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* पुराणं गारुडं वक्ष्ये सारं विष्णुकथाश्रयम् *
[ संक्षिप्त गरुडपुराणाड्लु
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नप्र निवेदन और श्चमा-प्रार्थना
भगवत्कृपासे इस वर्ष "कल्याण ' के विशेषाडूके
रूपमे “संक्षिप्त गरुडपुराणाडु ' पाठकोंकी सेवामे प्रस्तुत है ।
पिछले कई वर्षोंसे कुछ महानुभावोंका यह विशेष आग्रह
था कि "कल्याण ' के विशेषाडुके रूपे 'गरुडमहापुराण'का
प्रकाशन किया जाय। हम चाहते हुए भी अबतक यह कार्य
नहीं कर सके थे। इस वर्ष यह सम्भव हो सका।
अठारह महापुराणोकि अन्तर्गत गरुडमहापुराणका अपना
एक विशेष महत्व है। इसके द्वारा असार-संसारकी
कषणभङ्भुरता तथा अनित्यताका दिष्द्शन तो होता ही है;
इसके साथ ही इसमें परलोकका वर्णन तथा संसारके
आवागमनसे मुक्त होनेकी विधि भी वर्णित है। चतुर्वर्गचिन्तामणि,
वीरमित्रोदय, हेमाद्रि, विधानपारिजात आदि सभी प्राचीन
निबन्ध-ग्रन्धोंमें अनुष्ठान, ब्रत, दान एवं श्राद्ध आदिके
प्रकरणमें मूल श्लोकोंका संदर्भ भी प्रायः गरुडपुराणका ही
मिलता है। इन सब कारणोंसे इस ग्रन्थकी श्रेष्ठता एवं महत्व
विशेषरूपसे परिलक्षित होनेपर भी सामान्य जन इसके
विषय-वस्तुसे अनभिज्ञ-जैसे हौ हैं। अत: स्वाभाविक
रूपसे यह प्रेरणा हुई कि गरुडमहापुराणकी कथा-वस्तुको
जमता-जनार्दनको दृष्टिमें लानेके लिये इस बार इसी महापुराणका
अनुवाद “विज्ञेषाडू' के रूपमें प्रस्तुत किया जाय। इस
प्रेरणाके अनुसार हौ यह निर्णय कार्यरूपमें परिणत हुआ।
वास्तवे गरुडमहापुराण एक पवित्र वैष्णव ग्रन्थ है।
इसके अधिष्ठातुदेव भगवान् विष्णु हैं। यह महापुराण
अधिकतम तीन खण्डेंमें विभक्त है--पूर्वछण्ड (आचारकाण्ड),
उत्तरखण्ड ( धर्मकाण्ड ~- प्रेतकल्प ) और ब्रह्मकाण्ड। अधिकांश
संस्करणोंमें केवल दो हौ खण्ड (पूर्व ओर उत्तर) दिये गये
है । जबकि खेमराज श्रीकृष्णदासद्ारा प्रकाशित पुस्तकें इन
दोनों काष्डोके अतिरिक्त ब्रह्मकाण्ड भी दिया गया है।
पूर्वखण्ड ( आचारकाण्ड ) -मे भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार
एवं निष्काम कर्मकौ महिमा तथा यज्ञ, दान, तप, तीर्थसेवन,
देवपूजन, श्राद्ध, तर्पण आदि शास्त्रविहित शुभ कर्मों
जनसाधारणक प्रवृत्त करनेके लिये अनेक लौकिक एवं
पारलौकिक पुण्यप्रद फलादिका वर्णन किया गया है । इनके
अतिरिक्त इसमें व्याकरण, छन्द, स्वर, ज्योतिष, आयुर्वेद,
रब्रसार, नीतिसार आदि अन्यान्य उपयोगी विविध विषयोंका
यथाक्रम समावेश हुआ है।
गरुडमहापुराणमें मुख्य रूपसे उत्तरखण्डमें प्रेतकल्पका
विवेचन अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है, जिसमें मृत्युका स्वरूप,
मरणासन्न व्यक्तिकी अवस्था और उसके कल्याणके लिये
अन्तिम समयमें किये जानेवाले कृत्यो तथा विविध प्रकारके
दानोंका निरूपण हुआ है। मृत्युके बाद औधर्ध्वदैहिक
संस्कार, पिण्डदान, श्राद्ध, सपिण्डीकरण, कर्मविपाक,
पाषोंके प्रायश्चित्तका विधान आदि वर्णित है । इसमें नरकॉका
तथा स्वर्गं एवं वैकुण्ठ आदि लोकॉके वर्णनके साथ हो
पुरुषार्थचतुष्टय धर्म, अर्ध, काम और मोक्षको प्राप्त करनेके
विविध साधनोंका निरूपण भी हुआ है। इसके अतिरिक्त
जन्म-मरणके बन्धनसे मुक्त होनेके लिये आत्मज्ञानका
प्रतिपादन भौ किया गया है।
वास्तव गर्डमहापुराणकी समस्त कथाओं और
उपदेशका सार यह है कि हमें आसक्तिका त्यागकर
वैराग्यकौ ओर प्रवृत्त होना चाहिये तथा सांसारिक बन्धनोंसे
मुक्त होनेके लिये एकमात्र परमात्माकौ शरणमे जाना
चाहिये । यह लक्ष्यप्राप्ति कर्मयोग और ज्ञान अथवा भक्तिद्वारा
किस प्रकार हों सकती है, इसकौ विशद व्याख्या इस
महापुराणमें हुई है। यह पुराण भगवत्प्राप्तिके लक्ष्यकों सामने
रखते हुए साधकोंके लिये उनके ग्रहण करने योग्य विभिन्न
अनुभूत सत्य मागेकि विर्प्रोका तंथा विप्रोंसे छूटनेके
उपायोंका बड़ा ही सुन्दर निरूपण करता है। मनुष्य इस
लोकसे जानेके बाद अपने पारलौकिक जीवनको किस
प्रकार सुख-समृद्ध एवं शन्तिप्रद बना सकता है तथा
उसकी मृत्युके बाद उस प्राणीके उद्धारके लिये पुत्र-
पौत्रादिक-- पारिवारिक जनेकि कर्तव्यका विशद वर्णन भी
यहाँ प्राप्त होता है। यह महत्त्वपूर्ण प्रकरण अन्य किसी
पुराण या ग्रन्थमें हमें उपलब्ध नहीं होता।
इस गरुडमहापुराणके श्रवण और पठनसे स्वाभाविक
ही पुण्य-लाभ तथा अन्तःकरणकी परिशुद्धि और भगवानमें