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२४१ गोप्च्री-सद्गति प्रदान करके खक्की रक्षा करनेवाली;

२७२ गशगनगामिनी-आंकहाशगामिनी ।#

२४२ गोअप्रथद्धिनी-पर्यतोंसे निररं आदिका जल

पाकर यद्नेवाली अथवा अपने भक्तोंकां गोत्र ( वंश )

बदानेवाली, २७४ शुष्या-उत्तम

२४५ गुणातीता-तीनो गुणोंसे से, २४६ गुणाघ्रणीः-सदरुणो `

के कारण अग्रगण्य, २४७ गुहाम्विको-स्वन्दकी माता,

२9८ गिरिसुता-दिमवानक़ी पुत्री, २४९ गोषिन्वाखघ्नि

समुद्भधवा-भीषिष्णुके चरणोंसे प्रकट हुई ।|

२५० “प्रशंसा या गणना करने-

योग्य उत्तम चरिश्रयाली; २५१ गायती-अपना गुणगान करने-

धची रक्षा कलैयाली अधवा गायत्रीदेषीस्वरूपा,

२५२ गिरिकाप्रिया-भरावान्‌ दिवकी कलमा, २५३ गु

रूपा-छि हुए दिव्य स्वरूपवाली, २५४ गुणवती -दान्ति

आदि उत्तम शुसि युक्त, २५५ शुर्वी-गौरवमवीः

२५६ गौरयवर््धिनी-महत्त्व बदानेबाली अथवा स्वयं ही

गौरवसे बदनेवाली ।‡

२५७ ग्रहपीडाहरा-अनिष्ट स्वानोर्मे सित प्रहोंफी

पीड़ा दूर करनेवाली, २५८ गुन्द्रा-“गु अर्थात्‌ अविधाका

द्रावण--नाश करनेवाली, २५९ शरप्ी-किफ्का प्रभाव दूर

करनेवाली, २६० गानवस्सछा-संगीतप्रिवा; २६१ घर्महन्त्री -

शासक! कष्ट नियारण करनेवाटी, २६२ घृतवती-

घीक़े समान गुणकार जछवाड्टी, २६३ (सतुष्टिप्रदायिनी-

अपने जच्ते ही पीडे समान सन्तोष देनेवाडी ।१

२६४ घण्टारघप्रिया-धष्टानादसे प्रसन्न होनेबाली,

२६५ घोराधौधविध्यंसकारिणी-भपहर पापराशिफा

विनाश करनेयाली, २६६ श्लराणतुप्टिकरी-आेन्द्रियफो

छन्तु करनेवाी, २६७ घोषा-अपने प्रवाद और तरङ्गे

कुछ-कछ शब्द करनेवाठी, २६८ घनानन्वा-पनीभूत

* रक्वारौ गर्मशमनी. गतिश्रष्टणतिप्रदा ।

ओमती युदयका गोर्ोप््ी गगनगाभिनी ॥

† नोकपवद्धिनौ गुण्या शु्कतौतो शुभाग्रणों: ।

गुहाम्क्कि गिरि्ता ब्रोकित्दाशतिससुद्गगा ॥

| य्रणनोयचरित्रा च गायत्री गिरिशत्रिया ।

गृहरूपा गुनवती गुरी मौरबदर्डिनी ॥

६ अददीयद गुन्दा गरश्री यानबत्सछा ।

बमदसौ हतवती शतदचिमदाधिनी ॥

# धारणं व्रज सदां स॒त्युंजयमुमापतिम्‌ #

[ संक्षिप्त स्कन्दपुयण

आनन्दी राशि अथबा आफाशगज्ञार्मे स्पित ज्ये मेषोंकों

२७५ चृणाबती-दयाह्॥ २७६ घृणनिधिः-दया-

सागर, २७७ थस्मरा-सब कुछ भक्षण कंरनेवालो

२७८ घूकनादिनी-तटपर उद्क और वक आदि पक्षियोंके

शब्दसे युक्त, २७९ घुस्रणापि अरतनुः-कुझ्रुम) केशर आदिसे

चर्वित होनेके कारण क्िश्वित्‌ पीछे अक्षोषाली, २८० घर्घरा-

घाषरानदीस्वरूपा, २८१ धर्धरस्वना-पर्पर ध्वनिसे युक्त ।ई

२८२ बन्द्रिका-चस्द्रधभास्वरूपा, २८३ चन्द्र-

कान्ताग्बु+-चन्द्रमाके समान श्वेत जछवाली अथवा चन्द्र

कान्तमणिके समान निर्मछ जछयाछी, २८४ चआदापा'

चच्चछ जरवाखी, २८५ चलछ्दतिः-विदुत॒स्वरूपा

२८६ चिस्मयी-शानत्वरूपा/ २८७ चितिरूपा-चतन्य

स्वमाया, २८८ अम्द्रायुतशतानना-दस दल चन्द्रम जके

समान मनोरम मुखवाली ।ई

२८९ चाम्येयकोचना-चस्पाके अके समान सुम्दर

नश्नोवाली, २९० खारुः-मनोशरिणी, २९१ चार्वज्वी-

परम सुन्दर अङ्गौवाली, २९२ खाख्गामिली-मनोदर चारते

बलनेवाली, २९३ लखाया-धरण उेनेवोम्प, २९४ चारित्न-

निखया-खदाचारा आशय, २९५ चिश्ररृत्‌-भद्रुत फार्य

करनेवाली, २९६ चित्ररूपिणी-विचित्र रूपयास्टरी |

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