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वैष्णयजण्ड-मूमिवाराहस्तरण्ड ] * पापनाशनतीर्थकी महिमा--भद्र मति प्राह्मणश्च चरित्र +

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धीरे-धीरे चे । ऊपर पहुँचछकर सब पापोंका नाश करनेयि

परम पुण्यमय स्वामिपुष्करिणी तीर्थे निवमपूर्यक नान श्रे ।

तसश्रात्‌ पितरोंकों पिष्डदान करे। ऐसा करनेसे स्वर्गवासी

पितर मोक्षकों प्राप्त होते हैं और नरकबासी फितिर खगम

चकते जाते हैं |

तदनन्तर उस पर्पतके ऊपर जो सय तीरम भ्रेष्ठ और

पवित्र पापविनाशन नामक तीर्थं है; जिसके स्मरणमाजसे

मनुष्य फिर गर्भमें नहीं आता, उसके स जाकर उसमें

स्तान करना चाहिये | यदं स्वामितीर्थसे उत्तर दिज्ञामें ३ ।

यहाँ शयन करनेसे मनुष्य वैकुण्ठधाममें जाते द ।

पूर्वकम भद्रमति नामक एक श्रेष्ठ आह्मण थे; नो

बेद-वेदाजंके एरङ्गत पण्डित ये, परंतु ये बढ़े दरिद्र ये।

उनके पास जीविकाका कोई साधन नहीं या । उन शद्धिमान्‌

ब्राक्षणने सम्पूर्ण शख, पुराण और धर्मान्नो का अवण

किया था उनके छः सियो थीं। कृता, सिन्धु, यशोक्‍ती,

कामिनी, मादिनी और शोभा--ये उनके नाम ये । उनके

गर्भे ब्राझणने दो सौ पुत्र उत्पन्न किये ये! वे सभी पुत्र

आदि भूखसे पीढ़ित हो रहे ये । अपने प्यारे पुत्रों और

प्रियतमा पक्षियोंकों क्षुधासे व्याकुछ देखकर दख भव्रमति

विल्मप करने छगा--“दवाय ! भाग्वहीन जन्मको भिक्कार दे,

घन और कौर्तिसे रदित जीवनको धिकार है।उस जन्पको

मी धिक्कार दै, जिसमें धनाभावे परय अतिथियोंका सत्कार

न हो पाता हो। शान और सदाचारे शल्य जीवनको भी

विकार है और बहुत सन्तारनोवाते सतुष्यके घनहीन जन्मको भी

धिक्कार [: ॥ ब्राह्मण; पृः पौत्रः भाई बन्ध और शिष्य आदि

सभी मनुष्य घनदीन पुरुषको त्याग देते हैं। जो धनयान्‌ दै,

बह निर्दयी हो या दयावान्‌, ग्रुणद्वीन हों या गुणवान्‌, मूर्ख

हो या पष्डित तथा सब धमे युक्त हो या धर्महीन, यदि यद

ऐश्वयके गुणसे युक्त है। तो पूजने दी योग्य होता हे । अशो !

दरिद्रता बढ़ा भारी दुःख है, उसमें भी आशा तो अत्यन्त

दुःखदाविनी होती है। आशाके वशीभूत हुए मनुष्य क्षल

क्षण दुःख भोगे हैं। जो आशाफे दास हैं, वे समस्त

उंखारके दास हैं और निन्दने आशाको अपनी दासी बना

ल्या है उनके सि यह सम्पूर्ण जगत्‌ दासके युस्य है ।५

अष ! दरिद्रता महान्‌ दुःख दै, मह्ान्‌ दुःख दै, महान्‌

५ ऊाझादा ये दासा दासास्ते सर्वक्ोकस्य ।

आश्वा दासी येषां वेष दासावते क्षेः ॥

६ स्क^ पुर मै ० कै २०॥।१८ )

दुःख है | उसमें भी पुत्र और न्नियोौका अभिक दोना तो

और मी दुःखदायी है ।?

देषा उद्गार प्रकट करके ख्य शाप््रोके अर्थशानमें

पारङखत विद्वान्‌ मद्रमति मन'दी-मन ऐसे धर्मफा विचार करने

खगे, जो अत्यन्त पेयं प्रदान करनेवाला हो | उस समय

उनकी छ्िर्वोमि जो कामिनी नामचाटी पतिव्रता पत्नी थी,

उसने अपने पतिदेयसे इदा--*भगवन्‌ ! मेरे प्राणनाप ! मेरी

एक बात मुनिये । ऋषि-मुनिर्षोंसे सेवित सुवर्णमुखरी नदीके

तटपर देवताओं निवास करनेयोग्य परम पृथित्र वेङ्कट पर्वत

है। उसके शिखरपर सब पाधौ नाश करनेवात्प पावन तीर्थ

है। महामते ! आप पत्नी और पुत्रोफे शाय यहाँ चछकर

पापनाशन तीर्थमें ज्लान कीजिये । मैंने वपनं अपने फिता-

के करमीप नारदजीफे मुखसे उस तीर्थका माहारेम्व इस प्रकार

सुना था कि भ्व पाषोंछझ नाश छरनेग्राे परम पवित्र

बेह्ुटाचलपर पापनाशन नामक एक महान तीर्थ दै, जो

समस्त दुःखोंका निवारण तथा सव प्रकारकी सम्पदाओंका

दान करनेवाग्मं है | उसमें संकल्पपूर्यक लान करके अधिक

दशर्य प्रदान करनेवाले धर्मका मनदीमन चिन्तन करना

चाहिये । सब दानोंमे उत्तम भूमिदान दे। वह परलोकमे

उत्तम कककी प्राप्ति करानेवाछ्ा तथा समस्त मनोबराम्कित

कामनाओंकों देनेवाला है। भूमिदान देकर मनुष्य अपनी

शमी अभीष्ट वस्तुओंको प्राप्त कर छेता है ।? नारदजीकी यह

बात छुनकर मेरे पिता बहुत प्रसन्न हुए । उन्होंने शेघाचलपर

जाकर पापनाशन तीर्थम चान करनेके पश्चात्‌ एक श्रिय

जाद्मणको भूमिदान दिया, ओ समल ऐश्व्योंको देनेषारा

है। उससे मेरे पिता इस संसारम खव प्रकारसे सौभाग्यशाली

हुए और अम्तमें भगवान्‌ विष्णुके परम धाममें गये।

महामाग ! आप भी गिरिश्रेष्ठ पेङ्कयाचलपर चलकर सम्पूर्ण

कामना ओको देनेवात्म भूमिदान कीजिये । अम्निहोश्री भोत्रिय

ब्राक्मणकों थोड़ी सी भी भृूमिका दान करके मनुष्य पुनराइत्ति

रदित ब्रद्मछोककों प्राप्त होता है । वेक्कटाचरू पर्थतपर किया

हुआ भूमिदान सब पार्षोका नाश करनेवात् है। जो ईः

गेहूँ, धान और सुपारी आदि दृशो युक्त शृष्वीका दान

करता है, वह साक्षात्‌ विष्णुके समान है। जीविकादीन कुड्धम्पी

पथं दरिद्र ब्राकषणफों थोड़ी भी भूमि देकर मनुष्य भगवान्‌

विष्णु सायुभ्यको प्राप्त होता है ।!

अपनी फल्नीकी बात सुनकर और रोषाचछनिवासी

भगवान्‌ विष्णुका ध्यान करके भद्रमति ब्राह्मण बहुत सनु

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