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» पुराण परम पुण्यं भविष्यं सर्वसोख्यदम् +
[ संक्षिप्त भविष्यपुराणाङ्क
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होता है। दक्षिण देशमें स्थित कार्तिकियका जो इस तिथिमें
दर्शन करता है, वह निःसंदेह ब्रह्महत्यादि पापोंसे मुक्त हो
जाता है, इसलिये इस तिथिमें कुमारस्वामीकी सोने, चाँदी
अथवा मिट्टीकी मूर्ति बनवाकर पूजा करनी चाहिये । अपराहमें
स्नान तथा आचमनकर, पासन लगाकर बैठ जाय और
स्वामी कुमारका एकाग्रचित्तसे ध्यान करे। इस दिन
उपवासपूर्वक निम्नलिखित मन्त्र पढ़ते हुए इनके मस्तकपर
कलशसे अभिषेक करें--
अन्द्रमण्डलभूतानां भवभूकिपविश्रिता ।
गड्भाकुमार धारेय पतिता तय मस्तके ॥
(उत्तपर्व ४२१७)
इस प्रकार अभिषेक कर भगवान् सूर्यका पूजन करे,
तदनन्तर गन्ध, पुष्प, धूप, नैवेद्य आदि उपचारोंद्वारा कृत्तिकापुत्र
क्ार्तिकेयकी निम्न मन््रसे पूजा करें--
देव सेनाप्ते स्कन्द कार्तिकेय भवोद्धव ।
कुमार गुह गाङ्गेय शक्तिहस्त नमोऽस्तु ते॥
(उर्व ४२।९)
दक्षिण-देशोत्पन्र अन्न, फल और मलय चन्दन भी
चढ़ाये। इसके बाद स्वामिकार्तिकेयके परमप्रिय छाग, कुकुर,
कलापयुक्त मयूर तथा उनकी माता भगवती पार्वती-- इनका
प्रत्यक्ष पूजन करे अथवा इनकी सुवर्णकी प्रतिमा बनाकर पूजन
करे । पूजनके अनन्तर पूर्वोक्त देवसेनापति तथा स्कन्द आदि
नाम-मनत्रौसते आज्ययुक्त तिलॉसे हवन करें, अनन्तर फल
भक्षण कर भूमिपर कुशाकी शय्यापर शयन करे । क्रमशः
बारह महीनोंमें नारियल, मातुरुँग (बिजौरा नींबू), नारंगी, पनस
(कटहल), जम्बीर (एक प्रकारका नींबू), दाडिम, द्राक्षा,
भक्षण करे । ये फल उपलब्ध न हों तो उस कालम उपलब्ध
फलॉका सेवन करे । प्रातःकाल सोनेके वने छग अधवा
कुक्कुटको “सेनानी प्रीयताम्! ऐसा कहकर ब्राह्मणको दे । बारह
महीनोमिं क्रमसे सेनानी, सम्भूत, क्रौचारि, षण्मुख, गुह,
तथा द्वार--इन नामोंसे कार्तिकेश़्का पूजन करे और नामोकि
अन्तये 'प्रीयताम' यह पद योजित करे । यथा--सेनानी
प्रीयताम्" इत्यादि । इसके पश्चात् ब्राह्मणको भोजन कराकर
स्वये भौ मौन होकर भोजन करे । वर्ष समाप्त होनेपर कार्तिक
मासके शुक्ल पक्षकी षष्ठीको यख, आभूषण आदिमे
कार्तिकेयका पूजन एवं हवन करे और सब सामग्री ब्राह्मणको
निवेदित कर दे।
इस विधिसे जो पुरुष अथवा स्त्री इस व्रतको करते हैं,वे
उत्तम फलक प्राप्त कर इन्द्रलोकमें निवास करते हैं, अतः
यजन् ! शंकरात्मज कार्तिकेयका सदा प्रयल्रपूर्वक पूजन करना
चाहिये। राजाओंके लिये तो कार्तिकेयकी पूजाका विशेष
महत्त्व है। जो राजा स्वामी कुमास्का इस प्रकार पूजनकर
युद्धके लिये जाता है, वह अवश्य ही विजय प्राप्त करता है।
विधिपूर्वक पूजा करनेपर भगवान् कार्तिकेय पूर्ण प्रसन्न हो जाते
है। जो षष्ठीको नक्तत करता है, वह सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त
होकर कार्तिकेयके लोकमें निवास करता है। दक्षिण दिशामें
जाकर जो भक्तिपूर्वक कार्तिकेयका दर्शन और पूजन करता है
वह शिवलोकको प्राप्त करता है। जो सदा शरबणोद्धव
आदिदेव कार्तिकियकी आराधना करता है, वह बहुत कालतक
स्वर्गका सुख भोगकर पृथ्वीपर जन्म ग्रहण करता तथा
चक्रवर्ती राजाका सेनापति होता है ।
आप्र, बिल्व, आमलक, ककड़ी तथा केला--इन फलोका (अध्याय ४२)
न्नव
विजयासप्तमी-त्रत
युधिष्ठिरे पुषठा--देव ! विजया-सपमी तरतमे किया हुआ खान, दान, जप, होम तथा उपवास आदि कर्म
किसकी पूजा की जाती है, उसका क्या विधान है और क्या
फल है ? इसे आप बतलानेकी कृपा करै ।
भगवान् श्रीकृष्ण योले-- राजन् ! शुक्ल पक्षकी
सप्तमी तिथिकों यदि आदित्यवार हो तो उसे विजया सप्तमी
कहते है । वह सभी पातकका विनाश करनेवाली है । उस दिन
अनन्त फलदायक होता है । जो उस दिन फल, पुष्प आदि
लेकर भगवान् सूर्यकी प्रदक्षिणा करता है, यह सर्वगुणसम्पन्न
उत्तम पुत्रको प्राप्त करता है। पहली प्रदक्षिणा
नारियल-फलोंसे, दूसरी रक्तनागरसे, तीसरी बिजौर नौंबूसे,
चौथी कदलीफलसे, पांचवी श्रेष्ठ कृष्माप्डसे, छठो पके हुए