* सेनापंतियॉसहित
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वध १९३
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तृतीयोऽध्यायः
सेनापतियोखहित महिषासुरका वध
ध्यान
( ॐ उद्यद्धानुसह॒श्नकान्तिमरुणक्षौपां शिगेमालिकां
रक्तालिसिपयोधरां जफ्वटों विद्यामभीतिं वरम्।
हस्ताए्जर्दधर्ती चिनेत्रविलसद्रक्त्ारचिन्दध्चि्यं
देवों बद्धहिमांशुरलमुकूटां वन्देऽरविन्दस्थिताप् ॥
जगदम्ब श्रोअज्ञोंकी क्रान्ति उदयकालके
सहस्तरों सूर्योकें समात है। वे लाल रंगकौ रेशमों
सादी पहने हुए हैं। उनके गलेमें मुण्डमाला शोभा
पा रहो है। दोनों स्वनोपर रक्तचच्दनका लेप लगा
है। वे अपने कर-कपलोंमें जपम्मलिका, विद्या,
अभय तथा ब९-गुद्गाएँ धारण क्रिये हुए हैं। तीन
नेत्रॉसे सुशोभित मुखारविन्दली बड़ी शोभा हो
रही है। उनके मस्तकपर चददरमाक्रे साथ ही
रत्तमय मुकुट चधा हैं तथा वे कालके आऑसनपर
विराजमान हैं। ऐसी देवीकों मैं भक्तिपूर्वक प्रणाम
करता हँ)
कऋिशकातच्त॥ १ ॥
' ॐ" निहन्यमार्न तत्सैन्यमवलोक्य महासुर:।
सेनानीश्िश्षुरः कोपाद्ययौ योदघुमथाम्बिकाम्॥ २॥
स देवों शरत्रपैण वर्ष सपौऽसुरः।
अथा भेरुमिरे: शृद्धं तोयचर्षेण तोयदः ५ ३ ॥
तस्यच्छित्त्वा नतो देवी लीलयैव शरोत्करान् ॥
जधान तुरगान ब्राणर्यन्तारं न्नैव च्लालिनाम्॥ ४ ॥
चिच्छेद च धनु: स्रो ध्वजं चातिसमच्छतिम्।
विव्याच चैव गात्रेषु छित्रधन्यानमाशुगै:॥७ ॥
सच्छिन्नधन्वा विरधो हताश्रो इत्तसरारथिः।
अभ्यधावत तां देवीं खड्गचर्मधरोऽसुरः ॥ & ॥
सिंहमाहत्व खड्गेन तीक्ष्णयारेण मूर्धनि ।
आजघान भुजे सव्यै देवीमप्यतिवेगवान् ॥ ७ ॥
` १, पा तेन तच्छतधा नंत; या
तस्याः खड्गो भुजं प्राप्य पफाल नृपनन्दन।
ततो जग्राह शृलं म्र कोपादरुणलोचनः ॥ ८ ॥
चिक्षेप च ततस्तत्तु भद्रकाल्यां पहमसुरः॥
जाच्चल्यपानं तेजोभी रवितिप्बमिवाप्बरात् ॥ ९ ॥
दृष्ठा तदापतच्छूलं देवी शूलममुञ्चत ।
तच्छूलं तथा नैनं नीतं स च भहासुरः॥ १०४
ऋषि कहते हैं-- ॥ १ ॥ दैत्यो की सेनाको इस
प्रकार तहस-नटस होते देख महादैत्व सेनापति
चिश्युर क्रोधे भरकर अम्बिका देवीसे युद्ध
करनेको आगे बढ़ा॥२॥ वह असुर रणभूमिमें
देवीके ऊप९ इस प्रकार बरार्णोकी वर्षा करने लगा,
वैसे ऋदल मेरुगिर्रिके शिखरपर पानीकी धार
जरसा रहा हो॥३॥ तव देवोने अपने जाणोंसे
उसके यभ-समृहको अनायास हीं काटकर उसके
घोड़ों और सारथिको भी गार डाला ॥४॥ साथ
ही उसके धनुष तथा अत्यन्त ऊँची ध्ल्लको भो
तत्काल कोट गिराया। धनुष केर जानेपर उसके
अङ्गोकिो अपने बाणोंसे बाघ डाला॥५॥ धनुष,
रथ, घोढ़े और सारधिके नष्ट हो जानैषग वह
असुर ढाल और तलवार लेकर देखीक्ी ओर
दौड़ा ॥ ६ ॥ उसने ततोखी धारवाली तलवारसे सिंहके
मस्तकपर चोर करके देवीकी भी बायों भुजामें
बड़े वेगसे प्रहार किया॥७ ॥ राजन! देवीकी
जंहपर पहुँचते ही तरह तलवार दूटं गयौ, फिर तौ
क्रोधसे लाल आँखें करके उस्र राक्षसने शूल
हाथ लिवा॥८॥ और ठस ठस महादेत्ववे
भगवतो भद्रकालीके ऊपर चलाबा। नह शूल
आकाशसे गिस्ते हुए सुर्यमण्डलकी भति अपने
तेजसे प्रण्वानित हो उठा॥ ९ ॥ 5स शूलकों अपनी