संक्षिप्त नारदपुराण
बारह महीनोंके तृतीया-सम्बन्धी व्रतोंका परिचय
सनातनजी कहते हैं--नारद! सुनो, अब मेँ
तुम तृतीयाके व्रत बतलाता हूँ, जिनका विधिपूर्वक
पालन करके नारी शीघ्र सौभाग्य लाभ करती है।
ब्रह्मन् ! वर -प्रापिकी इच्छा रखनेवाली कन्या तथा
सौभाग्य, पुत्र एवं पतिकौ मङ्गलकामना करनेवालौ
विवाहिता नारौ चैत्र शुक्ला तृतीयाको उपवास
करके गौरीदेवी तथा भगवान् शङ्करकौ सोने,
चाँदी, ताँबे या मिट्टीकी प्रतिमा बनावे और उसे
गन्धपुष्प, दूर्वाकाण्ड आदि आचारो तथा सुन्दर
वस्त्राभूष्णोसे विधिपूर्वक पूजित करके सधवा
ब्राह्मण -पतिर्यो अथवा सुलक्षणा ब्राह्मण-कन्याओंको
सिन्दूर, काजल और वस्त्राभूषणों आदिसे संतुष्ट
करे । तदनन्तर उस प्रतिमाको जलाशयमे विसर्जन
कर दे । स्त्र्योको सौभाग्य देनेवाली जैसी गौरीदेवी
हैं, वैसी तीनों लोकोंमें दूसरी कोई शक्ति नहीं है ।
वैशाख शुक्ल पक्षकी जो तृतीया है, उसे ' अक्षयतृत्तीया'
कहते हैं। वह त्रेतायुगकी आदि तिथि है। उस
दिन जो सत्कर्म किया जाता है, उसे वह अक्षय
बना देती है । वैशाख शुक्ला तृतीयाको लक्ष्मीसहित
जगद्गुरु भगवान् नारायणका पुष्प,धूप और चन्दन
आदिसे पूजन करना चाहिये अथवा गङ्गाजौके
जलमें स्नान करना चाहिये | ऐसा करनेवाला मनुष्य
समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है तथा सम्पूर्ण
देवताओंसे बन्दित हो भगवान् विष्णुके लोकमें
जाता है।
ज्येष्ठ मासके शुक्ल पक्षकी जो तृतीया है, वह
"रम्भा -वृतीया' के नामसे प्रसिद्ध है। उस दिन
सपत्नीक श्रेष्ठ ब्राह्मणक गन्ध, पुष्प और वस्त्र
आदिसे विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिये। यह त्रत
धन, पुत्र और धर्मविषयक शुभकारक बुद्धि प्रदान
करता है। आषाढ़ शुक्ला तृतीयाको सपन्नीक ब्राह्मणमें
लक्ष्मीसहित भगवान् विष्णुकी भावना करके वस्त्र,
आभूषण, भोजन और धेनुदानके द्वारा उनकौ पूजा
करे; फिर प्रिय बचनोंसे उन्हें अधिक संतुष्ट करे।
इस प्रकार सौभाग्यकी इच्छासे प्रेमपूर्वक इस व्रतका
पालन करके नारी धन-धान्यसे सम्पन्न हो देवदेव
श्रीहरिके प्रसादसे विष्णुलोक प्रात कर लेतौ है।
श्रावण शुक्ला तृतीयाको ' स्वर्णगौरीव्रत' का आचरण
करना चाहिये। उस दिन स्त्रीकों चाहिये कि बह
षोडश उपचारोंसे भवानीकी पूजा करे।
भाद्रपद् शुक्ला तृतीयाकों सौभाग्यवती स्त्री
विधिपूर्वक पाद्य-अर्ध्यं आदिके द्वारा भक्ति-
भावसे पूजा करती हुई “हरितालिकाब्रत'का पालन
करे। सोने, चाँदी, ताँबे, बाँस अथवा मिट्टीके
पात्रमें दक्षिणासहित पकवान रखकर फल और
वस्त्रके साथ ब्राह्मणको दान करे। इस प्रकार
व्रतका पालन करनेवाली नारौ मनोरम भोर्गोका
उपभोग करके इस त्रतके प्रभावसे गौरीदेवीकी
सहचरी होती है । आशिन शुक्ला तृतीयाको ' बृहद्
गौरीव्रत'-का आचरण करे । नारद! इससे सम्पूर्ण
कामनाओंकी सिद्धि होती है।
कार्तिक शुक्ला तृतीयाको ' विष्णु-गौरीव्रत' का
आचरण करे। उसमें भांति- भांतिके उपचारोंसे
जगद्वन्द्या लक्ष्मीकी पूजा करके सुवासिनी स्त्रीका
मङ्कल-दरव्योसे पूजन करनेके पश्चात् उसे भोजन
करावे और प्रणाम करके विदा कर । मार्गशीषं शुक्ला
तृतीयाको मङ्गलमय ' हरणौरीत्रत ' करके पूर्वोक्तविधिसे
जगदम्बाका पूजन करे । इस ब्रतके प्रभावसे स्त्री
मनोरम भोगोंका उपभोग करके देवौलोकमे जातौ
ओर गौरीके साथ आनन्दका अनुभव करती है ।
पौष शुक्ला तृतीयाको 'ब्रह्मगौरीव्रत' का आचरण
केरे। द्विजश्रेष्ठ! इसमें भी पूर्वोक्त विधिसे पूजन