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मेऽ ६ सुर ६ड ८९

है अश्विनीकुमारों ! आप दोनों सूर्यां ( उषा) की शोभा के लिए पुष्ट हों आप अपनी एवं उनकी शोभा

और कल्याण के लिए रथ पर पुष्टिकारक अन्न रखते हैं । आप तक्‌ हमारी उत्तम स्तुतियाँ पहुँचें ॥६ ॥

५०३३. आ वां वयोऽश्वासो वहिष्ठा अभि प्रयो नासत्या वहन्तु ।

प्र यां रथो मनोजवा असर्जीषः पृक्ष इषिधो अनु पूर्वीः ७ ॥

हे अश्विनीकुमारो आपका तीव्रगामी रथ अन्न के लिए गमन करता है । मन की गति वाले आपके अश्व

आप दोनों को अन्न के साथ हमारे निकट लाएँ ॥७ ॥

५०३४. पुरु हि वां पुरुभुजा देष्णं धेनुं नइषं पिन्वतमसक्राम्‌ ।

स्तुतश्च वां माध्वी सुष्टुतिश्च रसाश्च ये वामनु रातिमग्मन्‌ ॥८ ॥

हे दोनों अश्चिनीकुमारो ! आप बड़ी भुजाओं वाले है । आपके पास अपरिषित धन है । आप हमे स्थिर मन

वाली गौएँ एवं अन्न दें आपके लिए मधुर सोमरस तैयार है । स्तोतागण आपको स्तुति करते हैं ॥८ ॥

५०३५. उत म ऋतन पुरयस्य रघ्वी सुमीकहे शतं पेरुके च पक्वा ।

शाण्डो दाद्धिरणिनः स्मदिष्टीन्‌ दश वशासो अभिषाच ऋष्वान्‌ ॥९ ॥

'पुरय' (नगर के नियन्ता) की दो द्रुतगामी अश्वाएँ, सुमीठ्ह ' (धन-धान्य युक्त अथवा सेचनकर्त्ता) को सौ

गौएँ तथा 'पेरुक' (आदित्य) द्वारा पकाये गये फल (पदार्थ) हमें प्राप्त हैं । “शाण्ड' (शान्ति या कल्याणप्रद) द्वारा

प्रदत्त स्वर्णालंकृत, दर्शनीय, शत्रुजयी दस रथ हमारे पास हैं ॥९ ॥

[ पौराणिक सदर्थं में पुरय, सुपीक्ह आदि नाम वाले दाताओं के अनुदान प्राप्त होने की बात के अतिरिक्त इस ऋचा से

काया में अवस्थित दिव्य विधूतियों का अथं भी सिद्ध होता है । काया को 'पुरी' कहा ही जाता है । पुरी का नियत्ता जोवात्पा है।

उम्रकी दौ अश्वाएँ चय-अपचय-(एनारबॉलिज्य एवं कैटाबॉलिज्य) संचालित करने वाली शक्ति धारा अश्नाएँ कही जा सकती

हैं। सुमीरूह की गौ शरीरस्थ पोषक प्रवाह है तथा आदित्य द्वारा परिपक्व पदार्थ या जीवनस भी हमे उपलब्ध हैं। दस

इुन्द्रियों को दस रथों क संज्ञा सदैव से दी जाती है । ये शाण्ड के दर्शनीय शत्रुजयो रथ है ||

५०३६, सं वां शता नासत्या सहस्राश्वानां पुरुपन्था गिरे दात्‌।

भरद्वाजाय वीर नू गिरे दाद्धता रक्षांसि पुरुदंससा स्युः ॥१० ॥

हे दोनों अश्विनौकुमारदेवो ! आपके स्तोता को 'पुरूपन्था' राजा ने सैकड़ों-हजारों घोड़े दिये । हे देवो ! यह

सब आप भरद्वाज को भी प्रदान करें और असुरो का नाश करें ॥१० ॥

[ अश्विनीकृमार आरोग्य के देवता हैं । 'पुरूपन्था' का अर्घ होता है - प्रगति पथ पर बढ़ाने वाले । आरोग्य के सायक को

“पुरूफ्था' - प्राणो ने हजारों अश्च अर्थात्‌ शक्ति प्रवाह दिये; यह कथन युक्तिसंगत सिद्ध होता है । ]

५०३७. आ वां सुम्ने वरिमन्त्ूरिभिः ष्याम्‌ ॥१९॥

हे दोनों अश्विनीकुमारो आपकी कृपा से हम श्रेष्ठ विद्वानों के साथ सुखपूर्वक रहें ॥११ ॥

[ सूक्त - ६४ ]

- [ ऋषि - भरद्वाज वाहस्यत्य । देवता -उषा । छब्द - ष्टुप्‌ ॥]

५०३८. उदु श्रिय उषसो रोचमाना अस्थुरपां नोर्मयो रुशन्तः ।

कृणोति विश्वा सुपथा सुगान्यभूदु वस्वी दक्षिणा मघोनी ॥९ ॥

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