Home
← पिछला
अगला →

सुनावे। परशुराम! ऐसा करनेसे वह स्त्री उसे

चाहने लगती है, इसमें अन्यथा विचार नहीं करना

चाहिये। 'रथन्तर-साम' एवं “वामदेव्य-साम

ब्रह्मतेजकी वृद्धि करनेवाले हैं। 'इन्द्रमिद्गाथिनो० '

(१९८) इत्यादि मन्त्रका जप करके घृतमें मिलाया

हुआ बचा चूर्ण प्रतिदिन बालकको खिलाये। इससे

वह श्रुतिधर हो जाता है, अर्थात्‌ एक बार सुननेसे

ही उसे शास्त्रकी पंक्तियाँ याद हो जाती हैं।

'रथन्तर-साम' का जप एवं उसके द्वारा होम करके

पुरुष निस्संदेह पुत्र प्राप्त कर लेता है। "मयि

श्री:०' ("मयि वर्चो अथो०') (६०२)-यह

मन्त्रे लक्ष्मीकी वृद्धि करनेवाला है। इसका जप

करना चाहिये। प्रतिदिन “वैरूप्याष्टक' (वैरूप्य

सामके आठ मन्त्र) -का पाठ करनेवाला लक्ष्मीकी

प्राप्ति करता है। “'सप्ताष्टक "का प्रयोग करनेवाला

समस्त कामनाओंको प्राप्त कर लेता है। जो

मनुष्य प्रतिदिन प्रातःकाल एवं सायंकाल

आलस्यरहित होकर " गव्योषुणो यथा०' (१८६) --

इस मन्त्र॑से गौओंका उपस्थान करता है, उसके

घरमे गौएँ सदा बनी रहती है । “वात आ वातु

भेषजम्‌०' (१८४) मन्त्रसे एक द्रोण घृतमिश्रित

विधिपूर्वक होम करके मनुष्य सारी मायाको

नष्ट कर देता है । "प्र दैवोदासो०' (५१) आदि

' | सामसे तिलका होम करके मनुष्य अभिचारकर्मको

शान्त कर देता है। “अभि त्वा शूर नोनुमो०'

(२३३)--इस सामको अन्तर्मे वषट्कारसे संयुक्त

करके [इससे वासक (अडूसा) वृक्षक एक

हजार समिधाओंका होम युद्धमें विजयकी प्राप्ति

करानेवाला है ।] उसके साथ " वामदेव्यसाम'का

सहसत बार जप और उसके द्वारा होम किया

जाय तो वह युद्धे विजयदायक होता है।

विद्वान्‌ पुरुष सुन्दर पिष्टमय हाथी, घोड़े एवं

मनुष्योंका निर्माण करे । फिर शत्रुपक्षके प्रधान-

प्रधान वीर्ोको लक्ष्ये रखकर उन पसीजे हुए

पिष्टकमय पुरुषोके छुरेसे टुकडे-टुकडे कर डाले :

तदनन्तर मन्त्रवेत्त पुरुष उन्हें सरसोकि तेलमें भिगोकर

"अभि त्वा शूर नोनुमो°' (२३३)--इस मन्तरसे

उनका क्रोधपूर्वक हवन करे । बुद्धिमान्‌ पुरुष यह

अभिचारकर्म करके संग्राममे विजय प्राप्त करता

है। गारुड, वामदेव्य, रथन्तर एवं बृहद्रथ-साम

निस्संदेह समस्त पापोंका शमन करनेवाले कहे

गवे है ॥ १--२४॥

इस प्रकार आदि आग्रेव महापुराण्मे 'साम-विधान” नामक

दो सौ इकसठवाँ अध्याय पूर हुआ ॥ २६११

दो सौ बासठवाँ अध्याय

अथर्वविधान- अथर्ववेदोक्त मन््रोंका विभिन क्मेमिं विनियोग

पुष्कर कहते रै - परशुराम! ' सापविधान

कहा गया । अब मैं ' अथर्वविधान 'का वर्णन करूँगा।

शान्तातीयगणके उद्देश्यसे हवन करके मानव शान्ति

प्राप्त करता है। भैषज्यगणके उद्देश्यसे होम करके

होता समस्त रोगॉको दूर करता है। त्रिसप्तीयगणके

उद्देश्यसे आहुतियाँ देनेवाला सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त

हो जाता है। अभयगणके उद्देश्यसे होम करनेपर

परशुराम ! अपराजितगणके उद्देश्यसे हवन करनेवाला

कभी पराजित नहीं होता। आयुष्यगणके उद्देश्यसे

आहुतियाँ देकर मानव दुर्मृत्युको दूर कर देता है।

स्वस्त्ययनगणके उद्देश्य्से हवन करनेपर सर्वत्र

मङ्गलकी प्राप्ति होती है। शर्मवर्मगणके उद्देश्यसे

होम करनेवाला कल्याणका भागी होता है।

वास्तोष्पत्यगणके उद्देश्य्से आहुतियाँ देनेपर

मनुष्य किसी स्थानपर भी भय नहीं प्राप्त करता। | वास्तुदोषकी शान्ति होती है। रौद्रगणके लिये

← पिछला
अगला →