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* अध्याय ९० * १९३

इस प्रकार छः गुणोंसे सम्पन्न आत्माको अविनाशी | हुए इस जीवको आपने ही अनुगृहीत किया है

परमशिवसे लेकर विधिवत्‌ भावनापूर्वक शिष्यके | अतः नाथ! देवता, अग्नि तथा गुरुमें इसकी भक्ति

शरीरमें नियोजित करे। तीव्र और मन्द शक्तिपातजनित | बढ़ाइये' ॥ ५८-५९ ॥

श्रमकी शान्तिके लिये शिष्यके मस्तकपर न्यासपूर्यक | इस प्रकार प्रार्थना करके देवेश्वर शिवको प्रणाम

अमृत-बिन्दु अर्पित करे॥ ५३--५७॥ करनेके अनन्तर गुरु स्वयं शिष्यको आदरपूर्वक यह

ईशान-कलश आदिके रूपमें पूजित शिवस्वरूप | आशीर्वाद दे कि ' तुम्हारा कल्याण हो '। इसके बाद

कलशोंको नमस्कार करके दक्षिणमण्डलमें शिष्यको | भगवान्‌ शिवको उत्तम भक्तिभावसे आठ फूल

अपने दाहिने उत्तराभिमुख बिठावे और देवेश्वर | चढ़ाकर शिवकलशके जलसे शिष्यकों स्नान करवावे

शिवसे प्रार्थना करे--'प्रभो! मेरी मूर्ति स्थित | ओर यज्ञका विसर्जन करे॥ ६०-६१॥

इस प्रकार आदि आरनेब महापुराणमें " तिवणि-दीश्ाका वर्णन” तमक

अठासीवाँ अध्याय पृ ठेमा॥८८॥

नवासीवां अध्याय

एकतत्त्व-दीक्षाकी विधि*

भगवान्‌ शिव कहते है -- स्कन्द ! अब लघु | संस्कारोंका पूर्ववत्‌ सम्पादन करे; किंतु मूल-मन्तरसे

होनेके कारण एकतात्तविकी-दीक्षाका उपदेश दिया | सर्वशुल्क समर्पण करे। इसके बाद तत्त्वसमूहोंसे

जाता है। यथावसर यथोचित रीतिसे स्वकीय | गर्भित पूर्णाहुति प्रदान करे । उस एक ही आहुतिसे

मन्द्राय सूत्रनन्ध आदि कर्म करे। तत्पश्चात्‌ काल, | शिष्य निर्वाण प्राप्त कर लेता है ॥ १--४॥

अग्नि आदिसे लेकर शिव-पर्यन्त समस्त तत्त्वोंका | शिवमे नियोजन तथा स्थिरताका आपादन

प्रविभावन (चिन्तन) करे। शिवतत्त्वे अन्य सब | करनेके लिये दूसरी पूर्णाहुति भी देनी चाहिये ।

तत्त्व धागेमें मनकोंकी भाँति पिरोये हुए है । शिव- | उसे देकर शिवकलशके जलसे शिष्यका अभिषेक

तत्व आदिका आवाहनं करके गभाधीन आदि | करे ॥ ५॥

इस अकार आदि आग्नेय महापुराण्मे 'एकतत्व-दीक्षाकिधिका वर्णन” नामक

नवासीयाँ अध्याय पूरा हुआ#८९ ॥

नब्बेवाँ अध्याय

अभिषेक आदिकी विधिका वर्णन

भगवान्‌ शंकर कहते है - स्कन्द! शिवका | कलशोमें क्रमशः क्षारोद, क्षीरोद, दध्युदकं, घृतोद,

पूजन करके गुरु शिष्य आदिका अभिषेक करे । | इक्षुससोद, सुरोद, स्वादूदकं तथा गर्भोद--

इससे शिष्यको श्रीकी प्राप्ति होती है। ईशान | इन आठ समु्रोका आवाहन करे। इसी तरह

आदि आठ दिशाओमिं आठ और मध्यमे एक - | क्रमानुसार उनमें आठ विद्येश्वरोंका भी स्वापन

इस प्रकार नौ कलश स्थापित करे। उन आठ | करे, जिनके नाम इस प्रकार ठँ - १. शिखण्डी,

* सोमशम्भुकी "कर्मकाण्ड - क्रमावलौ " में इसके पूर्व “क़ितत्वदीक्षा' का विस्तृत वर्णन ह ।

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