Home
← पिछला
अगला →

६७६

+ अर्चयस्व हषीकेओआं यदीच्छति प्रं पदम्‌ *

[ संक्षिप्त पद्पुराण

0७७७७७७७० ७७७७ ७७७७७ 0७७७७ ७७७७७७७७०४७ १७७७७ ७ ७७७७७ ४७७७७ सहित ति 9 ७०७७७ १.१.१११.१४ ४११ .११..११४..१ १.१ १.४ 2.9 ११9. १9१9७१४.

आ जाती । 'प्रयोधिनी' एकादशीको एक ही उपवास कर

लेनेसे मनुष्य हजार अश्वमेध तथा सौ राजसूय यज्ञका

फल पा लेता है। बेटा ! जो दुर्कभ है, जिसकी प्राप्ति

असम्भव है तथा जिसे त्रिल्त्रेकीमें किसीने भी नही देखा

है; ऐसी चस्तुके लिये भी याचना करनेपर 'प्रयोधिनी'

एकादज्ञी उसे देती है । भक्तिपूर्वक्ष ऊपवास करनेपर

मनुष्योको "हरिबोधिनी' एकादशी ऐश्वर्य, सम्पत्ति, उत्तम

बुद्धि, राज्य तथा सुख प्रदान करती है। मेरुपर्वतके

समान जो बड़े-बड़े पाप हैं, उन सबको यह पापनाशिनी

“प्रबोधिनी' एक ही उपवाससे भस्म कर देती है । पहल्ेके

हजारों जन्मोंमें जो पाप किये गये हैं, उन्हें 'प्रयोधिनी' की

रात्रिका जागरण रूईकी देरीके समान भस्म कर डालता

है। जो लोग “प्रबोधिनी' एकादशीका मनसे ध्यान करते

तथा जो इसके ब्रतका अनुष्ठान करते हैं, उनके पितर

नरकके दुःखॉंसे छुटकारा पाकर भगवान्‌ विष्णुके

परमधामको चले जाते हैं। ब्रह्मन्‌ ! अश्वमेधं आदि

यज्ञॉसे भी जिस फलकी प्राप्ति कठिन है, वह 'प्रबोधिनी'

एकादशीको जागरण करनेसे अनायास ही मिल जाता

है। सम्पूर्ण तीथॉमें नहाकर सुवर्ण ओर पृथ्वी दान

करनेसे जो फल मिलता है, बह श्रीहरिके निमित्त जागरण

करनेमात्रसे मनुष्य प्राप्त कर लेता है। जैसे मनुष्योके

लिये मृत्यु अनिवार्य है, उसी प्रकार धन-सम्पत्तिमात्र भी

है; ऐसा समझकर एकाददीका त्रत करना

चाहिये । तीनों ल्के जो कोई भो तीर्थ सम्भव हैं, वे

सब “प्रबोधिनी' एकादश्नीका वरत करनेवाले मनुष्यके

घरयें मौजूद रहते हैं। कार्तिककी 'हरिबोधिनी' एकादशी

पुत्र तथा पौत्र प्रदान करनेवाली है। जो “प्रबोधिनी को

डपासना करता है, बही ज्ञानी है, वही योगी है, वही

तपस्वी और जित्तेन्द्रिय है तथा उसीको भोग और मोक्षकी

प्राप्ति होती है।

बेटा ! 'प्रजोधिनी' एकादशीकों भगवान्‌ विष्णुके

उद्देश्यसे मानव जो सान, दान, जप और होम करता है,

यह सब अक्षय होता है। जो मनुष्य उस तिथ्िको

उपवास करके भगवान्‌ माधवकी भक्तिपूर्वक पूजा करते

हैं, वे सौ जन्पोकि पापोंसे छुटकारा पा जाते हैं।

इस ब्रतके द्वारा देवेश्वर ! जनार्दनको सन्तुष्ट करके मनुष्य

सम्पूर्ण दिशाओंको अपने तेजसे प्रकाशित करता हुआ

श्रीहरिके वैकुण्ठ धामको जाता है। "प्रबोधिनी" को

पूजित होनेपर भगवान्‌ गोविन्द मनुष्योके बचपन, जवानी

और बुढ़ापेमें किये हुए सौ जन्मोकि पाको, चाहे वे

अधिक हों या कम, धो डालते हैं। अतः सर्वथा प्रयल

करके सम्पूर्ण मनोबाज्छित फर्प्रेंको देनेवाले देवाधिदेव

जनार्दनकी उपासना करनी चाहिये। ब्रेटा नारद ! जो

भगवान्‌ विष्णुके भजनमें तत्पर होकर कार्तिकर्में पराये

अन्नका त्याग करता है, वह चान्द्रायण ब्रतका फलः पाता

है। जो प्रतिदिन शास्त्रीय चर्चासे मनोरञ्जन करते हुए

कार्तिक मास व्यतीत करता है, वह अपने सम्पूर्ण

पापोंको जला डालता और दस हजार यज्ञोका फल प्राप्त

करता है। कार्तिक मासे शास्त्रीय कथाके कहने-

सुननेसे भगवान्‌ मधुसूदनको जैसा सन्तोष होता है, यैसा

उन्हें यज्ञ, दान अथवा जप आदिसे भी नहीं होता | जो

शुभकर्म-परायण पुरुष कार्तिक मासमे एक या आधा

इल्मेक भी भगवान्‌ विष्णुकी कथा बाँचते हैं, उन्हें सौ

गोदानका फल मिलता है। महामुने ! कार्तिकर्में भगवान्‌

केशवके सामने शासका स्वाध्याय तथा श्रवण करना

चाहिये। मुनिश्रेष्ट ! जो कार्तिकरमे कल्याण-प्राप्तिके

लोभसे श्रीहरिकी कथाका प्रवन्ध करता है, वह अपनी

सौ पोढ़ियॉको तार देता है । जो मनुष्य सदा नियमपूर्वक

कार्तिक मासमे भगवान्‌ विष्णुकम कथा सुनता है, उसे

सहन गोदानका फल मिलता है। जो 'प्रयोधिनी'

एकाद्लीके दिन श्रीविष्णुकी कथा श्रवण करता है, उसे

सातं द्वीपोंसे युक्त पृथ्वों दान करनेका फल प्राप्त होता

है । मुनिश्रेष्ठ ! जो भगवान्‌ विष्णुकी कथा सुनकर अपनी

दाक्तिके अनुसार कथा-वाचककी पूजा करते हैं, उन्हें

अक्षय लोककी प्राप्ति होती है। नारद ! जो मनुष्य

कार्तिक मासमे भगवत्संबन्धी गोत और राख्नविनोदके

द्वारा समय बिताता है, उसकी पुनरावृत्ति मैंने नहीं देखी

है। मुने ! जो पुण्यात्या पुरुष भगवानके समक्ष गान,

नृत्य, वाद्य और श्रोविष्णुकी कथा करता है, वह तीनों

लोकॉके ऊपर विराजमान होता है।

← पिछला
अगला →