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३९६ ॥ै [ ब्रह्माण्ड पुराण

इस तरह से दिखाई गयीं उन शक्तियों को देखकर जो मेरेय सीधु से

आनन्दित हो रही थी दण्डिनी अत्यन्त प्रसन्न हुई थी और उससे कहां था

। ८५। हे मदन्धे ! मैं बहुत ही यदि तुष्ट हुई हैं। आपने हमारी सहायता

की है । यह देव कायं है इसको आपने विघ्न रहित कर दिया है ।८६। अब

इससे आगे द्वापर युग में मेरे प्रसाद से मश्च में याज्षिकों केद्वारा सोम के

पान के ही समान आप अत्यन्त उपयोग के योग्य होगे ।=७। समस्त देवगण

याग में मन्त्र से पूत करके इसका पान किया करेंगे। यागो में मन्त्र से पवित्र

का पान भक्तजन करेंगे ।८८। इसके प्रभाव से सिद्धि-ऋद्धि--स्वगं--अपवर्गं

को प्राप्त करेंगे। महेश्वरो--महादेव--बल देव--भागंव--दत्ता त्रेय--विधि-

विष्णु--ऐसे महान सिद्धि जन भी तुम्हारा पान करेगे ।८६। याग में सम-

चित तू सब प्रकार की प्रदान करोगी ॥६०। इस प्रकार से वरदान)के

द्वारा सुराम्बुधि को तुष्ट कियाथा।६१। |

मंत्रिणी त्वरयामास पुनयुद्धाय दण्डिनी ।

पुनः प्रवतत युद्धं शक्तीनां दानवैः सह ६२

मुदाट्टहासनिर्भिन्नदिगश्ट्कधरा धरम्‌ ।

प्रत्यग्रमदिरामत्ताः पाटलीकृतलोचना: ।

णक्तयो दैत्यचक्रेषु न्यपतन्नेकहैलया ॥।६३

दवयेन दयमारेजे गक्तीनां समदश्रियाम॒ ।

मदरागेण चक्ष्‌ षि देत्यरक्तेन शस्त्रिका ६४

तथा बभूव तुमुलं युद्धं णक्तिसुरद्िषाम्‌ ।

यथा मृ्थुरवित्रस्तः प्रजाः संहरते स्वयम्‌ ।६५

सस्खलत्पदविन्यासामदेनारक्तरश्यः ।

स्खलदक्षरसंदभेवी रभाषा रणोद्धताः ॥8६

कदम्बगोलकाकारा टष्टसर्वागदृष्टयः । -

युवराजस्य सेन्यानि शक्तयः समनाशयन्‌ ।&७

अक्षौहिणीशतं तत्र दण्डिनी सा व्यदारयत्‌ ।

अक्षीहिणोसाद्ध शतं नाशयामास मन्त्रिणी &८

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