५४६
सूर्यदेवकौ पूजा करे । तत्पश्चात् दूधमिश्रित अन्नसे
वधा हुआ एक सेर मोदक ब्राह्मणको दान करके
सात ब्राह्मणोंको भोजन करावे और उन्हें सुवर्णकौ
दक्षिणा दे विदा करके स्वयं भी भोजन करे। यह
सबको अभय देनेवाला माना गया है। दूसरे ब्राह्मण
उसी दिन ' मार्तण्डव्रत ' का उपदेश करते हैं। दोनों
एक हौ देवता होनेके कारण विद्वानोंने उन्हें एक
हो त्रत कहा है। माच मासके कृष्ण पक्षको सप्तमीको
*सर्वाप्ति' नामक ब्रत होता है। उस दिन उपवास
करके सुवर्णके बने हुए सूर्यविम्बकौ गन्ध, पुष्प
आदिसे पूजा करे तथा रात्रिमें जागरण करके दूसरे
दिन सात ब्राह्मणोंकों खीर भोजन करावे। उन
ब्राह्मणोंको दक्षिणा, नारियल और अगुरु अर्पण
करके दूसरी दक्षिणाके साथ सुवर्णमय सूर्यविम्ब
आचार्यको समर्पित करे। फिर विशेष प्रार्थनापूर्वक
उन्हें विदा करके स्वयं भोजन करे। यह त्रेत
सम्पूर्ण कामनाओंकों देनेवाला कहा गया है। इस
ब्रतके प्रभावसे सर्वधा अद्वैतज्ञान सिद्ध होता है।
माघ शुक्ला सप्तमीको 'अचलाब्रत' बताया
गया है। यह 'त्रिलोचनजयन्ती ' है । इसे सर्वपापहारिणी
माना गया है। इसीको 'रथसप्तमी' भी कहते हैं,
जो “चक्रवतों' पद प्रदान करनेवाली है। उस दिन
सूर्यकौ सुवर्णमयी प्रतिमाकों सुवर्णमय घोड़े जुते
हुए सुवर्णके हों रथपर बिठाकर जो सुवर्ण
संक्षिम नारदपुराण
दक्षिणाके साथ भावभक्तिपूर्वक उसका दान करता
है, वह भगवान् शङ्करके लोकमें जाकर आनन्द
भोगता है। यही ' भास्करसप्तमी' भी कहलाती है,
जो करोड़ों सूर्य-ग्रहणोंके समान है। इसमें अरुणोदयके
समय ज्लान किया जाता है। आक और बेरके
सात-सात पत्ते सिरपर रखकर स्नान करना चाहिये।
इससे सात जन्मौके पार्पोका नाश होता है। इसी
सम्तमीको 'पुत्रदायक' ब्रत भी बताया गया है।
स्वयं भगवान् सूर्यने कहा है-'जो माघ शुक्ला
सप्तमौको विधिपूर्वकं मेरी पूजा करेगा, उसपर
अधिक सन्तुष्ट होकर मैं अपने अंशसे उसका पुत्र
होऊंगा।' इसलिये उस दिन इन्द्रियसंयमपूर्वक
दिन-रात उपवास करे ओर दूसरे दिन होम करके
ब्राह्मणोंको दही, भात, दूध और खीर आदि भोजन
करावे। फाल्गुन शुक्ला सप्तमीको "अर्कपुट ' नामक
व्रतका आचरण करे । अर्के पत्तोंसे अर्क (सूर्य) -
का पूजन करे और अर्कके पत्ते ही खाय तथा
"अर्क" नामको सदा जप करे। इस प्रकार किया
हुआ यह " अर्कपुटव्रत' धन और पुत्र देनेवाला
तथा सब पापोंका नाश करनेवाला है । कोई- कोई
विधिपूर्वक होम करनेसे इसे ' यज्व्रत" मानते हैँ ।
द्विजश्रेष्ठ! सब मासोंकी सम्पूर्णं सपमी तिथियोंमें
भगवान् सूर्यकी आराधना समस्त कामनार्ओंको
पूर्णं करनेवाली बतायी गयी है ।
+
बारह महीनोंके अष्टमी -सम्बन्धी व्रतोंकी विधि और महिमा
सनातनजी कहते हैं-नारद! चैत्र मासके
शुक्ल पक्षकी अष्टमीको भवानीका जन्म बताया
जाता है। उस दिन सौ परिक्रमा करके उनकी
यात्राका महान् उत्सव मनाना चाहिये। उस दिन
जगदम्बाका दर्शन मनुष्योंके लिये सर्वथा आनन्द
देनेवाला है। उसी दिन अशोककलिका खानेका
विधान है। जो लोग चैत्र मासके शुक्ल पक्षकी
अष्टमीको पुनर्वसु नक्षत्रमे)ं अशोककी आठ
कलिकाओंका पान करते हैं, बे कभी शोक नहीं
पाते। उस दिन रातमें देवीकी पूजाका विधान
होनेसे बह तिथि 'महाष्टमी' भौ कहौ गयी है।
वैशाख मासके शुक्ल पक्षकी अष्टमी तिथिको