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२०८

* पुराण गारुडं वक्ष्ये सारं विष्णुकथाश्रयम्‌ *

[ संक्षिप्त गरुडपुराणाडुू

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रत॑ हौ अपने पतिकी इच्छाके अनुसार वेश्याके यहाँ जा

रहौ थी, इसलिये अन्धकार रहनेके कारण अपनी पत्नीके

कन्धेपर बैठे कौञ्चिकने माण्डल्य ऋषिको नहीं देखा और

अपना पौव स्वभावतः हिलाया-दुलाया । इसका दुष्परिणाम

यह हुआ कि कौशिकके पाँवोसे माण्डव्य ऋषि आहत हो

गये और उनकौ समाधि टूट गयी । समाधि-भंग होनेसे उन्हे

असहा वेदना होने लगी। इससे माण्डव्य ऋषिका करद

होता स्वाभाविक धा। अतः क्रोधवश उन्होंने शाप देते हुए

(9 भः

कहा- जिसने मेरे ऊपर यह अपना चैर चलाया है, उसको

सूर्योदय होते ही मृत्यु हो जायगी । यह सुनकर उस ब्राह्मन

पत्नीने कहा कि (यदि ऐसी बात है तो) अब सूर्योदय हो

नहीं होगा। इसके बाद सूर्योदय न होनेसे बहुत वर्षोतक

निरन्तर रात्रि ही छायी रही। जिससे देवता भी भयभीत

हो गये।

देवताओंने ब्रह्ममी शरण लो। ब्रह्माने उन देरव

कहा कि पतिखताके इस तैजसे तो तपस्वियोंके तेजका भी

हास हो रहा है। पातिब्रत-धर्मके माहात्म्यसे सूर्यदेव उदित

नहीं हो रहे हैं। उसके उदय न होतेसे मातवों और आप

सभीको यह हानि उठानी पड़ रहो है। अत; सूर्योदयकी

कामनासे आप सब अत्रिमूनिकौ धर्म-पत्नौ तपस्विनौ

पतिपरायणा अनसूयाको प्रसन्न करें। वे ही सूर्योदय करके

पतिव्रता ब्राह्मणोके पतिको भी जीवित कर सकती हैं।

ब्रह्माजीके कथनानुसार अनसूयाकी शरणमें जाकर देवताओंने

उनकी प्रार्थना की। देवताओंकी प्रार्थनासे अनसूयो प्रसन्न हों

गर्यो । अपने तपःप्रभावसे सूर्योदय कराके उन्होंने ब्राह्मणीके

पति कौशिककों जीवित कर दिया। इन महातपस्चिनी

पतिव्रताकों अपेक्षा सोता और अधिक पतिपरायणा थीं।

(अध्याय ६४२)

नक

रामचरितवर्णन ( रामायणकी कथा )

ब्रह्माजीने कहा-- अव मैं रामायणका वर्णन करता हूँ,

जिसके श्रवणमात्रसे समस्त पापोंका विनाश हो जाता है।

भगवान्‌ विष्णुके नाभिकमलसे ब्रह्माकी उत्पत्ति हुई।

ब्रह्मासे मरौचि, मरीचिसे कश्यप, कश्यपसे सूर्य, सूर्यसे

वैवस्वत मनु हुए। वैवस्वत मनुसे हक््वाकु हुए। इन्हों

इक्ष्वाकुके वंशम रघुका जन्म हुआ। रघुके पुत्र अजसे

दशरथ नामक महाप्रतापी राजाने जन्म लिया। उनके महान्‌

बल और पराक्रमवाले चार पुत्र हुए। कौसल्यासे राम,

कैकेयोसे भरत और सुमित्रासे लक्ष्मण तथा शत्रुघ्तका जन्म

हुआ।

माता-पिताके भक्त त्रोग़मने महामुनि विश्वामित्रसे अस्त्र-

शस्त्रको शिक्षा प्राप्तकर ताड़का नामक यक्षिणीका विनाश

किया। विश्वामित्रके यज्ञे बलशालौ रामके द्वारा ही सुबाहु

नामक राक्षस मारा गया। जनकराजके यज़स्थलमें पहुँचकर

उन्होंने जानकीका पाणिग्रहण किया। वौर लक्ष्मणने उर्मिला,

भरतने कुशध्वजको पुत्री माण्डवी तथा शत्रुघ्नने कौर्तिमतीका

पाणिग्रहण किया, ये महाराज कुशध्वजको पुत्रों थीं।

विवाहके पश्चात्‌ अयोध्यामें जाकर चारों भाई पिताके

साथ रहने लगे। भरत और शत्रुघ्न अपने मामा युधाजित्के

यहाँ चले गये। उन दोनोंके ननिहाल जानेके बाद नृप्र

महाराज दशरथ रामको राज्य देनेफे लिये उद्यत हुए।

उसो समय फैकेयीत्रे ग़ामकों चौदह वर्ष ठनमें रहनेका

दशरधजीसे यर माँग लिया। अतः लक्ष्मण और सौतासहित

मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम पिताके हितकौ रक्षाके लिये

राज्यको तृणवत्‌ त्यागकर भृगवेरपुर चले गये। वहाँपर

रथका भौ परित्यागकर ले सभौ प्रयाग गये और वहाँसे

चित्रकूटमें जाकर रहने लगे।

इधर रामके वियोगे दु:खित महाराज दशरथ शरौरका

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