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और कालीसे सर्वगत नामके पुत्र हुए। सहदेवके
पर्वतकुमारी विजयासे सुहोत्र ओर नकुलके करेणुमतीसे
नरमित्र हुआ। अर्जुनद्वारा नागकन्या उलूपीके गर्भसे
इवान् और मणिपुर नरेशकी कन्यासे बधरुवाहनका जन्म
हआ । बभ्रुवाहन अपने नानाका ही पुत्र माना गया ।
क्योंकि पहले ही यह बात तय हो चुकी थी ॥ २९-३२ ॥
अर्जुनकी सुभद्रा नामक पत्नीसे तुम्हारे पिता अभिमन्युका
जन्म हुआ। वीर अभिमन्युने सभी अतिरथियोंको जीत
लिया था। अभिम-्युके द्वारा उत्तराके गर्भसे तुम्हारा जन्म
हुआ॥ ३३ ॥ परीक्षित् ! उस समय कुरुवंशका नाश हो
चुका था। अभ्रत्थामाके ब्रह्मास्नसे तुम भी जल ही चुके
थे, परन्तु भगवान् श्रीकृष्णने अपने प्रभावसे तुम्हें उस
जीता-जागता बचा लिया ॥ ३४ ॥
परीक्षित्! तुम्हारे पुत्र तो सामने ही बैठे
है--इनके नाम हैं--जनमेजय, श्रुतसेन, भीमसेन और
उग्रसेन। ये सब-के-सब बड़े पराक्रमी हैं॥ ३५॥ जब
तक्षकके काटनेसे तुम्हारी मृत्यु हो जायगी, तब इस
बातको जानकर जनमेजय बहुत क्रोधित होगा और यह
सर्प-यज्ञकी आगमे सर्पोंका हवन करेगा॥ ३६॥ यह
कावषेव तुरको पुरोहित बनाकर अश्वमेध यज्ञ करेगा और
सब ओरसे सारी पृथ्वीपर विजय प्राप्त करके यजञेकि द्वारा
भगवान्की आराधना करेगा ॥ ३७॥ जनमेजयका
होगा शतानीक । वह याज्ञवल्क्य ऋषिसे तीनों वेद
कर्मकाण्डकी तथा कृपाचार्यसे अख्नरविद्याकी शिक्षा प्राप्त
करेगा एवं शौनकजीसे आत्मज्ञानका सम्पादन करके
परमात्माको प्राप्त होगा ॥ ३८ ॥ शतानीकका सदस्नानीक,
सहस्तानीकका अश्वमेधज, अश्वमेघजका असीमकृष्ण
और असीमकृष्णका पुत्र होगा नेमिचक्र ॥३९॥ जब
हस्तिनापुर गङ्गाजीमे बह जायगा, तब वह कौशाम्बीपुरीमें
सुखपूर्वक निवास करेगा। नेमिचक्रका पुत्र होगा चित्ररथ,
चित्ररथका कविरथ, कविरथका वृष्टिमान्, वृष्टिमानका
राजा सुषेण, सुषेणका सुनीथ, सुनीथका नृचक्षु, नृचक्षुका
सुखीनल, सुखीनलका परिप्लव, परिप्लवका सुनय,
सुनयका मेधावी, मेधावीका नृपञ्ञय, नृपञ्जयका दूर्व और
दूर्वका पुत्र तिमि होगा ॥४०-४२ ॥ तिमिसे बृहद्रथ,
बृहद्रथसे सुदास, सुदाससे शतानीक, शतानीकस दुर्दमन,
दुर्दमनसे वहीनर, वहीनरसे दण्डपाणि, दण्डपाणिसे निमि
और निमिते राजा क्षेमकका जन्म होगा । इस प्रकार मैंने
तुं ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनोकि उत्पत्तिस्थान सोमवंशका
वर्णन सुनाया। बड़े-बड़े देवता और ऋषि इस वंशका
सत्कार करते हैं॥ ४३-४४ ॥ यह वंश कलियुगमें राजा
क्षेमकके साथ ही समाप्त हो जायगा। अब मैं भविष्यमें
होनेवाले मगध देशके राजाओंका वर्णन सुनाता
हूँ ॥ ४५॥
जरासन्धके पुत्र सहदेवसे मार्जारे, मार्जारिसे
श्रुतश्रवा, श्रुतश्रवासे अयुतायु और अयुतायुसे निरमित्र
नामक पुत्र होगा॥ ४६ ॥ निरमित्रके सुनक्षत्र, सुनक्षत्रके
बुहत्येन, वृहत्सेनके कर्मजित्, कर्मजितके सृतञ्ब,
सूतञ्जयके विप्र और विप्रके पुत्रका नाम होगा
शुचि ॥ ४७॥ शुचिसे क्षेम, क्षेमसे सुब्रत, सुत्रतसे
धर्मसूत्र, धर्मसूत्रसे शम, शमसे द्युमत्सेन, द्युमत्सेनसे
सुमति और सुमतिसे सुबलका जन्म होगा ॥ ४८ ॥
सुबलका सुनीथ, सुनीथका सत्यजित्, सत्यजित्का
विश्वजित् और विश्वजित्का पुत्र रिपुञ्जय होगा । ये सब
बृहद्रथवंशके राजा गे । इनका शासनकाल एक हजार
वर्षके भीतर ही होगा ॥ ४९ ॥
के के कं के के
तेईसवाँ अध्याय
अनु, दुह्य, तुर्वसु ओर यदुके बंशका वर्णन
श्रीशुकदेवजौ कहते है-- परीक्षित् । ययातिनन्दन
अनुके तीन पुत्र हुए--सभानर, चक्षु और परोक्ष ।
सभानरका कालनर, कालनरका सृञ्जय, सूञ्ञयका
जनमेजय, जनमेजयका महाशील, महाशीलका पुत्र हुआ
महामना । महामनाके दो पुत्र हुए-- उशीनर एवं
तितिक्षु ॥ १-२ ॥ उशीनरके चार पुत्र थे-- शिबि, वन,