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* श्रीकृष्णजन्मखण्ड *

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नन्दका शिशु श्रीकृष्णको लेकर वनमें गो-चारणके लिये जाना, श्रीराधाका

आगमन, नन्दसे उनकी वार्ता, शिशु कृष्णको लेकर राधाका एकान्त बनमें

जाना, वहाँ रत्नमण्डपमें नवतरुण श्रीकृष्णका प्रादुर्भाव, श्रीराधा-कृष्णकी

परस्पर प्रेमवार्ता, ब्रह्माजीका आगमन, उनके द्वारा श्रीकृष्ण ओर

राधाकी स्तुति, बर प्राति तथा उनका विवाह कराना, नवदम्पतिका

प्रेम-मिलन तथा आकाशवाणीके आश्वासन देनेपर शिशुरूपधारी

श्रीकृष्णको लेकर राधाका यशोदाजीके पास पहुँचाना

भगवान्‌ नारायण कहते हैँ-- नारद ! एक | थी । उनका मुख शरत्कालकी पूर्णिमाके चन्द्रमाकी

दिन नन्दजी श्रीकृष्णको साथ लेकर वृन्दावने

गये ओर वहाँ भाण्डौर उपवने गौओंको चराने

लगे। उस भूभागे स्वच्छ तथा स्वादिष्ट जलसे

भरा हुआ एक सरोवर था। नन्दजीने गौओंको

उसका जल पिलाया और स्वयं भी पीया। इसके |

बाद वे बालकको गोदमें लेकर एक वृक्षकी

जड़के पास बैठ गये। मुने! इसी समय मायासे

मानव-शरीर धारण करनेवाले श्रीकृष्णने अपनी

मायाद्वाय अकस्मात्‌ आकाशको मेषमालासे आच्छादित

कर दिया। नन्दजीने देखा-- आकाश बादलोंसे

ढक गया है । वनका भीतरी भाग और भी श्यामल |

हो गया है । वषकि साथ जोर-जोरसे हवा चलने

लगी है। बडे जोरकी गड़गड़ाहट हो रही है।

वज़की दारुण गर्जना सुनायी देती है । मूसलथार

पानी बरस रहा है ओर वृक्ष कोपि रहे हैं। उनकी

डालियाँ टूट-टूटकर गिर रहौ हैँ । यह सब

देखकर नन्दको बड़ा भय हुआ। वे सोचने

लगे-' मैं गौओं तथा बछड़ोंकों छोड़कर अपने

घरको कैसे जाऊँगा और यदि घरको नहीं जाऊँगा

तो इस बालकका क्या होगा ?" नन्दजी इस प्रकार

कह हो रहे थे कि श्रीहरि उस समय जलकी

वषकि भयसे रोने लगे। उन्होंने पिताके कण्टको

जोरसे पकड़ लिया।

इसी समय राधा श्रीकृष्णके समीप आयीं । |

वे अपनी गतिसे राजहंस तथा खज्जनके गर्वका |

गज्जन कर रही थीं। उनकी आकृति बड़ी मनोहर |

आभाको छोने लेता था। नेत्र शरत्कालके मध्याहमें

खिले हुए कमलौकौ शोभाको तिरस्कृत कर रहे

थे। दोनों आँखोंमें तारा, बरौनी तथा अज्जनसे

विचित्र शोभाका विस्तार हो रहा था। उनकी

नासिका पक्षिराज गरुड़की चोचकौ मनोहर सुषमाको

लज्जित कर रही धी। उस नासिकाके मध्यभागमें

शोभनीय मोतीकी बुलाक उज्ज्वल आभाकी सृष्टि

कर रही थी। केश-कलापोंकी वेणीमें मालतीकी

माला लिपटी हुई थी। दोनों कानॉमें ग्रीष्म-ऋतुके

मध्याहकालिक सूर्यकी प्रभाको तिरस्कृत करनेवाले

कान्तिमान्‌ कुण्डल झलमला रहे थे। दोनों ओठ

पके बिम्बाफलकी शोभाको चुराये लेते थे।

मुक्तापंक्तिकी प्रभाकों फीकी करनेवाली दाँतोंकी

पंक्ति उनके मुखकी उज्ज्वलताको बढ़ा रही थी।

मन्द मुस्कान कुछ-कुछ खिले हुए कुन्द-

कुसुमोंकी सुन्दर प्रभाका तिरस्कार कर रही थी।

कस्तूरीकौ बिन्दुसे युक्त सिन्दूरकी बेंदी भालदेशको

विभूषित कर रही थी। शोभाशाली कपालपर

मल्लिका-पुष्प धारण करके सती राधा बड़ी सुन्दरी

दिखायी देती थीं। सुन्दर, मनोहर एवं गोलाकार

कपोलपर रोमाञ्च हो आया था। उनका वक्षःस्थल

मणिरलेन्द्रके सारतत्त्वसे निर्मित हारसे विभूषित

था। उनका उदर गोलाकार, सुन्दर और अत्यन्त

मनोहर था। विचित्र त्रिवलीकी शोभासे सम्पन्न

दिखायी देता था। उनकी नाभि कुछ गहरी थी।

कटिप्रदेश उत्तम रत्नोंके सारतत््वसे रचित मेखला-

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