काशीखण्ड-पूर्वाण ] # वानप्रस्थ और सन्यास आश्रमके घर्मका वर्णन, योगमार्गका निरूपण #
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बानप्रखय और सन्यास आश्रमके धर्मका वर्णन, योगमार्गका निरूपण
स्कन्वज़ी कहते हैं--मुने ! इस प्रकार गहस्प आभरम-
मिशाल भिक्षुकों एवं अतिथियोंका सत्कार करे । किसीसे
दान न छे। स्वयं ही वूसरोड़ो दान दे एवं मन और इन्द्रियों-
को संयममें रस्ये । सद्भन्थोंके ख्वाध्यायमें तत्पर रहे | वैतानिक
मुनिजनोचित. अज्द्वात देगताओंके लिये यशमाग
अर्पित करें | सोक, छसौीहा) सहनन, धरतीका फूछ+
मांस और उबको कभी काममें न छे |
अने ही रहकर प्रतिदिन आठ आस मोजन करे ! शष प्रकार
को बचाते हुए चङे, यख्य छानश्र जठ पीये
अचन बोले, कभी छिसीके साथ क्रोघपूर्ण बर्ताव न षे,
अपने आत्मे साप विचर, किसीसे कोई अपेक्षा न रक््खे;
अपने छिये कोई घर अपना आशयं न अनायि, सदा अध्यात्म.
चिन्तनम तत्पर रै, केश ओर नख आदिक़ा संस्कार ने
करे, मन और इन्दियोको वशम रक्से, भगर्वो रंगका
अन्न पहने, दण्ड धारण करें; मिक्षाके अभक मोजन करे और
अपनी प्रसिद्धि न होने दे | तुम्बी, काष्ठः मिट्टी अथवा
बॉलका पात्र संन््यासीके किये उत्तम है। इनसे मिन्र किसी
# ध्यानै शौचं तथा मिक्षा निश्यमेस्नन्तसीख्ता ॥
यतेआत्यारि. कमोणि पद्मम नोपपधते ॥
( स्क० पुर कार पू० ४१॥ २० )