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ॐ श्री लिंग पुराण # २९९

जलन्धर नामक दैत्य था। उसने तपस्या से बहुत बल

प्राप्त किया। उसने यक्ष, गन्धर्व, उरग, देव, दानव सभी

को जीत लिया। ब्रह्मा को भी जीत लिया। फिर देव देव

विष्णु को जीतने के लिए उनके साथ लगातार युद्ध

किया। जलन्धर ने विष्णु को भी जीत लिया । जलन्धर

जनार्दन को जीतकर विष्णु से बोला--मैंने तुमको युद्ध

मे जीत लिया अब केवल शंकर बाकी है । उसको गणों

के साथ और नन्दी के साथ क्षणमात्र में जीतकर मैं ही

रुद्रपने को, ब्रह्मपने को तथा विष्णुपने को और इन्द्रपने

को तुम्हारे लिये प्रदान कर दूंगा । ऐसा राक्षसो से कहा।

जलन्धर के ऐसे वाक्य सुनकर राक्षस बड़े जोर से शब्द

करने लगे । दैत्यों के साथ रथ, घोड़ा, हाथी आदि को

लेकर यह महाबली शिवजी के पास गया।

भग के नेत्रो का नाश करने वाले शिवजी ने इसको

अवध्य सुन रक्खा था । ब्रह्मा के वचनो की रक्षा करते

हुए शम्भु, पार्वती ओर नन्दी आदि गणों के सामने हँसते

हुए कहने लगे कि मुझको अव क्या करना चाहिए।

फिर राक्षस से बोले कि हे दैत्यराज! मेरे बाणो से छिन्न

मस्तक वाला होकर तू मृत्यु को प्राप्त होगा। जलन्धर

शिव के वचन सुनकर बोला-- हे वृषभध्वज! ऐसे वचनो

से क्या लाभ, चन्द्रमा के समान चमकते हुए शस्त्रो से

लड़ने के लिए यहां आया हूं । यह सुनकर रुद्र ने चैर के

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