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श्ावन्स्यखण्डरेषा-खब्ड ]

तदनन्तर ध्रुव तथा ब्रह्मपुत्र महर्षियोंको विदा ऋरके

3>कारेश्वरके स्वरूपरो जानकर राजाने उनका पूजन शिया |

मणि-माणिस्य आदि रसि पहले ड“ऊारलिङ्गको विभूषित

स्वा | फिर गन्ध, नाना प्रच्रके भूप, कपूर, अगर, चन्दनः

प्य, छर, बरिलान, व्यजन और दिव्य चामर्रोसे पूजा

सम्पन्न करके इस प्रकार स्तुति की--*जिस विन्वुयुक्त ॐकार.

% योगीजन श्दा भवानं क्रते हैं तथा जो ऊ“कारस्वरूप

काम ओर मोक्ष देनेवाक्ते हैं। उनको यार-बार नमस्कार दै ।

ब्रह्मा, विष्णु तथा इन्द्रको भी षर देनेग्राक्े सर्वदेवमय शिव !

आपको नमस्कार है । श्छ ! पुष्यते सुशोमित होनेबाली

ओ आफ्ड्री कल्याणमयी अधोर ( सौम्य ) मूर्ति टै, उसके

द्वारा आप मुझपर कृपा कीजिये । आपके सब ओर हाप

और पैर हँ। छव ओर नेत्र, सिर और मुख हैं। त्मेकमे सब

ओर आपके कान हैं तथा आप सको व्याप्त करके सित

हैं। आपको नमस्कार है|! इस प्रकार स्येति करनेपर उकार-

लिङ्गके मध्यभागमें एक दूसरा लि्गे दिखायी दिवा, जो

प्रज्वल्ति कालभिक़े धमान कान्तिमान्‌ था । उसने झन्द्रचुश्नसे

कृदहा--“+राजन्‌ ! तुम्हारा कस्याण हो ।ठुम्होरे मनमें जो

कामना हो, उसके लिये वर मगो |!

इन्द्रश बोले--देव ! यहाँ यर पर्वतपर देबद्रोणीमें

भगवती पार्बतीके छाथ पचित होकर आप छदा] निवास

करें । देवदेवेश्वर ! इस तीर्पमें श प्राणत्याग करे, बह

शिवलोके जाय !

इन्कारेश्यर बोले--उपभे४ ! तुम्हारी यह छव

कामना पूर्ण हो |

इतना ऋष्टफर वे वहीं अन्तर्घान हो गये । उन्हीके

छाप अन्यान्य देवता भी अपने-अपने स्थानकों चे गये |

मगवान्‌ शङ्कर कंह्ासधासकों गये । राजा इल्रयु्ने बह

चार प्रकारके पराणियोश्ने सुनाकर कद्टा--'तुम सब ल्येग

मेरे यके प्रभाषते नीरोग हे जभो और सभी वृत रहो ।

तस्पश्रात्‌ राजा टन्दरुन्नने ताशक्ष प्रणाम करके भगवान्‌

विष्णुकी सूति की |

राजाने कहा--मैं केशव ( जलम शयन करनेवाले ),

माधव ( छक्ष्मीपति )| विष्णु (खर्वेब्यापी )+ गोविन्द, अश्चुसूदन

( मधु दैत्यकों मारनेवाडे ), पद्मनाभ ( माभिते कमल उत्पन्न

करनेवाले ) षीकेश ( इन्द्रियोंके स्वामी ), भीघर, विविकस

( तीन बिशाल डगवाछे विराट्रूपघारी यामन ) दामोदर

( माता यशोदाके द्वारा रस्सीसे कटिमागमे वेंधनेवाछे )

स्कन्द्‌ पुराण २७--

# अमरकण्टक और यक्षपर्थतके श्रेष्ठ तीर्थ पवं लिङ्ग #

७.93

याबुदेव ( बदुदेवपुत्र ) तथा भीहरि ( पाप इरण करनेवाले )

को प्रणाम करता हूँ । जो शङ्ख, चक, गदा, शाङ्गघनुष और

चनमालासे विभूषित हैं। सम्पूर्ण छोकोंके रक्षक, जगतके

स्वामी, लक्ष्मीजीके पति तथा सर्वज्ञॉमें श्रेष्ठ हैं, उन भगवान्‌

भीकान्त, भीषर, भश एवं भीनियासकों मैं नमस्कार करता

हूँ | अच्युत | अनस्त ! यशेश ! यज्ञाध्िप ! आपको नमस्कार

। इष ज जप और गज (मी) म

नमस्कार है। दिद, मस्य, वाराइ और कूर्मरूप धारण

करनेवाठे आपको नमस्कार द । पवित्र वाहनपर आरूद्‌ टोने-

वाङ गरुदध्वज ! आपको नमस्कार है । जो सदस मस्तकों-

या, सऊछ-निष्कल, जाननेयोग्य, पुरुष ( अन्तयांमी ),

अध्यक्ष (साक्षी ) तया शके आदिकारण ई, उन भगवान्‌

नारायणदेयको मैं नमस्कार करता हूँ । देत्योंका अस्त करने-

वाले देवता भीषरिको मैं प्रणाम करता हूँ । हिरण्य, पृथ्वी

तथा यजो अपने ग॑म घारण करनेवाठे, अमृती उत्सत्ति-

के चमत भरीषिप्णुको मैं नमस्कार करता हूँ। वादेश !

भीगर्भ एज श्ञानगर्भस्वरूप आपको नमस्कार है। प्रभो !

आपने ही इस सम्पूर्ण चराचर जगत॒की खु्टि की है। आप

ही परत्यक युग सृष्टि, पालन और संर करनेवाले हैं। आपके

सब जर नेत्र हैं; सब ओर मुख र । आप अव्यक्त एवं

जाननेयोग्य ६ । सम्पूर्ण विश्वके आत्मा, प्रकाशक और सबके

भीतर निवास करनेवाले आपको नमत्डार । आप सूर्य,

बायु+ अप्रि और चन्द्रमा ह । देवदेवेश्वर | आप ही घात इन्द्र

और प्रजापति । युरभेष्ट ! आपके ही म्रसादखे मेरे यश्डी

सिद्धि हुई हे ।

राजाके द्वारा की हुई यह स्तुति सुनकर. शाह

खक और गदा घारण करनेवाले भगवान्‌ ब्िष्णुने

कहा--राजन ! दुम कोई वर माँगों ।

राजा बोले---<“कारलिज्षके उत्तर मागमे बेदूर्य पसः

की चोरीपर आप जनादन ह्क्लिके रूपमे निवास करें । यहां

विधिपूक आपकी पूजा करके मनुष्य भीविष्णुधामकों प्रात

हों, पशु-पक्षियोंकी योनिमें न जायें तथा यमलोकमें भी प्रवेश

न करें । यहाँ प्राणत्याग करनेपर मनुष्योको आपके परम

घामकी प्राप्ति हो और इस तीर्यमें पितरोंके निमित्त अन्नदान

करनेपर बे पिदर आप्के प्रसादसे विष्युधामक्रों प्रात कर ।

भगवान्‌ विष्णुने का-दपभे | मे यदौ अवतार

धारण करूँगा और द्॒मने ओ कुछ मोगा है। षष सब मेरे

प्रखादसे पूर्ण होगा |

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