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७४ ऋष्वेद संहिता भाग - २

४९०५. रिशादसः सत्पती रदब्धान्महो राज्ञः सुवसनस्य दातृन्‌ ।

यूनः सुक्षतरानक्षयतो दिवो नृनादित्यान्याम्बदितिं दुवोयु ॥४॥

हे अदिति पुत्र देवगणो ! आप दयालु, चिर्युवा, महाराजा एवं महाबलौ हैं । आप दुष्टों का नाश करने वाले

हैं ।आप ऐश्वर्यवान्‌ एवं श्रेष्ठ निवास देने वाले हैं । (हे अदिति पुत्रो ) हम माता अदिति के आश्रय में जाते हैं ॥४ ॥

४९०६. दौ३ष्पित: पृथिवि पातरधुगगने भ्रातर्वसवो मृकता न: ।

विश्च आदित्या अदिते सजोषा अस्मभ्यं शर्म बहुलं वि यन्त ॥५ ॥

हे वसुगण ! द्यावा-पृथिवौ एवं अग्निदेव सहित आप हमारा कल्याण करें । हे अदिति एवं समस्त आदित्यो !

आप सब परस्पर प्रीतिपूर्वक रहकर हमें और अधिक सुख प्रदान करे ॥५ ॥

४९०७. मा नो वृकाय वृक्ये समस्मा अघायते रीरधता यजत्राः

यूयं हि ष्ठा रथ्यो नस्तनूनां यूयं दक्षस्य वचसो बभूव ॥६ ॥

हे पूजनीय देवताओं ! आप हें वृक (भेड़िया या क्रूरकर्मी) तथा वृक्य (करूरता-कुरिलता) से बचाएँ । आप

हमारे शरीर, बल एवं वाक्‌ को श्रेष्ठता की ओर बढ़ने की प्रेरणा दें ॥६ ॥

४९०८. मा व एनो अन्यकृतं भुजेम मा तत्कर्म वसवो यच्चयध्वे ।

` विश्वस्य हि क्षयथ विश्वदेवाः स्वयं रिपुस्तन्वं रीरिषीष्ट ॥७ ॥

हे देवताओ ! दूसरों के द्वारा किए गये पाप-कर्मों का दुष्परिणाम हमें भोगना न पटे । हम दण्डनीय पाप कर्म

न करें । हे विश्वके स्वामी देव ! आपकी कृपा से शत्रु अपने शरीर को स्वयं ही नष्ट कर लें ॥७ ॥

४९०९. नम इदुग्रं नप आ विवासे नमो दाधार पृथिवीमुत द्याम्‌)

नमो देवेभ्यो नम ईश एषां कृतं चिदेनो नमसा विवासे ॥८ ॥

नमन वास्तव में ही यहान्‌ है, इसलिए हम उसका सेवन करते (उसे व्यवहार में लाते) है । नमन ही चुलोक

एवं पृथ्वी का धारणकर्ता है । हम देवगणों को नमन करते हैं, नमन ही उन्हें प्रभावित करने वाला है । किये गये

(कर्मों के भोगो) को नष्ट करने के लिए हम नमन करते हैं ॥८ ॥

[ नपन-स्रष्टा के अनुशासन को स्वीकार करते का प्रतीक है। उसके अनुशासन को स्वीकार करके ही चावा-पृथिवी का

अस्तित्व बना है । इसी क्रम से देवगण प्रभावित होते हैं। उनको शक्तियों नपनशीलों- अनुशासन स्वीकार करने कालो को ही प्राप्त

होती हैं। कुकर्मजनित पापों तथा श्रेष्ठ कर्मजनित अहंकार के नाश के लिए भी नमन उपयोगी है ।]

४९१०. ऋतस्य वो रथ्यः पूतदक्षानृतस्य पस्त्यसदो अदब्धान्‌।

ताँ आ नपोभिरुरुचक्षसो नृन्विश्वान्व आ नमे महो यजत्राः ॥९॥

है देवगण ! आप यज्ञ के नेतृत्व करने वाले, बलवान्‌ यज्ञशाला में निवास करने वाले, अपराजित एवं

महिमावान्‌ है । हम नमस्कार द्वारा आपको नमन करते है ॥९ ॥

४९११. ते हि भ्रष्ठवर्चसस्त उ नस्तिरो विश्वानि दुरिता नयन्ति ।

सुश्चत्रासो वरुणो पित्रो अगिनर््रम्तधीतयो वक्मराजसत्याः ॥९० ॥

वे देवता हमारे पापो को दूर करने वाले तथा तेजस्वी हैं । सत्यवादी, सदाचारी एवं सत्यबल वाले (साधक),

वरुण पित्र एवं अग्नि आदि सभी देवो के आश्रय मे रहते हैं ॥१०॥

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