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ऋषि बोले-- सूतपुत्र! ! अब आप युगादि तिथियों

तथा सूर्यसंक्रान्ति आदिमे किये जानेवाले पुण्य

कर्मोंकी विधिका यथावत्‌ वर्णन कीजिये; क्योंकि

आपसे कोई बात छिपी नहीं है ।

सौतिने कहा--अयनका पुण्यकाल, जिस

दिन अयनका आरम्भ हो, उस पुरे दिनतक मानना

चाहिये । संक्रान्तिका पुण्यकाल सोलह घटोतक

होता है । विषुवकालको अक्षय पुण्यजनक बताया

संक्षिप्त नारदपुराण

गया है द्विजश्रेष्ठगण! दोनों पक्षोंकी दशमीविद्धा

एकादशौका अवश्य त्याग करना चाहिये । जैसे

वृषलो स्त्रीसे सम्बन्ध रखनेवाला ब्राह्मण श्राद्धमे

भोजन कर लेनेपर उस श्राद्धको और श्राद्धकतकि

पुण्यकृत पुण्यको भी नष्ट कर देता है, उसी प्रकार

पूर्वविद्धा तिथिमें किये हुए दान, जप, होम, खान

तथा भगवत्पूजन आदि कर्म सूर्योदयकालमें

अन्धकारकी भांति नष्ट हो जाते हैं।

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रुक्माङ्गदके राज्यमें एकादशीव्रतके प्रभावसे सबका बैकुण्ठगमन,

यमराज आदिका चिन्तित होना, नारदजीसे उनका

वार्तालाप तथा ब्रह्मतोक-गमन

ऋषि बोले--सूतजी ! अब भगवान्‌ विष्णुके

आराधनकर्मका विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये, जिससे

भगवान्‌ संतुष्ट होते और अभीष्ट वस्तु प्रदान करते

हैं। भगवान्‌ लक्ष्मीपति सम्पूर्ण जगत्‌के स्वामी हैं।

यह चराचर जगत्‌ उन्हीका स्वरूप है। वे समस्त

पापराशियोका नाश करनेवाले भगवान्‌ श्रीहरि

किस कर्मसे प्रसन्न होते हैं?

सौतिने कहा--ब्राह्मणो! धरणीधर भगवान्‌

हषीकेश भक्तिसे ही वशमें होते हैं, धनसे नहीं।

भक्तिभावसे पूजित होनेपर श्रीविष्णु सब मनोरथ

पूर्ण कर देते ह । अतः ब्राह्मणो ! चक्रसुदर्शनधारी

भगवान्‌ श्रीहरिकी सदा भक्ति करनी चाहिये । जलसे

भी पूजन करनेपर भगवान्‌ जगनाथ सम्पूर्ण क्लेशोका

नाश कर देते है । जैसे प्यासा मनुष्य जलसे तृत्त होता

है। उसी प्रकार उस पूजनसे भगवान्‌ शीघ्र संतुष्ट

होते है । ब्राह्मणो ! इस विषयमे एक पापनाशकं

उपाख्यान सुना जाता है, जिसमें महर्षि गौतमके साथ

राजा रुक्‍्माड्दके संवादका वर्णन है । प्राचीन कालमें

क्माङ्गद नामसे प्रसिद्ध एक सार्वभौम राजा हो

गये हैं। वे सब प्राणियोके प्रति क्षमाभाव रखते

थे। क्षीरसागरे शयन करनेवाले भगवान्‌ विष्णु

उनके प्रिय आराध्यदेव थे। वे भगवद्भक्त तो थे ही,

सदा एकादशीत्रतके पालने तत्पर रहते थे। राजा

रुक्माद्घद इस जगते देवेश्वर भगवान्‌ पद्मनाभके

सिवा और किसको नहीं देखते थे । उनकी सर्वत्र

भगवद्दृष्टि थी। वे एकादशीके दिन हाधीपर

नगाडा रखकर बजवाते और सब ओर यह घोषणा

कराते थे कि ' आज एकादशी तिथि है । आजके दिन

आठ वर्षे अधिक और पचासी वर्धसे कम आयुवाला

जो मन्दबुद्धि मनुष्य भोजन करेगा, वह मेंरेद्वारा

दण्डनीय होगा, उसे नगरसे निर्वासित कर दिया

जायगा। औरोंकी तो बात ही क्या, पिता, भ्राता,

पुत्र, पत्नी और मेरा मित्र ही क्यों नहो, यदि वह

एकादशीके दिन भोजन करेगा तो उसे कठोर दण्ड

दिया जायगा। आज गङ्गाजीके जलमें गोते लगाओ,

श्रेष्ठ ब्राह्मणोंकों दान दो ।' द्विजवर ! राजाके इस प्रकार

घोषणा करानेपर सब लोग एकादशीव्रतं करके भगवान्‌

विष्णुके लोकमें जाने लगे । ब्राह्मणो! इस प्रकार

वैकुण्ठधामका मार्ग लोगोंसे भर गया। उस राजाके

राज्ये जो लोग भी मृत्युको प्राप्त होते थे, वे

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