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दिया था? मनुष्यों को इस सम्बन्ध में किसके परम शुभ नामका `
कीर्तन करना चाहिये ? “मत्स्य भगवान ने का -“निःसन्देह् पतिव्रता का `
माहात्म्य इतना अधिक है कि मृत्यु का अधीश्वर यमराज भी ऐसी
नारियों को अवमानना नहीं कर सकता । अब मैं तुमको एक ऐसी ही
पापनाशक कथा सुनाता हूँ जिसमें एक परम श्रेष्ठ पतित्रता ने अपने `
स्वामी को मृत्यु के पाश से भी छुडा लिया था ।”
इस वर्णन के आधार पर इम कह सकते हैं कि संभत: यह
सावित्री उपाख्यान' कवि-कल्पना-प्रसृत ही हो और “धर्म के अनुयायी”
की महिमा को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से ही इसकी रचना की गई
हो। फिर भी संसार में ऐसी नारियाँ हुई हैं जिन्होंने वास्तव में अपने ॥
पति को यमराज' के घर से लौटाया हैं। इतिहास में एकाध ऐसी
वीरांगना का वर्णन मिलता है, जिसका पति युद्ध में विषाक्त बाण लगने
से मरने लगा, पर उसने तत्काल अपने मुह से दूषित रक्त को चूस कर
बाहर निकाल दिया और अपने प्राणों की चिन्ता न करके त्रिय पति के
प्राणों की रक्षा की । इसी घटना का वर्णन करते हुए ब्रजभाषा के एक
आधुनिक कवि ने लिखा था---
सहृदय प्यारी,
मृत्यु पराजित होत प्रेम सों निश्चय जानन हारी ॥
वीरासन हवे भूपति पति को लै भुज लता सहारे ।
व्रण सों विष चूस्यौ लगाय जिन मधुराधर अरुणारे ॥।
कुछ भो हो सावित्री उपाख्यान एक ऐसी महान् पतिव्रता की
कल्पना है जिसने आज तक लाखों नारियों को प्रेरणा देकर उनको पति -
को सच्ची सहगामिनी बनाया है । यमराज के सम्मुख उसके द्वारा प्रकट
किये ये उद्गार आज भी पति की अनुभाभिनी स्त्रियों के कानों में
गू जते रहते हैं--