आ्यखण्ड-्ह्मो्रखण्ड ] # प्रवोषमें शिवपूजनकी अयदेऊनासे वोषकी प्राप्ति #
चकित हो परमानन्दमें द्भव रहे। तत्यश्रात् उन्होंने नेज्ोंसे
यमके आँसू बहाते हुए. भ्वाल्निके उस वाको हदयस
ङ्गा लिया । भगवान शियके इस अदुभुत माहात्म्यकी चर्चा
समस्त पुरयासियोम बढ़े येगसे फैली और यदी कहते-सुनते
वह रात मानो क्षणमरमें व्यतीत हो गवी ।
युद्धके लिये आये हुए और नगरकों चारो ओरते वेर.
कर खड़े हुए. राजाओंने भी मातःकाक दूतोंके मुखते यह
परम अद्भुत समाचार सुना । सुनते ही उनके मनसे वैरभाव
निकल गया । उन्होंने सहसा हथियार ढाल दिये और
चकित होकर भष्राज चन्द्रसेनकी आज्ञासे नगरम प्रवेश
किया । उस रमणीय नगरीमें प्रवेश करके भगवान् मेहाकाल-
क्रो प्रणाम करनेके पश्चात् सब राजा उस स्वालिनफे घरपर
आये । यहाँ राजा चस्द्सेनने आगे यदुकर उनका श्वागत
किया । ये बहुमूल्य आसनॉपर केठे और प्रीतिपूर्यक विस्मित
एवं आनन्दित हुए, । गोप-बालकपर कृपा करनेफे लिये स्वतः
प्रकट हुए. शिवालय और सियक्तिज्ञका दर्शन करके सब
राजाओंने भगवान् शिवक्ों अपनी उत्तम बुद्धि समर्पित की,
उनमें भक्तिपूर्वक मन छगाया ।
इसी समय सब देवताओंसे पूमित परम तेजस्वी बानर-
राज इसुमानओ रं प्फ हुए। उनके अति ही सब
राजाओंने यद बरेगसे उठकर भक्तिभांवसे विनीत हो उन्हें
नमस्कार क्रिया । तय्र इनुमानजीने ऋटा--'राजाओ ! भगवान्
प््रीकर› नामसे विख्यात होगा |?
अक्ञनिनन्दन हनुमानजी ऐसा कफर उस गोपबाखक-
को शिषोपाखनाके आचार-ब्यवद्यास्का उपदेश दे वहीं
अन्तर्धान दो गये । वे सब राजा इर्पमे भरकर महाराज
चन््द्रसेनकी आज्ञा ले जैसे आये थे वैते दी कौट गये । महा-
तेजस्वी भीकर भी दनुमान् जीका उपदेश पाकर धर्मश ब्राक्षणोके
साथ दङ्करजीडी आराधना करने रगं । समवानुसार मक्त
श्रीकर गोप तथा राजा चन्द्रसेन दोनोंने भक्तिपूर्क शिवी
आयष्वना करके परम पद प्रा किया । यह परम पवित्र
उपाख्यान कश गया । यह् गोपनीय रदस्य दै, सुयश एवं
पुष्यस्चमृदधिष्ठो वदनेषाछा है तया गौरीपति भगवान् शिवके
चरणारविन्दे भक्तिभावकी शृद्धि और पापरािका निवारण
करनेबाका दै ।
्रदोपमे शिवपूजनकी अवद्ेलनासे दोषकी प्राप्तिके प्रसंगमे विदर्भराज और उसके पुत्रकी कथा
सूतजी कहते हैं--त्रयोदशी तिथिमें सावंहाछ प्रदोष
कहा गया है। पदोपके समय महादेवजी कैछासपर्वतके रजत-
भवनमें सत्य करते हैं. और देखता उनके गुणोंका सवन
करते दें । अतः धर्म, अर्थ, काम और मोक्षकी इच्छा रखने-
बाछे पुरुषोंक्ों प्रदोषमें नियमपूर्वक भगवान् शिषकी पूजाः
होम, कथा और गुणगान करने चाहिये । दरिद्धताके
तिमिरते अन्धे जीर भक््तागरमें डूबे हुए. संसास्भयसे भीर
मजुध्योंके छिये यह पदोपमत पार छंगानेषाली नौका है।
भगयान् शिवकी पूजा करनेसे मनुष्य दरिद्रता, सृत्यु-दुश््ध
और पर्वतके समान भारी ऋण-भारको शीघ्र ही दूर करके
सम्पतौ पूजित होता दै ।
विदर्भ देशामें सत्यरथ नामस प्रसिद्ध एक राजा ये; जो
सब धमे व्र; धीरः सुखी और खत्पप्रतिश ये । धर्म.
पूर्यक पृथ्वीका पालन करते हुए. उनका बदुत-सा समय सुख-
पूर्वक बीत गवा | तदनन्तर शाल्व देशके राजाओंने विद.
नगरपर आक्रमण करके उसे चारौ ओरसे चेर लिया । अपनी
पुरीको शतरुभोलि घिरी हुईं देल विदर्भराज विज्ञा सेना साथ
केकर युद्धके छिये आये । वल्न्मत्त शाल्वदेशीय क्षक्रिपेके
साथ राजाका अत्यन्त मयर युद्ध हुआ । गाल्वोौकी हुत
बड़ी सेना मारी गयी; परंतु अन्तम विदर्मराज भी उनके
दाथसे मारे गये । मन्त्रोदित उख महारथी चीर राजाके
मरि जानेपर मरनेसे बचे हुए. सैनिक भाग खड़े हुए । उस
समय गरिदर्भराज सत्परय्की एक पतिव्रता नी अत्यन्त शोक-
ग्रस्त हो रातके समय राजभषनसे निकलकर पभम दिदाकी
ओर चछी गयी । वह् गर्भवती थी । सवेरा होनेपर धीरे-धीरे
मार्गसे जाती हुई उस साज्वी रानीने बहुत दूरका रास्ता ते