Home
← पिछला
अगला →

* अध्याय ३४८ «

वाचक है। 'झ'का अर्थ प्रशस्त, “ज'का बल

तथा 'ट'कां गायन है। 'ठ'का अर्थ चन्द्रमण्डल

शून्य, शिव तथा उद्बन्धन है। 'ड' अक्षर सुद्र,

ध्वनि एवं त्रासके अर्थमें आता है। ढक्का और

उसकी आवाजके अर्थमें 'ढ'का प्रयोग होता है।

'ण' निष्कर्ष एवं निश्चयके अर्थमें आता है।

'त'का अर्थ है--तस्कर (चोर) और सूअरकी

पूँछ। 'थ' भक्षणके और * द छेदन, धारण तथा

शोभनके अर्थमें आता है। 'ध” धाता (धारण

करनेवाले या ब्रह्माजी) तथा धूस्तूर ( धुरे) -के

अर्थे प्रयुक्त होता है । "न" का अर्थं समूह और

सुगत (बुद्ध) है। *प' उपवनका और “पूः

जंज्ञावातका बोधक है । 'फु' फूँकने तथा निष्फल

होनेके अर्थमें आता है। 'बि' पक्षी तथा ^भ'

ताराओंका बोधक है । 'मा'का अर्थ है-लक्ष्मी,

मान और माता। 'य' योग, यात्ता (यात्री अथवा

दयादिन) तथा 'ईरिण' नामक वृक्षके अर्थमें आता

है ॥ १-१०॥

'र'का अर्थ है-अग्नि, बल और इन्द्र।

*ल'का विधाता, " व" का विश्लेषण (वियोग या

बिलगाव) और वरुण तथा “श ' का अर्थं शयन

एवं सुख है। 'ष” का अर्थ श्रेष्ठ, 'स' का परोक्ष,

'सा' का लक्ष्मी, 'स' का बाल, 'ह'का धारण

तथा रद्र और 'क्ष' का क्षेत्र, अक्षर, नृसिंह, हरि,

क्षेत्र तथा पालक है। एकाक्षरमन््र देवतारूप होता

है। वह भोग और मोक्ष देनेवाला है। “क्षौं

हयशिरसे नमः” यह सब विद्याओंको देनेवाला

मन्त्र है। अकार आदि नौ अक्षर भी मन्त्र हैं;'

उन्हें उत्तम ' मातृका-मन्त्र' कहते हैं। इन मन्त्रोंको

एक कमलके दलमें स्थापित करके इनकी पूजा

करे। इनमें नौ दुर्गाओंकी भी पूजा की जाती है।

भगवती, कात्यायनी, कौशिकी, चण्डिका, प्रचण्डा,

सुरनायिका, उग्रा, पार्वती तथा दुर्गाका पूजन

करना चाहिये। ' ॐ चण्डिकायै विग्रहे भगवत्यै

धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्‌" - यह दुर्गा-मन्त्

है। षडङ्ग आदिके क्रमसे पूजन करना उचित है।

अजिता, अपराजिता, जया, विजया, कात्यायनी,

भद्रकाली, मङ्गला, सिद्धि, रेवती, सिद्ध आदि

वटुक तथा एकपाद्‌, भीमरूप, हेतुक, कापालिकका

पूजन करे। मध्यभागे नौ दिक्पा्लोकी पूजा

करनी चाहिये । मन्त्रार्थकी सिद्धिके लिये “हीं दुर्गे

रक्षिणि स्वाहा '-- इस मनत्रका जप करे । गौरीकी

पूजा करे; धर्म आदिका, स्कन्द आदिका तथा

" | शक्तियोंका यजन करे प्रज्ञा, ज्ञानक्रिया, वाचा,

वागीशी, ज्वालिनी, वामा, ज्येष्टा, रौद्रा, गौरी, ही

तथा पुरस्सरा देवीका “हीं: सः महागौरि रुद्रदयिते

स्वाहा '--इस मन्त्रसे महागौरीका तथा ज्ञानशक्ति,

क्रियाशक्ति, सुभगा, ललिता, कामिनी, काममाला

और इन्द्रादि शक्तियोंका पूजन भी एकाक्षर मन्त्रौँसे

होता है। गणेश-पूजनके लिये * ॐ गं स्वाहा"

“वह मूलमन्त्र है। अथवा--'गं गणपतये नमः

से भी उनकी पूजा होती है। रक्त, शुक्ल, दन्त,

नेत्र, परशु और मोदक--यह “घडड़' कहा गया

है। 'गन्धोल्काय नमः।' से क्रमशः गन्धं आदि

निवेदन करें। गज, महागणपति तथा महोल्कं भी

पूजनके योग्य हैं। “कृष्माण्डाय, एकदन्ताय,

त्रिपुरान्तकाय, श्यामदन्तविकटहरहासाय,

लम्बनासाननाय, पदमदरूष्ठय, मेघोल्काय, धूमोल्काय,

बक्रतुण्डाय, विश्नश्वराय, विकटोत्कटाय,

गजेन्द्रगमनाय, भुजगेनद्रहाराय, शशाङ्कधराय,

गणाधिपतये स्वाहा ।'- इन मन्त्रके आदिमे 'क'

आदि एकाक्षर बीज-मन््र लगाये और अन्तमें

“नमः ' एवं ' स्वाहा ' शब्दका प्रयोग करे। फिर

इन्हीं मन्त्रोंद्ठारा तिलोंसे होम आदि करके मन्त्रार्थभूत

← पिछला
अगला →