परशुराम,की-प्रतिज्ञा | { २३३
का आलम्बन ग्रहण किया था । और उसके जो पुत्र थे उन्होंने. भी उसके
वचनो के गौरव से परम प्रसन्नता प्राप्त की थी ।४७। इसके पश्चात् उन्होने
उस मुनि अपने पिता के मृत शरीर को आश्रम को भीतर ले जाकर रख
दिया था ओर उसको बहा लिटाकर निवात में वे उसके चारों ओर बैठ गये
थे ॥४८।:जिस समय में थे वहाँ पर बहुत ही खिन्न आत्मा और - मनो वाले
बेठे हुए थे-तो उस बेला में उनको बहुत से परम शुभ एवं महान् निमित्त हुए
थे । अच्छे शकुन दिखाई दिये ये ।४६।
तेन: ते किंचिदाश्वस्तचेतसो मुनिषु गवाः ।
निषेदुः संहिता मात्रा कांक्षंतों जीवित पितुः ॥५०
एतस्मिन्नंतरे राजश्भरगुवं शधरो मुनिः । `
- विधेर्बलेन मलिमांस्तत्रागछछहरुछया ॥५१
अथर्वणां विधिः साक्षाद्रेदवेदांगपारगः ।
सवं शास्त्राथं वि्प्राज्ञः सकलासुरवंदितः ।।५२
मृतसंजीविनीं विचा यो वेद मुनिदुर्लेभास् ।
यथाहतान्मृतान्देवरुस्थापयति वान वाच् ।। ५३
शास्त्रमौशनसं येन राज्ञां राज्यफलप्रदम् ।
प्रणीतमनुजीवेत्ति सर्वेऽद्यापीह पाथिवाः ॥५४
स तदाश्रममासाच प्रविष्टोऽतमंहामुनिः ।
ददशं तदवस्थास्तान्सर्वान्दुःख परिप्लुतान् ॥ ५४
अथ ते तु भृगु हष्ट्वां वंशस्य पितरं मुदा ।
उत्थायास्मै ददुश्चापि सक्त्य परमासनम् ॥ ५६
इस रीति से जब शुभ णक्रुन दिखाई दिये तो उनके देखने से वे श्रेष्ठ
मुनिगण परम आश्वस्त मनं वाले/हो गये ये अर्थात् उनको-कुछशुभाशा हुई.
थी । वे सभी अपने पिता के जीवित की आकाङ्क्षा करते हुए माता के
साथ वहां पर बैठ गये थे ।५०। है राजन ! इसी बीच में भूग्ु के वंश को
धारण करने वाले मतिमानु मुंनि विधि के वल से यद्दंचछा से ही वहाँ पर
समागत हो गये थे ।५१। वे मुनि अथर्व वेद की साक्षात् विधि कै स्वरूप
वाले थे और अन्य सभी वेदों लथा वेदोंके अङ्ग शास्त्रों के पारगामी मनीषी