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पुष्पराग प्रकारादि मुक्ताकार वर्णन |] [ ४७६

ये रुदरास्तानसंख्यातान्को वा वक्तु पटुभवेत्‌ ।

ये शद्रा अधिभम्यां तु सहस्राणां सहस्रशः ॥।८<

दिवि येऽपि च वर्तते सहस्राणां सहस्रशः । .

येषामन्नभिषण्च॑व येषां वातास्तथेषवः ८६

येषां च वर्ष मिषवः प्रदीप्ताः पिङ्खलेभणाः ।

अर्णवे चांतरिक्षे तर वतमाना महौजसः ६०

जटावंतो मधुष्मन्तो नीलग्रीवा विलोहिताः ।

ये भूतानामधिभूवो विशिखासः कपदिनः ।।९ १

ललिता के वर्शन से भध्रष्ट--उद्धत और गुरु के द्वारा धिक्छृत हैं

उनको शूल की कोटि से भेदन करके विनष्ट कर देता है ॥ तथा नेर से

समुत्पस्न तीक्ष्ण पावक से उनके भृत्य-वघ्‌ और सन्तति का दाह करके

विनाश कर दिया करता है। यह महावीर आज्ञा का पालक और ललिता

का आदेश करने वाला है ।८५-८६। है कुम्मसम्भव ! यह अतीव सुरस्य

रुद्रलोक में विद्यमान रहता है । हे ऋषे ! उस महारुद्र के परिवार प्रमाथी

है ।८७। जो भी रुद्र हैं वे अगणित हैं ऐसा कोई भी पटु नहीं है कि उनकी

गणना कर सके | जो रुद्र भूमि में है वे भी सदस्रों ही हैं ।८८। और जो

दिबलोक में हूँ वे भी हजारों ही हैं। जिनके अन्नमिष हैं और जिनके वात्त

तथा इषु है ।८६। और जिनके वषे इषु हैं--ये परम प्रदीघ्त हैं तथा इनके

नेत्र पिङ्गल वर्ण के है। ये महान ओज वाले सागर में--अन्तरिक्ष में भी

वर्तमान रहा करते ।६०। ये जटाजूट धारी है- मधुमान हैं--इनकी ग्रीवा

नील वर्ण की है और बिलोहिव हैं। ये भूतों के अधिभू हैं--विशिखा और

कपर्दी हें ।६१।

ये अन्नेषु विविध्यंति पातेषु पिबतो जनाद्‌ !

ये पथां रथकास्द्राये च तीर्थंनिवासिनः।\६२

सहस्रसंख्या ये चान्ये सृक।वंतो निषंभिणः ।

ललिताज्ञाप्रणेतारो दिगो रद्रा वितस्थिरे ॥¦ ६३

ते सवे सु महात्मान; क्षणाद्विश्वत्रयीवहा: ।

श्रीदेव्या ध्याननिष्णाताज्छदेवीमन्तर जापिनः ।\ ६४

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