आउन्त्यलण्ड रेवा-सखण्ड ] # दान, पुण्य, शिवध्यान और नर्मदासेवनसे मरकसे उद्धार #
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फटकारते £, उनके महम आर-अर शाद् भरकर पानीसे
सींचा जाता है | तदनन्तर स्वरा और गरम जल भरा
जाता है । फिर खौलते हुए तेलको उदे दिया जाता टे ।
यमदूत उन प्रापियोंके पेर पकड़कर कौड़ोंसे भरी हुई विष्ठापर
} फिर सींगते दवाकर उन्हें लोके शाहमलि वृक्षे
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किसके दानरा अनुमोदन ही किया है, वे मुद्गरोंसे
करके ईखकी तरह पेरे आते हैं । घोर अनिताल बनमें
खण्ड करके काटे अते हैं। उनके सब अङ्गम सुई
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नहीं रहती, ऐसी जयोति यमदूत कहते हैं- धअरी !
अब तू क्यो जल्दीसे भागी जा रही है ! स्मरण है
या नहीं, तूने अपने पतिफों घोर दिवा था ओर एक प्रापान्थ
परपुरुषकों सुखपूर्यक गछेसे छगाया था १, ऐसा शदकर
वे उन्हें छोहकुम्म नामक नरक फेंक देते हैं और धीरे-चीरे
पते हैं । कमी उन्हें प्रज्वलित अगि राधते हैं, तमशित्मऑपर
बिठाते हैं; अंधेरे कुएँमें डाछते हैं और अजगर सर्पोंद्गारा
डेसाते रै । ओ धर्मश्च उपदेश देने महात्मा आचार्यकी
निन्दा करते हैं; शिवभक्त, ब्राह्मण तथा सनातन शिवधर्म.
पर दोषारोपण करते हैं, उनकी छाती, कण्ठः जिङाः
झरीरकी सन्धयो तथा दोनों ओठोंमें कोटी ठोंककर यमघूत
उन्हें कील देते हैं ।
इस प्रफार पापाचारी पुरुषोंक़ों यमल्मेकर्मे बढ़ी भयानक
यातनाएँ दी जाती हैं । एक-एक नरकूमें सैको और सहसा
प्रकारकी ऐसी यातनाएँ जाननी चाहिये, जो समस्त पापकर्मियों को
प्राप्त होती हैं। सम्पूर्ण नरको ऐसी-ऐसी अनन्त पीढ़ाएँ
भोगनी पढ़ती हैं । अपने-अपने कमेत नरकॉमें गिरये हुए
पापी जीव ऋमशः सभी नरकोंमें पकाये जाते हैं । महापातकी
मनुष्य सब नरको चन्द्रमा ओर नक्षत्रोंकी स्वितिफारूतक
अनेद्यने यमदूत दवारा पीड़ा भोगते रदते हैं। यही दधा
पातकियोंकी भी होती है | उपातकि्योको इनसे आधी
यातना प्रास होती दै । तात युधिष्ठिर ! कव किसकी मृत्यु
हो जायगी, यह शत नहीं होता और अस्मात् यदि
मृत्यु आ गयी तो कौन मनुष्य यहाँ वर्ष या दिन पा
सकता है | फिर तो सय कुछ छोड़कर अकेले ही परलोककी
यात्रा करनी पढ़ेगी। इसकिये पूणं प्रयक्ष करके सत्यधर्म-
परायण होओं । यह सच नस्कोंका छक्षण तुससे बताया गया।
दान, पुष्य, शिवध्यान और नर्मदासेवनसे नरकसे उद्धार होनेका तथा संसारसे वैराग्यका उपदेश
युधिष्टिस्ने पूछा--5ने ! किस धर्मके द्वारा इस परम
दुस्तर संसार-सागरकों पार किया जा सकता है !
सुनता । सम्पूर्ण कामनाओं और प्रयोजनोंकों सिद्ध करने-
बाछे भगवान् दाझुरके ध्यानमें बह अज्ञानवश कष्ट मानने
लगता ६ । बाल्लवमे भगवान् शिवका चिन्तन ही नरकसे
छुड़ाकर अपना परम अद्भुत कल्याण करनेवाला है। जो
अम्बूदीपमें आकर मनुप्य-्योनिममें जन्म छेता दै, तथापि
नर्मदादेबीकी शरणमे नहीं जाता; बह भाग्यदीन है। इस
संसारम पाफ्ते वूपित चित्तवाले मनुष्योंफो उत्तम गति
देनेबाली न्मदासे बदृकर दूसरी रौन नदी है ! जो पाप-
दारिणी महादेवी नर्मदाका ध्यान करते ई, उनकी पापराशि
नष्ट हो जाती है । ओ नर्मदाकां मनसे सरन और वाणीदवारा
कीर्तन करता है। शरद परलोक्मे आनेपर यमदूतोंद्वारा पीढ़ित
नहीं होता । नस्कम स्थित दोनेपर भी जो नर्मदा नदी एवं