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* अग्निपुराण *

हैं और शाखाओंमें एक हजार छियासी । यजुर्वेदे | जानकर उनकी अर्चना एवं स्तुति करके मानव

मुख्यतया काण्वी, माध्यन्दिनी, कठी, माध्यकठी

मैत्रायणी, तैत्तिरीया एवं वैशम्पायनीया --ये शाखाएँ

विद्यमान हैं। सामवेदे कौथुमी और

आधर्वणायनी (राणायनीया) -ये दो शाखाएँ मुख्य

हैं। इसमें वेद, आरण्यक, उक्था और ऊह--ये

चार गान हैं। सामवेदमें नौ हजार चार सौ पचीस

मन्त्र हैं। वे ब्रह्मसे सम्बन्धित हैं। यहाँतक सामवेदका

मान बताया गया॥ १--७॥

अथर्ववेदमे सुमन्तु, जाजलि, श्लोकायनि, शौनक,

पिप्पलाद और मुञ्जकेश आदि शाखाप्रवर्तक ऋषि

है । इसमें सोलह हजार मन्त्र ओर सौ उपनिषद्‌

है । व्यासरूपमे अवतीर्णं होकर भगवान्‌ श्रीविष्णुने

ही वेर्दोकी शाखाओंका विभाग आदि किया है ।

वेदोके शाखाभेद आदि इतिहास और पुराण सब

विष्णुस्वरूप है । भगवान्‌ व्याससे लोमहर्षण सूतने

पुराण आदिका उपदेश पाकर उनका प्रवचन किया।

उनके सुमति, अग्रिवर्चा, मित्रयु, शिंशपायन, कृतत्रत

और सावर्णि -ये छः शिष्य हुए । शिंशपायन आदिने

पुराणोंकी संहिताका निर्माण किया । भगवान्‌ श्रीहरि

ही *ब्राह्म आदि अठारह पुराणों एवं अष्टादश

विद्याओंके रूपमें स्थित हैं। वे सप्रपञ्च-निष्प्रपञ्च

तथा मूर्त - अमूर्त स्वरूप धारण करनेवाले विद्यारूपौ

श्रीविष्णु "आग्नेय महापुराणे स्थित है । उनको

भोग और मोक्ष-दोनोंको प्राप्त कर लेता है।

भगवान्‌ विष्णु विजयशील, प्रभावसम्पनन तथा

अग्रि-सूर्य आदिके रूपमें स्थित है । वे भगवान्‌

विष्णु ही अग्निरूपसे देवता आदिके मुख है । वे

ही सबकी परमगति हैं। वे वेदों तथा पुराणोंमें

*यज्ञमूर्त्ति के नामसे गाये जाते हैं। यह ' अग्निपुराण"

श्रीविष्णुका ही विराटृरूप है । इस अग्नि-आग्रेय

पुराणके निर्माता और श्रोता श्रीजनार्दन ही हैं।

इसलिये यह महापुराण सर्ववेदमय, सर्वविद्यामय

तथा सर्वज्ञानमय है । यह उत्तम एवं पवित्र पुराण

पठन और श्रवण करनेवाले मनुष्योके लिये सर्वात्मा

श्रीहरिस्वरूप है। यह “आग्रेय-महापुराण'

विद्यार्थियोंके लिये विद्याप्रद, अर्थार्थियोंके लिये

लक्ष्मी और धन-सम्पत्ति देनेबाला, राज्यार्थियोंके

लिये राज्यदाता, धर्मार्थियोंके लिये धर्मदाता,

स्वर्गार्थियोंके लिये स्वर्गप्रद और पुत्रार्थियोंके लिये

पुत्रदायक है। गोधन चाहनेवालेकों गोधन और

ग्रामाभिलाषियोको ग्राम देनेवाला है। यह कामार्थी

मनुष्योंको काम, सम्पूर्ण सौभाग्य, गुण तथा कीर्ति

प्रदान करनेवाला है। विजयाभिलाषी पुरुषोंको

विजय देता है, सब कुछ चाहनेवालोंको सब कुछ

देता है, मोक्षकामियोंको मोक्ष देता है और पापियोकि

पापोंका नाश कर देता है ॥ ८-२२॥

इस श्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें वेदोकी शाखा आदिकाः वर्णन” नामक

दो सौ इकह॒त्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २७१ #

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दो सौ बहत्तरवाँ अध्याय

विभिन पुराणोके दान तथा महाभारत-श्रवणमें दान-पूजन आदिका माहात्म्य

पुष्कर कहते हैं--परशुराम! पूर्वकाले | उस 'ब्रह्मपुराण' को लिखकर ब्राह्मणको दान दे।

लोकपितामह ब्रह्याने मरौचिके सम्मुख जिसका | स्वर्गाभिलाषी वैशाखकी पूणिमाको जलधेनुके साथ

वर्णन किया था, पचीस हजार श्लोकोंसे समन्वित | ' ब्रह्मपुराण" का दान करे। “पद्मपुराण”में जो

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