पूर्वधाग-प्रथम पाद
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विष्णु, शिव तथा ब्रह्माजीमें भेदबुद्धि करता है, | सत्यसे बद कर कोई तप नहीं है, मोक्षसे बड़ा
बह अत्यन्त भयंकर नरकमें जाता है । जो भगवान्
शिव, विष्णु और ब्रह्माजौको एक रूपसे देखता
है, बह परमानन्दको प्राप्त होता है । यह शास्त्रोंका
सिद्धान्त है । जो अनादि, सर्वज्ञ, जगतके आदिष्टा
तथा सर्वत्र व्यापक हैं, वे भगवान् विष्णु ही
शिवलिङ्गरूपसे काशीमें विद्यमान है । काशीपुरीका
विश्वैश्वरलिड्ज ज्योतििद्ग कहलाता है । श्रेष्ठ मनुष्य
उसका दर्शन करके परम ज्योतिको प्राप्त होता है ।
जिसने त्रिभुवनको पवित्र करनेवाली काशीपुरीकी
परिक्रमा कर लौ, उसके द्वारा समुद्र, पर्वत तथा
सात ट्वीपोंसहित पृथ्वीकौ परिक्रमा हो गयी । धातु,
मिट्टी, लकड़ी, पत्थर अथवा चित्र आदिसे निर्मित
जो भगवान् शिव अथवा विष्णुकी निर्मल प्रतिमां
हैं, उन सबमें भगवान् विष्णु विद्यमान हैं। जहाँ
तुलसीका बगीचा, कमलोंका वन और पुरणाणोंका
पाठ हो, वहाँ भगवान् विष्णु स्थित रहते हैं।
ब्रह्मन्! पुराणकी कथा सुननेमें जो प्रेम होता है,
बह गड्जास्लानके समान है तथा पुराणकी कथा
कहनेवाले व्यासके प्रति जो भक्ति होती है, वह
प्रयागके तुल्य मानी गयी है। जो पुराणोक्त धर्मका
उपदेश देकर जन्म-मृत्युरूप संसार-सागरमें डूबे
हुए जगत्का उद्धार करता है, वह साक्षात्
श्रीहरिका स्वरूप बताया गया है। गड़ाके समान
कोई तीर्थ नहीं है, माताके समान कोई गुरु नहीं
है, भगवान् विष्णुके समान कोई देवता नहीं है
तथा गुरुसे बढ़कर कोई तत्त्व नहीं है'। जैसे
चारों वर्णो्में ब्राह्मण, नक्षत्रोंमें चन्द्रमा तथा
सरोवरोंमें समुद्र श्रेष्ठ है, उसी प्रकार पुण्य
तौर्थों और नदियोंमें गङ्गा सबसे श्रेष्ठ मानी
कोई लाभ नहीं है' और गड्भाके समान कोई नदी
नहं है? । गङ्गाजीका उत्तम नाम पापरूपी वनको
भस्म करनैके लिये दावानलके समान है। गङ्गा
संसाररूपौ रोगको दूर करनेवाली हैं, इसलिये
यह्नपूर्वक उनका सेवने करना चाहिये । गायत्री
और गङ्गा दोनों समस्त पार्पोको हर लेनेवाली
मानी गयी हैँ । नारदजी! जो इन दोनोंके प्रति
भक्तिभावसे रहित है, उसे पतित समझना
चाहिये । गायत्री वेदोंकी माता हैं और जाह्नवी
(गङ्गा) सम्पूर्ण जगत्कौ जननौ हैं। वे दोनों
समस्त पापोके नाशका कारण हैं। जिसपर
गायत्री प्रसन्न होती हैं, उसपर गङ्गा भी प्रसन्न
होती हैँ । वे दोनों भगवान् विष्णुकी शक्तिसे
सम्पन्न हैं, अतः सम्पूर्ण कामनाओंकी सिद्धि
देवेबाली हैं। गड्जा और गायत्री धर्म, अर्थ, काम
और मोक्ष-इन चारों पुरुपार्थकि फलरूपपे प्रकट
गयी हैं। शान्तिके समान कोई बन्धु नहीं है, | हुई हैं। ये दोनों निर्मल तथा परम उत्तम हैं और
१. नास्ति गङ्खासमं तीरं नास्ति मातृसमो गुरु: । नास्ति विष्णुसयं दैवं नास्ति तत्वं गुरोः परम्॥ (ना० पूर्व० ६। ५८)
२. नास्ति शान्तिसपो बन्धुर्तास्ति सत्यात्परं तपः। नास्ति मोक्षात्परो लाभो नस्ति गङ्गासमा नदौ ॥ ( ना० पूर्व ६। ६०)