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अपने या शत्रुके राज्यमें रहनेवाले सैनिकों या

चोरों आदिके कारण जो संकट उपस्थित होता है

उसका नाम दृष्टभय है। भरे हुए घड़ेको भद्रकुम्भ

और पूर्णकुम्भ कहते हैं। सोनेके गडुए या

झारीका नाम भृङ्गार ओर कनकालुका है। मतवाले

हाथीको प्रभिन्न, गर्जित और मत्त कहते हैं।

हाथीकी संडसे निकलनेवाले जलकणको वमथु

और करशीकर कहते है । सृणि और

ये दो हाथीको हाँकनेके काममें लाये

लोहेके कंटिका बोध कराते हैं। इनमें सृणि तो

स्त्रीलिङ्ग ओौर अङ्कूश पिङ्ग एवं नपुंसकलिङ्ग

है। परिस्तोम और कुथ हाथीकी गद्दी और झूलके

वाचक हैं। स्थ्रियोंके बैठनेयोग्य पर्देवाली गाड़ीको

कर्णीरथ और प्रवहण कहते हैं। दोला और

प्रेज्ढा-ये शूला अथवा डोलीके नाम हैं। इनका

स्त्रीलिङ्गे प्रयोग होता है । आधोरण, हस्तिपक,

हस्त्यारोह ओर निषादी -ये हाथीवानके अर्थे

आते है । लड्नेवाले सिपाहियोंको भट और योद्धा

कहते है । कञ्चुक ओर वारण -ये कवच (बख्तर)-

के नाम हैं। इनका प्रयोग स्त्रीलिङ्गके सिवा अन्य

लिङ्गे होता है। शौर्षण्य और शिरस्त्र -ये

सिरपर रखे जानेवाले टोपके नाम हैँ । तनुत्र, वर्म

और दंशन-ये भी कवचके अर्थमें आते हैं।

आमुक्त, प्रतिमुक्त, पिनद्ध और अपिनद्ध-ये

पहने हुए कवचके वाचक हैँ । सेनाकी मोर्चाबंदीका

नाम व्यूह और बल-विन्यास है। चक्र और

अनीक--ये नपुंसकलिङ्ग शब्द सेनाके वाचक हैं ।

पाँच पैदल हों, उसे पत्ति कहते हैँ । पत्तिके समस्त

अङ्गौको लगातार सात बार तीन गुना करते जायं

तो उत्तरोत्तर उसके ये नाम होंगे--सेनामुख,

गुल्म, गण, वाहिनी, पृतना, चमू और अनीकिनी ।

हाथी आदि सभी अङ्गोसे युक्त दस अनीकिनी

सेनाको अक्षौहिणी * कहते हैं। धनुष, कोदण्ड

और इष्वास -ये धनुषके नाम हैं। धनुषके दोनों

अङ - कोणोंको कोटि और अटनी कहते है । उसके

मध्य भागका नाम नस्तक (वा लस्तक) है।

प्रत्यञ्चाको मौर्वी, ज्या, शिञ्जिनी ओर गुण कहते

हैं। पृषत्क, बाण, विशिख, अजिद्यग, खग और

आशुग--ये वाचक पर्याय शब्द है ॥ १--१६॥

तृण, उपासङ्गं, तुणीर, निषङ्ग और इषुधि--

ये तरकसके नाम हैं। इनमें इषुधि शब्द पुंलिङ्गं

और स्त्रीलिङ्ग दोनों लिङ्गो आता है। असि,

ऋष्टि, निस्त्रिंश, करवाल ओर कृपाण -ये तलवारके

वाचक हैं। तलवारकी मुष्टिको सरु कहते हैं।

ईली ओर करपालिका (करवालिका) - ये गुप्तीके

नाम हैं। कुठार और सुधिति (या स्वधिति) -ये

कुल्हाडीके अर्थमें आते है । इनमें कुठार शब्दका

प्रयोग पिङ्ग ओर नपुंसकलिङ्ग -दो्नोमिं होता

है। छुरीको क्षुरिका ओर असिपुत्रिका कहते हैं।

प्रास और कुन्त भालेके नाम हँ । सर्वला और

तोमर गँड़ासेके अर्थे आते हैं। तोमर शब्द

पिङ्ग ओर नपुंसकलिङ्ग - दोनों प्रयुक्त होता

है । (यह बाण-विशेषका भी बोधक है)। जो

प्रातःकाल मङ्गल-गान करके राजाको जगाते है,

जिस सेनाम एक हाथी, एक रथ, तीन घोड़े और | उन्हें वैतालिक और बोधकर कहते हैँ । स्तुति

* सेनामुख आदि विभागे हाथो, रथ आदिकौ संख्या जाननेके लिये यह नक्शा दिया जा रहा है-

[फैल | ५ ४५ | ९३५ | ४०५ (+ |

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