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नौ भ्रक्तियोंसे युक्त एवं परम सुन्दर हो । उसी कमलकी
कर्णिका कोटि-कोटि चन्द्रमाओंके समान प्रकाशमान
उमापति भगवान् शिवच् ध्यान करे । भगवानके तीन नेत्र
हैं। मत्तरूपर चन्द्रमा मुकुट शोमा पाता है । जठाजट़
कुछ-कुछ पीछा हो गया है । उसपर रकजटितत श्रीद
सुशोमित दै । उनके कण्ठमें नीछ चिह्न है ओर अशन" अङ्गसे
उदारवा यूचित होती है। सपोके रसे उनी यरड़ी शोभा
हो रदी है। उनके एक हाथमे बरद ओर दूसरेमें अमवकी
मुद्रा है। ये फरता धारण करते हैं। उन्होंने मागोंका कूण,
केयूरः अज्जद तथा मुद्रिका धारण कर रक्ती है। ये स्याप्न-
चर्म पहने हुए रकमय सिंशासनपर विराजमान हैं। उनके
शम भागे भिरिराजनन्दिनी उमादेवीडा चिन्तन करे | इस
प्रकार महादेवजी तथा गिरिजादेवीका ध्यान करके शमदा;
त्थ आदिते उनकी मानसिक पू फे । पाँच वैदिक
मत्रि सन्ध आदि द्वारा पूर्योक्त पांच स्पानोंमे अथवा
इदयमे पूजा करे । फिर सूछमन्त्रसे तीन बार छुद॒यमें ही
पुष्पाञ्जलि दे । उसके याद आह्रपीठ ( सिंदासन ) पर
महादेवजीका पुनः पूजन प्रारम्भ करें । पूजके आरम्भर्मे
एकाग्रचित्त होकर सखस्य पढ़े । तदनन्तर हाथ जोड़कर मन-
ही-मन भगवान् शिवका ध्यान एवं आवाहन करे--दहे भगवान्
शङ्कर ! आप ऋण, पातक, दुर्भाग्य और दरिद्रता आदिकी
निकृत्तिके लिये तया सम्पूर्ण पा्पोफा नादा करनेके लिये मुझपर
प्रसन्न होश्ये । म दुःख और शोकफी आगम जख रहा हः
संखारभयशे पीडित हूँ; अनेक प्रकारके रोगोंसे व्याकुल और
दीन हूँ। ब्रूपवाइन ! भेरी रक्षा भिये । देवदेवेश्वर !
खबरों निम॑य कर देनेवाछे महादेवजी ! आप यहाँ पथारिये और
मेरी की हुईं इस पूजा्नो पारवती जीके साथ ग्रहण कीजिये ।?
इस प्रकार संकल्प और आयान शूरे पूजा आरम्भ करनी
चाहिये | कत्पश्चात् मनुष्य एकाग्रचित्त हो रुद्सूक्तका पाठ
करते हुए. रो स्थापित किये हुए, शङ्खके जछसे और
पञ्चामूतते मशदेवजीका अभिषेक करके माँति-माँतिके मन्त्रोंसे
आसन आदि उपचार्रोक्णों समर्पित फरे । भाषनाद्वारा दिव्य
वेति विभूषित स्वर्णसिंहाउनकी फस्यना करे और उसीपर
मगवानूफो विराजमान करके अष्युणयुक्त अध्य और पाच
निवेदन करे । फिर झुद्ध जलसे आचमन कराकर मधुपं दे ।
उसके याद पुनः आचमनके लिये जल देकर मत्त्रोषारण-
पूर्वक ज्ञान कराये । फिर यशोपयीत, बस ओर आभूषण
अर्पण करे । परम पवित्र अशम्मयुक्त चन्दन चद़ावे । चित्य,
[ संक्षिप्त स्कन्दपुराण
मंदार/ छाछः कमल, धूर, कनेर, सनका पूछ)
चमेखीः कुकाः अपामार्ग, तुरूसी, जूही; च्या
मटषटष्या ओर करवीरके पुटर्मिसे जितने मिछ
जायें, उन सपो दिवोपासक भगवान् शिकपर अद़ाये |
इनके अतिरिक्त भी नाना प्रकारके सुगन्धित पुष्य निवेदन
करे । तत्पआ्रात् छाल चन्दने उत्पन्न घूप और निर्म दीप
समर्पित करे । उसके बाद हाथ धोकर घी, नमकीन और
छाग, मिठाईं। पू, दाकर तथा गुड़के चने हुए पदार्थ
एवं खीरका नैंग्रेश भोग लगावे | मधु, दही और जल भी
अर्पण करे । उस खीर ही मन्त्रद्वारा प्रज्वकित की हुई
अग्निसें एवन करे । यह होम दास्नोच्छविधिते आचार्यक
कयनानुलार सम्पन्न करना चाहिये । मगवान् शइरकों नैवेय
देकर मुखश॒द्धिके दिये उत्तम ताम्बूछ अर्पण क्रे । धूप,
आरती, न्दर छत्र, उत्तम दर्पणकों श्ेदिक-तान्त्रिक मन्ह्रों-
द्वारा विधिपूर्वं समर्पित करे । यदि यह सब करनेकी अपनेमें
शक्ति न हो, अधिक घनका अभाव हो, तो अपने पास जितना
घन हो, उसीके अनुसार भगवान्की पूजा करें। गौरीपति
भगवान् शङ्कर भक्षिपूर्यक मेंट किये हुए पुष्पराजसे भी
सन्तुष्ट हो जाते हैं। तदनन्तर स्तोत्रोद्ारा स्तुति करके
अगवानकों साङ्ग प्रणाम करे | फिर परिक्रमा करके
पूजा समर्पित करनेके पश्चात् विधिपूर्वकं भ्रीगिरिजापतिकी
प्रार्थना करे ।
पदेव | अन्नाय ! आपफी जप हो। छनातन शङ्कर !
आपकी जय हो । सम्पूणं देषतार्भोके अधीश्वर | आपकी जय
हो। सर्बदेवपूजित ! आपकी जय हो । सर्वगुणातीत ! आपकी
जव हो । सक्को षर देनेवाले प्रभो ! आपकी जय हो । नित्य,
आधाररहित, अग्रिनाशी विश्वम्मर ! आपकी जय हो; जप हो ।
अम्पूर्ण विश्वके लिये एकमान्न जानने योग्य मदेश्वर ! आपकी
जय हो | नागराज बातुरछिझों आभूषणके रूपमे पारण फरने-
यके प्रभो ! आपकी जय हो | गौरीपते ! आफ्की जप हो |
चन्द्रार्शेखर शम्भो ! आपकी जय दो । छोटे सयोंके समान
तेजस्वी दिव ! आपकी जय हो । अनन्त गुणोंके आश्रय !
आपी जय हो । भयङ्कर नेत्रोबाले रुद्ध |! आफडी जय हे ।
अचिन्त्य ! निरञ्जन ! आपकी जय हो। नाथ ! दयासिन्धो !
आपी जय हो । मक्तोफी पीद़ाका नाद्य करनेवाले प्रभो!
आफ्ड्ी जय हो | दुरतर संसारसागरसे पार उतारनेवाले
परमेश्वर ! आपकी जप हो । महादेव ! मैं संसारके बुःसे
पीड़ित एज खिन्न हूँ, मुझपर प्रसन्न द्वे । फरसेक्यर !