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« पुराणौ परमं पुण्यं भविष्यं सर्वसौर्यदम् [
{ संक्षिप्त भविष्यपुराणाङ्क
और ये पचहक्तर वर्चसे अधिक जीते भी नहीं हैं। जिस सोके
दाँत लाल, पीले एवं सफेद हों और विषका येग भी मंद हो,
वे अल्पायु और बहुत डरपोक होते हैं।
सोधको एक मुँह, दो जीभ, बत्तीस दाँत और विषसे भरी
हुई चार दाढ़ें होती हैं। उन दाढ़ोंके नाम मकरी, कराली,
क्रलात्री ओर यमदूतौ है। इनके क्रमशः बहा, विष्णु, रुद्र
और यम--ये चार देवता हैं। यमदूती नामकी दाद् सबसे
ऋ टी होती है। इससे साँप जिसे काटता है वह तत्क्षण मर
जाता है। इसपर मन्त्र, तन्त्र, ओषधि आदिका कुछ भी असर
नहीं होता। पकी दाढ़का चिह्न झख्बके समान, करालीका
काकके पैरके समान तथा कालरात्रीका हाथके समान चिह्न
होता है और यमदूती कूर्मके समान होती है। ये क्रमदाः एक,
दो, तीन और चार महीनोंमें उत्पन्न होती हैं और क्रमशः वात,
पित्त, कफ और संनिषात इनमें होता है । क्रमशः गुड़युक्त धात,
कपषाययुक्त अन्न, कटु पदार्थ, स॑निषातमें दिया जानेवास्थ पथ्य
इनके द्वारा काटे गये व्यक्तिको देना चाहिये । श्वेत, रक्त, पीते
और कृष्ण--इन चार दाढ़ोंके क्रमशः रेग हैं। इनके वर्ण
क्रमाः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैद्य और शुद्र हैं। सपॉके दाढ़ोंमें
सदा विष नहीं रहता । दाहिने नेत्रे समीप विष रहनेका स्थान
है । क्रोध करनेपर वह विष पहले मस्तकमें जाता है, मस्तकसे
धमनी और फिर नाड़ियोंके द्वारा दाढ़में पहुँच जाता है।
आठ कारणोंसे साँप काटता है--दबनेसे, पहलेके
वैरसे, भयसे, सदसे, भूखसे, विषका येग होनेसे, संतानकी
रक्षाके लिये तथा काले प्रेरणासे । जब सर्प काटते ही पेटकी
ओर उलर जाता है और उसकी दादृ टेढ़ी हो जाती है, तब
उसे दबा हुआ समझना चाहिये। जिसके काटनेसे बहुत बड़ा
घाव हो जाय, उसको अत्यन्त देषसे काटा है, ऐसा समझना
चाहिये। एक दाढ़का चिह्न हो जाय, किंतु वह भी भल्जीभाँति
दिखायी न पड़े तो भयसे काटा हुआ समझना चाहिये। इसी
प्रकार रेखाकी तरह दाढ़ दिखायी दे तो मदसे काटा हुआ, दो
दाद दिखायी दे और बड़ा घाव भर जाय तो भूखसे काटा
हुआ, दो दाढ़ दिखायी दे और घावमे रक्त हो जाय तो विषके
वेगसे काटा हुआ, दो दाढ़ दिखायी दे,कितु घाव न रहे तो
सैतानकी रक्षाके छिये काटा हुआ मानना चाहिये। काकके
पैस्की तरह तीन दाद् गहरे दिखायी दें या चार दाढ़ दिखायी
दें तो कालकी प्रेरणासे काटा हुआ जानना चाहिये। यह
असाध्य है, इसको कोई भौ चिकित्सा नहीं है ।
सर्वके काटनेके दंष्ट, देष्टानुपीत और दैष्टोद्ध--ये तीन
भेद हैं। सर्पके काटनेके याद ग्रीवा यदि झुके तो षट तथा
काटकर पार करे तो देष्टानुपीत कहते हैं। इसमें तिहाई चिप
चढ़ता है और काटकर सब विष उल दे तथा स्वये निर्विष
होकर उट जाय--पीठके बल उल्टा हो जाय, उसका पेट
दिखायी दे तो उसे दंष्टोद्धत कहते हैं।
(अध्याय ३३)
विभिन्न तिथियों एवं नक्षत्रोंमें कालसर्पसे डैसे हुए पुरुषके लक्षण,
नागोंकी उत्पत्तिकी कथा
क्यप मुनि बोले-- गौतम ! अब मैं कालसर्पसे काटे
हुए पुरुषका लक्षण कहता हूँ, जिस पुरुषको कालसर्प काटता
है, उसकी जिह्वा भंग हो जाती है, हृदयमें दर्द होता है, नेतरि
दिख्यायी नहीं देता, दात और शरीर पके हुए जामुनके फलके
समान काले पदु जाते हैं, अड्जोंमें शिथिलता आ जाती है,
विष्ठाका परित्याग होने राता है, केथे, कमर ओर प्रीवा झुक
जाते हैं, मुख नीचेकी ओर लटक जाता है, आँखें चढ़ जाती
हैं, शरीरमें दाह और कम्य होने लगता है, बार-बार आँखें बंद
हो जतौ हैं, शख्बसे झरीरमें काटनेपर खून नहीं निकलता।
बेतसे सारनेषर भी झरीरमें रेखा नहो पड़ती, काटनेका स्थान
कटे हुए जामुनके सपान नीले रेणका, फूछा हुआ, रक्तसे
परिपूर्ण और कौएके पैरके समान हो जाता है, हिचकी आने
१-सभी सर्पोंक्रे टयाके रूपमे यन -रास्यो। विदोषकर गारुड़ोफनिफ्दमें सर्द -मन्त्र और सपक मणियाँ उसके विष्कों अचूक ओपधियां है ।
कुछ अस्य ओऑपधियाँ भी अचूक होती हैं जो सरयोफों शिर्विष एसे स्तम्थित बला देखो है । ड्भ पके काट लेनेपर किसों भो अन्य स्वकर विष
नहीं चढ़ता। नर्मदा स्दोकय कम लेनेसे भी साँप भागे है---
नर्मदायै जनः प्रार्र्त्भदाय तो निद्धि । नयोः्तु मदे नुभ्ये आहि पौ खिपसर्पततः ॥
(किष्णु२- ४।३।१३)