काण्ड २० सुक्त १२ ७
५०६७. महो महानि पनयन्त्यस्थेन्द्रस्थ कर्म सुकृता पुरूणि।
वृजनेन वृजिनान्त्सं पिपेष मायाभिर्दस्यूँर॒भिभूत्योजा: ॥६ ॥
स्तोतागण महान् पराक्रमी इब्देव के श्रेष्ठ कर्मों का गुणगान करते हैं। वे इन्द्रदेव ने अपनी सामर्थ्यों से
शत्रुओं के पराभवकर्त्ता हैं । उन्होंने अपनी माया द्वारा बलवान् दस्यु ओं को पूरी तरह से नष्ट किया ॥६ ॥
५०६८. युधेन्द्रो महावरिद्श्चकार देवेभ्य: सत्पतिश्नर्षणिप्रा: ।
विवस्वतः सदने अस्य तानि विप्रा उक्थेभिः कवयो गृणन्ति ॥७ ॥
सज्जनों के अधिपति और उनके मनोरथो की पूर्ति करने वाले इद्ररेवौपरपनी महत्ता से वुद्धौ में देवों को
श्रेष्ठता प्रमाणित की । बुद्धिमान् स्तोतागण यजपान के घर मे इन्द्रदेव के उन श्रेष्ठ कर्मो की प्रशंसा करते है ॥७ ॥
५०६९. सत्रासाहं वरेण्यं सहोदां ससवांसं स्वरपश्च देवीः ।
ससान यः पृथिवी द्यामुतेमामिनद्रं मदन्त्यनु धीरणासः ॥८ ॥
स्तोतागण शत्रु-विजेता, वरणीय, बलप्रदाता, स्वर्ग-सुख और दीप्तिमान् जल के अधिपति इन्द्रदेव की उत्तम
स्तुतियों से वन्दना करते हैं, उन्होंने इस चरुलोक और पृथ्वो लोक को अपने ऐश्वर्यों के बल पर धारण किया ॥८ ॥
५०७०. ससानात्याँ उत सूयं ससानेन््रः ससान पुरुभोजसं गाम् ।
हिरण्ययपुतभोगं ससान हत्वी दस्यून प्राय॑ वर्णमावत् ॥९॥
इद्धदेव ने अत्यो ( लाँघ जाने वाले अश्वो या शक्ति प्रवाहो ) का , सूर्य एवं पर्याप्त भोजन प्रदान करने
वाली गौओं का, स्वर्णिम अलंकारो एवं भोग्य पदार्थों का दान किया तथा दस्युओं को मारकर आर्यो की रक्षा की |
५०७१. इनदर ओषधीरसनोदहानि वनस्पर्तीरसनोदन्तरिक्षम्।
बिभेद वलं नुनुदे विवाचोऽथाभवद् दमिताभिक्रतूनाम् ॥१० ॥
इद्ध ने प्राणियों के कल्याण के लिए ओषधियां , दिन (प्रकाश) का अनुदान तथा वनस्पति ओर अन्तरिक्ष
प्रदान किया ।बलासुर का मर्दन किया, प्रतिवादियों को दूर किया और युद्धाभिमुख हुए शत्रुओं का दमन किया है।
५०७२. शुनं हुवेम मधवानमिन्द्रमस्मिन् भरे नृतमं वाजसातौ ।
शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम् ॥९९ ॥
हप अपने जीवन-संग्राम में संरक्षण प्राप्ति के लिए इनद्रदेव का आवाहन करते है । वे इद्धदेव पवित्रकर्ता
मनुष्यों के नियन्ता, स्तुतियों के श्रवणकर्ता, उम्र, युद्ध में शत्रु- विनाशकर्त्ता, धन-विजेता और ऐश्वर्यवान् है ॥११ ॥
[ सूक्त- १२ ]
[ ऋषि- वसिष्ठ ७ अत्रि | देवता- इन्द्र । छन्द- त्रिष्टप् ।]
५०७३. उदु ब्रह्माण्यैरत श्रवस्येन्द्रं समर्ये महया वसिष्ठ ।
आ यो विश्वानि शवसा ततानोपश्रोता म ईवतो वचांसि ॥१ ॥
हे वसिष्ठ ! (साधना के बल पर विशिष्ट पद प्राप्त ऋषि) अन्न (पोषक आहार) प्राप्ति की कामना से किये
जाने वाले यज्ञ में अपनी शक्ति से सम्पूर्ण भुवनों को विस्तृत करने वाले यश के संवर्द्धक, उपासकों की प्रार्थना
सुनने वाले इन्द्रदेव की महिमा का वर्णन करें । उनके लिए उत्तम स्तोत्रों का पाठ करें ॥१ ॥