा कृतवीयं के द्वारा पूछे गये

भास्कर प्रभु इस त्रेत को उसे बतलार्येगे । यह त्रत सम्पूर्णं कल्मषो का

नाश करने वाला और अशेष दुष्टों का भी शमन करनेवाला है ।१२।

भगवान्‌ भूवन भास्कर ने कहा था--हें नराधिप! अब आप यह महान

क्लेश मत करो आपका पुत्र चिरजीवी होगा किन्तु कल्मषो के नाश

करने वाला सप्तमी स्नपनं करना होगा जिसको कि में सब लोगों के

हित संपादन के लिये अभी बतला दूंगा । ट्‌ नारदः! मृतवत्सा स्त्री के