* श्रीकृष्णजन्मखण्ड * ६४५
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ऐश्वर्ययुक्त, श्रीसम्पन्न, श्रीनिवास, श्रीबीज एवं गोलाकार दिखायी देती थी। उसने ललाटमें
श्रीनिकेतन श्यामसुन्दर श्रीवल्लभको मन्द मुस्कानके | सिन्दूरकी बेंदी लगा रखी थी, जो अनारके
साथ देखा। देखते ही उसके दोनों हाथ जुड़ गये। फूलकी भाँति लाल थी। उस बेंदीके ऊपर
वह भक्तिसे विनीत हो गयी और सहसा चरणोंमें कस्तूरी और चन्दनके भी बिन्दु थे। उस
सिर रखकर उसने प्रणाम किया। साथ ही उनके सुन्दरीने अपने हाथमे रत्नमय दर्पण ले रखा था।
श्याम मनोहर अङ्गम चन्दनं लगाया। श्रीकृष्णके श्रीनिवास हरि उसे आश्वासन देकर आगे बढ़
जो सखा थे, उनके अद्गौमे भी चन्दनका गये। वह कृतार्थं हो प्रसन्नतापूर्वक अपने घर
न “7 गयी, मानो लक्ष्मी अपने धामको जा रही हो।
+ (| उसने अपने घरको देखा । वह लक्ष्मीके निवास-
९ || मन्दिरकौ भाँति मनोहर हो गया था। उसमें
2२... | र्नमयी शय्या बिछी थी तथा उस, भवनका
„., | || निर्माण श्रेष्ठ रत्नके सारतत्त्वसे हुआ था। रल्नोंकी
|| दीपमालाएँ अपनी प्रभासे उस गृहको उद्धासिते
कर रहौ थीं। उस भवनमें सब ओर रब्रमय
दर्पण लगे धे, जो उसकी भव्यताको बढ़ा रहे
थे। सिन्दूर, वस्त्र, ताम्बूल, धेत चंवर और
| माला लिये दास-दासियोके समुदाय उस दिव्य
भवनको घेरकर खड़े थे। मुने! सुन्दरौ कुब्जा
मन, वाणी और शरीरसे श्रीहरिके चरणोंके ही
चिन्तन और समाराधनमें लगी थी । वह निरन्तर
अनुलेपन किया। फिर चन्दनका सुवर्णमय पात्र
हाथमें लिये श्रेष्ठ दासीने बारंबार परिक्रमा करके
श्रीकृष्णको प्रणाम किया । श्रीकृष्णकी दृष्टि पड़ते
ही वह सहस्रा अनुपम शोभासे सम्पन्न तथा रूप
और यौवनसे लक्ष्मीके समान रमणीय हो गयी । |
आगमे तपाकर शुद्ध की हुई स्वर्णप्रतिमाके समान
दीषिमती हो उठी। सुन्दर वस्त्र और रत्रोंके
[यही सोचती रहती थी कि कब श्रीहरिका
|शुभागमन होगा और कब मैं उनके मनोहर
| मुखचन्द्रके दर्शन पाऊँगी। उसे सारा जगत् सदा
श्रीकृष्णमय दिखायी देता था। करोड़ों कन्दर्पोंकी
लावण्य-लौलासे सुशोभित श्यामसुन्दर पलभरके
| लिये भी उसे भूलते नहीं थे।
कुब्जाकों बिदा करनेके पश्चात् श्रीकृष्णने
आभूषण उसके अद्गौकौ शोभा बढ़ाने लगे। वह | एक मनोहर मालौको देखा, जो मालाओंका समूह
बारह वर्षकी अवस्थावाली कुमारी कन्याके समान | लिये राजभवनकी ओर जा रहा था। उसने भी
धन्या ओर मनोहारिणी प्रतीत होने लगौ । बहुमूल्य | श्रौकान्तको देख पृथ्वीपर माधा टेककर उन्हें
रत्रोंद्वारा निर्मित श्रेष्ठतम हारसे उसका वक्षःस्थल | प्रणाम किया ओर अपनी सारी मालां परमात्मा
उद्धासित हो उठा। वह गजराजकौ भांति मन्द | श्रीकृष्णको अर्पित कर दीं । श्रीकृष्ण उसे अत्यन्त
गतिसे चलने लगी । रत्नोंके मज्लीर उसके चरणोंकी | दुर्लभ दास्यभावका वरदान दे मालाएँ पहनकर उस
शोभा बढाने लगे। सिरपर केशोंकी बंधी हुई वेणी | सुन्दर राजमार्गपर आगे बढ़ गये । तदनन्तर उन्हें
मालतीकी मालासे आवेष्टित धी, जो सुन्दर और | एक धोबी दिखायी दिया, जो वस्त्रौका गट्टर लिये