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आता है। अन्तरेण पद भी मध्य अर्थका वाचक

है। प्रसद्य शब्द हठका बोध करानेवाला है।

साम्प्रतम्‌ और स्थाने शब्द उचितके अर्थमें तथा

"अभीक्ष्णम्‌" ओर शश्वत्‌ पद सर्वदा-निरन्तरके

अर्थे प्रयुक्त होते है । नहि, अ, नो और न--ये

अभाव अर्थके बोधक हैं। मास्म, मा और

अलम्‌-इनका निषेधके अर्थे प्रयोग होता है।

चेत्‌ ओर यदि पद दूसरा पद उपस्थित करनेके

लिये प्रयुक्त होते हैं तथा अद्धा ओर अज्जसा-

ये दोनों पद वास्तवके अर्थमें आते है । प्रादुस्‌

और आविर्‌-इनका अर्थं है प्रकट होना। ओम्‌,

एवम्‌ और परमम्‌- ये शब्द स्वीकृति या अनुमति

देनेके अर्थमे प्रयुक्त होते हैं। समन्ततः, परितः,

सर्वतः और विष्वक्‌--इनका अर्थ है चारों ओर।

“कामम्‌' शब्द अकाम अनुमतिके अर्थमें आता

है। "अस्तु" पद असूया (दोषदृष्टि) तथा स्वीकृतिका

भाव सूचित करनेवाला है। किसी बातके

विरोधमें कुछ कहना हो तो वहाँ 'ननु' का प्रयोग

होता है। “कच्चित्‌' शब्द किसीकी अभीष्ट

वस्तुकी जिज्ञासाके लिये प्रश्न करनेके अवसरपर

प्रयुक्त होता है। निःषमम्‌ और दुःघमम्‌--ये दोनों

पद निन्द्य अर्थका बोध कराते हैं। यथास्वम्‌

और यथायथम्‌ पद यथायोग्य अर्थके वाचक हैं।

मृषा एवं मिथ्या शब्द असत्यके और यथातथम्‌

पद सत्यके अर्थमें आता है। एवम्‌, तु, पुनः, वै

और वा--ये निश्चय अर्थके वाचक हैं। प्राक्‌"

शब्द बीती बातका बोध करानेवाला है। नूनम्‌

और अवश्यम्‌-ये दो अव्यय निश्चयके अर्थमें

प्रयुक्त होते हैं। “संवत्‌' शब्द वर्षका, "अर्वाक्‌"

शब्द पश्चात्‌ कालका, आम्‌ और एवम्‌ शब्द

हामी भरनेका तथा स्वयम्‌ पद अपनेसे-इस

अर्थका बोध करानेवाला है। “नीचैस' अल्प

अर्थे, “उच्चैस्‌' महान्‌ अर्थमें, 'प्रायस्‌' बाहुल्य

अर्थमें तथा 'शनैस्‌” मन्द अर्थमें आता है। 'सना'

शब्द नित्यका, “बहिस्‌' शब्द बाह्यका, * स्म'

शब्द भूतकालका, “अस्तम्‌' शब्द अदृश्य होनेका,

*अस्ति' शब्द सत्ताका, 'ऊ' क्रोधभरी उक्तिका

तथा “अपि' शब्द प्रश्न तथा अनुनयका बोधक है।

“उम्‌' तर्कका, "उषा" रात्रिके अन्तका, “नमस्‌'

प्रणामका, "अङ्ग पुन-अर्थका, "दुषु" निन्दाका

तथा सुषु ' शब्द प्रशंसाका वाचक है । 'सायम्‌'

शब्द संध्याकालका, ' प्रगे" ओर "प्रातर्‌" शब्द

प्रभातकालका, ' निकषा" पद समीपका, 'ऐषम:'

शब्द वर्तमान वर्षका, ' परुत्‌" शब्द गतवर्षका

और ' परारि" शब्द उसके भी पहलेके गतवर्षका

बोध करानेवाला है। आजके दिन" इस अर्थे

*अद्य'का प्रयोग देखा जाता है। पूर्व, उत्तर,

अपर, अधर्‌, अन्य, अन्यतर और इतर शब्दसे

'पूर्वेऽदहि " (पहले दिन) आदिके' अर्थे “पूर्वेद्युः '

आदि अव्ययपद निष्पन्न होते हैं। "उभयद्युः '

और "उभयेद्युः '- ये “दोनों दिन *के अर्थमें आते

हैं। “परस्मिन्नहनि' (दूसरे दिन)-के अर्थे

“परेद्यवि'का प्रयोग होता है। 'हास्‌' बीते हुए

दिनके अर्थे, ^ श्वस्‌" आगामी दिनके अर्थमें तथा

"परश्चस्‌' शब्द उसके बाद आनेवाले दिनके

अर्थमें प्रयुक्त होता है। तदा' "तदानीम्‌" शब्द

“तस्मिन्‌ काले" (उस समय)-के अर्थे आते है ।

“युगपत्‌” और “एकदा'का अर्थं है-एक ही

१, यहाँ ' आदि" शब्दे उत्तर आदि शब्दोंका ग्रहण होता है ~ जैसे उत्तरस्मिन्नढ़ि, अपरस्मिन्नड़ि, अन्यस्मिल्नाननि, अत्यतरस्मित्नहनि

तथा इतरस्मिन्नहनि ।

२. " आदि ' शब्दसे " उक्तेः ', ' अपरेघुः', 'अयरघुः', ' अन्येशुः', ' अन्यतरेधु:' तथा “ इतरेद्युः '- इव अच्यय- पोका ग्रहण करता

चाहिये ।

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