आपन्त्यलण्ड-अवश्तीक्षेत्र-माहारम्य] # छडडुकणिय गणेश,कुखुमेश्वर,मार्कण्डेयेश्वर सादिका मादात्म्य $ ७१३
का दर्शन करे । तत्पश्चात् शब्बोदारतीर्थमें क्रान करके पुनः
उन्हीं दोनोंका दर्शन करे । उसके बाद कुण्डम श्ञान करके
गोविन्दकी पूजा करें। फिर चक्री और शङ्खी भगवानका
दर्शन करके युगछ अङ्कपादो ( चरणचिट्दों ) का दर्शन करके
विश्वरूप दर्शन करे | विश्वरूपके आगे करीकुष्डमें विधि-
पंक श्ञान करनेके पश्चात् पयत् बलराम और भीङृष्नका
दर्शन करे । तदनन्तर पुनः कुष्डमें कान करके गोबिन्दजीफी
पूजा करे । उसके याद चक्रधारी श्रीकृष्ण और बलरामका
दर्शन करके केशकके समीप आय | शिप्राके जछमें ज्ञान
करके मनुष्य भक्तिपूर्वक केशवकी पूजा करें| फिर बोधि
अङ्कणद्मे लमैटकर वहीं राजि भ्यतीत करे। प्रातःकार ज्ञान
आदिषे पवित्र हो वक उत्तम त्तका पालन करनेवाले पाँच
ब्राप्मणोकों भोजन करावे । जो पुरुष द्वादशीकों उफ्वास करके
चन्दन) पुष्य, धूप तथा भाँति-मातिके नेवेचोद्ारा अह्डपादजी-
की पूजा करता है तथा ओ यहाँ भाद करता दै, बद शेव
बैकुण्ठधाममें निबा करता है ।
नाता3्यल्च्3 की दक-क-
लड्डुकप्रिय गणेश, कुसुमेश्वर, माऊ्डेयेशर, अक्षाणी देवी, अक्षेथर, यज्ञवापी, रूपकुण्ड, अनङ्गे
श्वर तथा सोमेश्वरका
माहात्म्य
सनत्कुमारणी कहते हैं--देशताओंने शश्रे
विराज गणेशजीकी पूजा की थी, ले यहाँ गणेशजी
खडबुऋप्रियके नामसे प्रसिद्ध हैं। जो भक्तिपूर्वं विप्रराज
गणेशजीकी पूजा शूरता दै, उसे कभी विप्नका सासना नहीं
करना पढ़ता । गणेदाजी सन्तुष्ट होकर उस पुरुषकी सम्पूर्ण
झामनाएँ पूरी कर देते हैं । चतुर्थीकों केबछ रातमें भोजन
करनेका वत लेकर विशेषतः शिप्रा नदीसें स्नान करके रक्त बस्न
चारण करे ओर राड घन््दनके जएसे मन्यरोधारणपूर्यफ
गणेशजीको स्मान रावे । पिर लाख चन्दनका अनुखेपन
रके व्यार फूलोंसे उनकी पूजा करे । धूप और उत्तम गन्धे
निवेदनं श्रे । नैवे व्शद्भुओंफा भोग लगाये । जो ऐसा
करता है; वह सूत्युके पश्चात् शिवधामकों जाता है ।
जो मुरशारमें देवदानववन्दित कुसुमेशवर सिब्को भ दाः+
पूजा करता है, बद शिवल्टोंकम आनन्दफा अनुभय करता
है । जो देवाधिदेव जयेश्वर मददियका दर्शन करता है
यह सब फापोसे क्रिज़पी दोता दे और अस्तमें [६ चको
जाता दे | यदि मनुष्य रिबद्यारम धिवचिङ्गका अर्थन हरे
तो विमानद्वारा दिव्यडोकफों जाता दे और गणपतिफ्रा पद
प्रा करता ६ । पूर्वकाल्मे महामुनि माइष्डेयजीन जदों
बढ़ी भारी तपस्पा की यी) श्रहाँ सगवान् शक्करक्ा दर्शन
करके मनुष्य वाजय यजा पाठ पाता हैं ओर यह सब
पापोंसे शुद्ध शेः दीघांयु परता दे । जहां इस्याहिनी
अह्याण देवी छित ई, षह मदास्यान अचरन्त पुरीम बहुत ङ्घ
माना गया है। दे भक्तोंकी आशा पूर्ण करती तथा जैसे
माता अपने पुत्रका पालन करती दे, उसी प्रचर भर्त.
का पालन करती ट; श्व प्रकारकी सिद्धि देनेवानी जन
स्कन्द् पुराण २७--
इंसयादिनी देषीका गन्ध, पुष्प और र वेदाय पूजन करे ।
ओ अह्षसरोवरमें स्नान करके ब्रह्ेश्वर रिव दर्शन करता
है। वद संशार-न्धनते मुक्त हो त्र््ये्मे आनन्दा
अनुभव करता है । जहाँ प्झ्माजीने यश किया था, उस
स्थानपर यज्षफे लिये जो कुष्ड बनापा गया था, उसका
नाम यशयापी है। उसमें स्नान करके पवित्न हो जो पशुपति-
का दर्सन करता है; बई पश्चपोनिमें पढ़े ईए पितरोका भी
उद्धार कर देता है और स्ययं शियल्ोकर्म जाता दै, जहाँ
साक्षात् महेश्वर निवास करते हैं। रूपकुण्डमें स्नान करके
मनुष्य रूपवान् होता है । जो अनज्ञकुष्डमे स्नान करके
अनङ्ग ( यमदेव ) द्वारा पूजित अनन्ञेश्वर महादेवकी पूजा
करता है, वह मनोवाड्छित कामना प्रास करता है और
मरनेके बाद धिवधामफो जाता है। जो ्रीकुण्डमे नड़ाकर
मसंगयान् बिश्वरूपका पूजन करता दे, बढ स पाणोंसे शुक्त
दो विप्णुलोफकों जाता दे । ओ मनुभ्य अयागन्धमे स्नान
करके अंक्षेश्घर दिष्य दर्शन करता है, यह ब्रह्माहत्याके
खमान पापोफों तत्फाछ नह कर देता है। ओ चक्रतोर्यमें
स्नान करके चकस्थामीफी पूज फरता ट, वद इस प्रृष्वापर
न्वतं राजा हता है । जो विधिपूर्वफ स्नान करके षिदधेश्वर-
का दर्शन करता दै, बह इन्छानुखार चलनेवाके विमानके
दारा झद़छोकनें जाता ई । ओ मनुष्य सोमयतीमें स्नान
ररे सोे्वर शिवका पूजन करता दै, दह चन्द्रमके
नमान निर्मल शो चन्द्ररोकमे आनन्द भोगता हैं ।
व्यारूजीने पूछा--मगवन् ! रोमवतौरीरथं और
भोनिश्वर लित़फा प्राकक्ा छिस प्रकार दा, इसको मे
यथार्थरूपसे तुनना चाइता हूँ ।