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सृष्टिखण्ड ]

यदुवेके अन्तर्गत क्रोौष्ठ आदिके वंशा तथा श्रीकृष्णावतारका वर्णन «

डए

नामके प्रसिद्ध राजा हो गये हैं, वे अपने पिताके कनिष्ठ

पुत्र थे। उनसे दिनि नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । अनमित्रसे

वृष्णिवीर युधाजित्क भी जन्म हुआ । उनके सिवा दो

वीर पुत्र ओर हुए, जो ऋषभ और श्चत्रके नामसे विख्यात

हुए । उनमेंसे ऋषभने कादिराजकी पुत्रीक पत्नीके रूपमें

ग्रहण किया । उससे जयन्तकी उत्पत्ति हुई। जयन्ते

जयन्ती नामकी सुन्दरी भार्याके साथ विवाह किया ।

उसके गर्भसे एक सुन्दर पुत्र उत्पन्न हुआ, जो सदा यज्ञ

करनेवाला, अत्यन्त धैर्यवान्‌, दाखन्ञ और अतिथियोका

प्रेमी था। उसका नाम अक्रूर था। अक्रूर यज्ञकी दीक्षा

ग्रहण करनेवाले और बहुत-सी दक्षिणा देनेवाले थे।

उन्होंने रन्नकुमारी दैब्याके साथ विवाह किया और उसके

गर्भसे ग्यारह महाबली पूरको उत्पन्न किया। अक्रूरने

पुनः शूरसेना नामकी पत्नीके गर्भसे देववान्‌ ओर उपदेव

नामक दो और पुत्रोंको जन्म दिया। इसी प्रकार उन्होंने

अश्विनी नामकी पत्नीसे भी कई पुत्र उत्पन्न किये।

(विदूरथकी पत्नी] ऐक्ष्वाकीने मीदुष नामक पुत्रको

जन्म दिया। उनका दूसरा नाम दुर भी था। ज्रने

भोजके गर्भसे दस पुत्र उत्पन्न किये। उनमें

आनकदुन्दुभि नामसे प्रसिद्ध महाबाहु सुदेव ज्येष्ठ थे।

उनके सिवा दोष पुत्रक नाम इस प्रकार हैं--देवभाग,

देवश्रवा, अनाधृष्टि, कुनि, नन्दि, सकृद्यशाः, इयाम,

समीदु और दौसस्यु । शूरसे पाँच सुन्दरी कन्या भी

उत्पन्न हुई, जिनके नाम हैं--श्रुतिकीर्ति, पृथा, श्रुतदेवी,

श्रुतश्रवा और राजाधिदेवी । ये पाँचों वीर पुत्रोंकी जननी

थीं। श्रुतदेवीका विवाह वृद्ध नामक राजाके साथ हुआ।

उसने कारूष नामक पुत्र उत्पन्न किया। श्रुतिकीर्तिने

केकयनरेशके अंशसे सन्तर्दनको जन्म दिया। श्रुतश्रवा

चेदिराजकी पत्नी थी। उसके गर्भसे सुनीथ (शिशुपाल)

का जन्म हुआ। राजाधिदेवीके गर्भसे धर्मकौ भार्या

अभिमर्दिताने जन्म ग्रहण किया। झूरकी राजा

कुन्तिभोजके साथ मैत्री थी, अतः उन्होंने अपनी कन्या

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पृथाको उन्हे गोद दे दिया। इस प्रकार वसुदेवकी बहिन

कुन्तिभोजकी कन्या होनेके कारण कुन्तीके नामसे

प्रसिद्ध हुईं । कुन्तिभोजने महाराज पाण्डुके साथ कुत्तीका

विवाह किया कुन्तीसे तीन पुत्र उत्पन्न हुए्‌-- युधिष्ठिर,

भीमसेन और अर्जुन । अर्जुन इन्द्रके समान पराक्रमी है ।

वे देवताओकि कार्य सिद्ध करनेवाले, सम्पूर्ण दानवॉके

नादाकं तथा इन्द्रक लिये भी अवध्य हैं। उन्होंने

दानवॉका संहार किया है। पाष्डुकी दूसरी रानी माद्रवती

(माद्री) के गर्भसे दो पुत्रोंकी उत्पत्ति सुनी गयी है, जो

नकुल ओर सहदेव नामसे प्रसिद्ध हैं। वे दोनों रूपवान्‌

और सत्त्वगुणी हैं। वसुदेवजीकी दूसरी पत्नी रोहिणीने,

जो पुरुवंशकी कन्या हैं, ज्येष्ठ पुत्रके रूपमें बलरामको

उत्पन्न किया। तत्पश्चात्‌ उनके गर्भसे रणप्रेमी सारण,

दुर्घर, दमन और लम्बी ठोढ़ीवाले पिण्डार्क उत्पन्न हुए।

वसुदेवजीकी पत्नी जो देवकी देवी हैं, उनके गर्भसे पहले

तो महाबाहु प्रजापतिके अंशभूत बालक उत्पन्न हुए।

फिर [कंसके द्वारा उनके मारे जानेपर] श्रीकृष्णका

अवतार हुआ। विजय, रोचमान, वर्धमान और

देवल --ये सभी महात्मा उपदेवीके गर्भसे उत्पन्न हुए

हैं। श्रुतदेवीने महाभाग गवेषणको जन्म दिया, जो

संग्राममे पराजित होनेवाले नहीं ये ।

[अब श्रीकृष्णके प्रादुर्भावकी कथा कही जाती

है ।] जो श्रीकृष्णके जन्म और वुद्धिकी कथाका प्रतिदिन

पाठ या श्रवण करता है, वह सब पारपोसे मुक्त हो जाता

है ।* पूर्वकाये जो प्रजाओकि स्वामी थे, वे ही महादेव

श्रीकृष्णलीलाके लिये इस समय मनुष्योमिं अवतीर्ण हुए

है । पूर्वजन्ममें देवकी और वसुदेवजीने तपस्या की थी,

उसीके प्रभावसे वसुदेवजीके द्वारा देवकीके गर्भसे

भगवान्‌का प्रादुर्भाव हआ । उस समय उनके नेत्र

कमलके समान शोभा पा रहे थे । उनके चार भुजाएँ थीं ।

उनका दिव्य रूप मनुष्योका मन मोहनेवाला था ।

श्रीवत्ससे चिह्नित एवं शाङ्खं चक्र आदि लक्षणोंसे युक्त

कृष्णस्य जन्माभ्युटयं यः कीर्तयति नित्यदा: । शृणोति वा नरो नित्य सर्वपापैः रमुच्यते ॥

(१३। १३८)

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