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शंकरस्य च गुह्यानि विष्णोः स्थानानि यानि च।
कथयस्व प्रहाभाग सरस्वत्याः सविस्तरम् ॥ १२
बरूहि देवाधिदेवस्य माहात्म्यं देव तत्त्वतः ।
विरिञ्चस्य प्रसादेन विदितं सर्वमेव च॥ ९३
लोमहर्षण उकाच
मार्कण्डेयवचः श्रुत्वा ब्रह्मात्मा स महामुनिः।
अतिभक्त्या तु तीर्थस्य प्रवणीकृतमानसः ॥ १४
पर्यङ्कं शिधिलीकृत्वा नमस्कृत्वा महे ्वरम्।
कथयामास तत्सर्वं यच्छतं ब्रह्मणः पुरा ॥ १५
सनत्कुमार उवाच
नमस्कृत्य म्हादेवमीशानं वरदं शिवम्।
उत्पत्तिं च प्रवक्ष्यामि तीर्थानां ब्रह्मभाषिताम्॥ १६
पूर्वमेकाण्वे घोरे नष्टे स्थावरजङ्कमे।
बृहदण्डमभूदेकं प्रजानां बीजसम्भवम्॥ १७
तस्मिनण्डे स्थितो ब्रह्मा शयनायोपचक्रमे ।
सहस्रयुगपर्यन्तं सुप्त्वा स॒ प्रत्यबुध्यत ॥ १८
सुप्तोत्थितस्तदा ब्रह्मा शून्यं लोकमपश्यत ।
सृष्टि चिन्तयतस्तस्य रजसा मोहितस्य च ॥ १९
रजः सृष्टिगुणं प्रोक्तं सत्त्वं स्थितिगुणं विदुः ।
उपसंहारकाले च तमोगुणः प्रवर्तते॥ २०
गुणातीतः स भगवान् व्यापकः पुरुषः स्मृतः ।
तेनेदं सकलं व्याप्तं यत्किंचिग्जीवसंज्ञितम्॥ २१
स ब्रह्मा स च गोविन्द ईश्वरः स सनातनः।
यस्तं वेद महात्मानं स सर्वं वेद मोक्षवित्॥ २२
किं तेषां सकलैस्तीर्थराश्रमैवां प्रयोजनम्।
येषामनन्तकं चित्तमात्मन्येव व्यवस्थितम् ॥ २३
आत्मा नदी संयमपुण्यतीर्था
सत्योदका शीलसमाधियुक्ता ।
* भ्रीयामनपुराण +
[ अध्याय ४३
सबको मुझसे कहिये। महाभाग! सरस्वतीके निकट
शंकर तथा विष्णुके जो-जो गुप्त स्थान हैं उनका भी
आप विस्तारपूर्वक वर्णन करें। देव! देवाधिदेवके
माहातम्यको आप भलीभाँति बतावें; क्योंकि ब्रह्माकी
कृपासे आपको सब कुछ विदिते है॥६-१३॥
लोमहर्षणने कहा ( उत्तर दिया )--मार्कण्डेयके
वचनको सुनकर ब्रह्मस्वरूप महामुनिका मन उस तीर्थके
प्रति अत्यन्त भक्ति-प्रवण होनेसे गद्गद हो गया। उन्होंने
आसनसे उठकर भगवान् शंकरको प्रणाम किया तथा
प्राचीनकालमें ब्रह्मासे इसके विषयमे जो कुछ सुना था
उन सबका वर्णन किया॥ १४-१५॥
सनत्कुमारने कहा--मैं कल्याणकर्ता, वरदानों
महादेव ईंशानको नमस्कार कर ब्रह्मासे कहे हुए तीर्थकी
उत्पत्तिके विषयमें वर्णन करूँगा। प्राचीन कालमें जब
महाप्रलय हो गया और सर्वत्र केवल जल-हो-जल हो
गया एवं उसमें समस्त चर-अचर जगत् नष्ट हो गया,
तब प्रजाओंके बीजस्वरूप एक 'अण्ड' उत्पन हुआ।
ब्रह्मा उस अण्डमें स्थित थे। उन्होंने उसमें अपने सोनेका
उपक्रम किया। फिर तो वे हजारों युगॉतक सोते रहे।
उसके बाद जगे। ब्रह्मा जब सोकर उठे, तब उन्होंने
संसारको शून्य देखा। (जब उन्होंने संसारमें कुछ भी
नहीं देखा) तब रजोगुणसे आविष्ट हो गये और सृष्टिके
विषयमें विचार करने लगे॥ १६-१९ ॥
रजोगुणको सृष्टिकारक तथा सत्तवगुणकों स्थिति-
कारक माना गया है। उपसंहार करनेके समयमें
तमोगुणकी प्रवृत्ति होती है। परंतु भगवान् वास्तवमें
व्यापक एवं गुणातीत हैं। वे पुरुष नामसे कहे जाते हैं।
जीव नामसे निर्दिष्ट सारे पदार्थ उन्हींसे ओतप्रोत हैं। ये
ही ब्रह्मा हैं, ये ही विष्णु हैं और वे ही सनातन महेश्वर
हैं। मोश्चके ज्ञानी जिस प्राणीने उन महान् आत्माकों
समझ लिया, उसने सब कुछ जान लिया। जिस
मनुष्यका अनन्त (बहुमुखो) चित्त उन परमात्मामें ही
भलीभाँति स्थित है, उनके लिये सारे तीर्थ एवं
आश्रमोंसे क्या प्रयोजन ?॥ २०--२३॥
यह आत्मारूपी नदौ शौल और समाधिसे युक्त है।
इसमें संयमरूपी पवित्र तार्थं है, जो सरूपौ जलसे