३६५ |] [ ब्रह्माण्ड पुराण
को पूर्णतया शून्य कर दिया था । वह् राजा ऐसा बलवान् था कि उसने
अपनी समग्र सेना के द्वारा मदन करके सबको भीड़ डाला था और सम्पूर्ण
भूतलं को प्रमृष्ट कर दिया था ।१६। उस राजा ने हैहयों के समस्त राज्य
को धूल में मिला दिया था जब्र वहा कुछ भी शेष न रहा तो वे सब
अपने राज्य और पुरोको छोड़कर क्षीण कन्ति वाले और विनष्ट ऐश्वर्य
वाले हो गये ये ।१७। जो राजा मरने से बच गये थे, ऐसे बहुत से वहाँ चारों
ओर भाग गये थे । उस महीपति ने जो भी वहाँ से भाग रहे थे उनको वेग
से आगे बढ़कर निग्रहीत कर लिया था । १८ इस मदोन्मत्त बलवान् नृप ने
कर. द्ध अन्तक जैसे प्रजाओं को मार दिया करता है वैसे ही इसने भी सबका
संहार कर दिया था । समर में शत्र्ओं के हनन करने वाले राजा सगर ने
उन पर बड़ा भारी क्रोध किया था ।१६। फिर सगर नृप ने महान् रौद्र-
शत्रुओं के लिये बहुत ही भीषण भागंव अस्च्र को उन पर छोड़ा था | इस
महास्त्र का बड़ा भारी सब पर प्रभाव पड़ा था | उसके छोड़े जाने पर जो
कि अत्यन्त ही रौद्र था, वह तीनों भवनों को भय देने वाला था| ऐसा
प्रस्फुरण करता हुआ जो भागंव अस्त्र था उसकी ज्वालाओं से दग्ध होते
हुए और अवश शरीरों वाले वे समस्त न,पगण हो गये थे । इसके उपरान्त
जो वायु-अस्त्र का प्रयोग करने से चारों ओर घूम के समूह ने उनको ऐसा
घेर लिया था कि वहाँ पर घोर अन्धकार से उन को दृष्टि भी मुष्ट हो गयी
थी अर्थात् देखने की शक्ति समाप्त हो गयी थी और मुहुत्त भर तक तो वे
सब अधिक अन्धकार और रज से ढके हुए होकर भूमि के पृष्ठ पर लोटते
हुए चक्कर काट रहे थे ।२०। शन्न् ओों के सेनिकों की दशा उस समय में ऐसी
हो गयी थी कि छोड़ हुए आग्नेयास्त्र के प्रताप से जिनकी गति प्रतिहत हो
गयी है अर्थात् वे चलने में असमर्थ हो गये थे क्योंकि उनको उस समय में
मार्ग दिखलाई नहीं दे रहा था--चारों ओर उन न पों के सङ्कु नष्ट हो गये
थे और उनके शरीर परवश हो गये थे तथा उनके चित्त ब्याकुल हो गये
थे। वे ऐसे भीत हो गये थे कि उन्होने अपने वस्त्र-आयुध-कवच और
विभूषा आदि सग्रका त्याग कर दिया था-उनके मस्तकों के केश खुले हुए
थे--वे सब अत्यन्त उन्मत्तो के हौ भावोंका उस समय में अनुकरण कर
रहे थे ।२१।
विजित्य हैहयान्सर्वान्समरे सगरो बलो ।
संक्षब्धम्नागराकारः कांवोजानभ्यवतंत ॥२२