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३७२ & श्री लिंग पुराण के

इस प्रकार मन्त्रों से हवन करके सातवें दिन योगीन्द्रों

को जो श्राद्ध के योग्य हों उन्हें भोजन करावे । ब्राह्मणों

के लिए वस्त्र, आभूषण, शय्या, कांस पात्र, ताम्न पात्र,

सुवर्णं पात्र, चांदी के पात्र, धेनु, तिल, खेत, दासी,

दास तथा दक्षिणा आदि प्रदान करनी चाहिये । पहली

तरह पिण्ड को आठ प्रकार से देना चाहिये । हजार ब्राह्मणों

को दक्षिणा सहित भोजन कराना चाहिए । यीग में तत्पर

भस्म लगाये हुए जितेन्द्रिय योगी को तीन दिन तक

महाचरु निवेदन करना चाहिए। मरने पर करे या न करे,

वह तो जीवित ही मुक्त है। नित्य नैमित्तिक कार्यों को

बान्धव के मरने पर नहीं त्यागना चाहिए क्योकि उसे

शौचाशौच नहीं लगता। उसका सूतक स्नान मन्त्र से ही

शुद्ध होता है। अपनी स्त्री में पुत्र के उत्पन्न होने पर उसका

भी सर्व कर्म ऐसे ही करना चाहिए क्योकि वह पुत्र भी

ब्रह्म के समान होता है। यदि कन्या उत्पन्न होगी तो वह

अपर्णा के समान होगी। उसके बंशज सब मुक्त हो जायेंगे।

नर्क से सब पितर मुक्त हो जायेंगे।

इस प्रकार यह सब ब्रह्माजी ने पूर्व में मुनियों से

कहा था। सनत्कुमार ने श्री कृष्ण द्वैपायन से इसको

कहा और वेदव्यास से मैंने सुना। सो मैंने अति गोपनीय

और कल्याणप्रद रहस्य तुमसे कहा। इसे मुनि पुत्र और

भक्त को देना चाहिए, अभक्त को नहीं देना चाहिए।

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