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अपनी जन्मदायिनी माताको देखकर उन सबसे विदा

लेकर आ जाऊँगी--मैं शपथपूर्वक यह बात कहती हूँ।

यदि तुम्हे विश्वास हो, तो मुझे छोड़ दो । यदि मैं पुनः

ल्तरैटकर न आऊँ तो मुझे वही पाप लगे, जो ब्राह्मण तथा

माता-पिताका वध करनेसे होता है। व्याधो, म्लेच्छों

और जहर देनेवाल्म्ेंको जो पाप लूगता है, वही मुझे भी

लगे। जो गोज्ञात्ममें विश्न डालते हैं, सोते हुए प्राणीको

मारते हैं तथा जो एक बार अपनी कन्याका दान करके

फिर उसे दूसरेको देना चाहते हैं, उन्हें जो पाप छगता है,

वही मुझे भी लगे। जो अयोग्य बैल्मेंस भारी बोझ

उठवाता है, उसको लगनेवाल् पाप मुझे भी लंगे। जो

कथा होते समय विप्र डालता है और जिसके घरपर

आया हुआ मित्र निरादा स्तरैट जाता है, उसको जो पाप

लगता है, वही मुझे भी लगे, यदि मैं पुनः लौटकर न

आऊँ। इन भयंकर पातकोंके भयसे मैं अवश्य आऊँगी ।'

ननन्‍्दाकी ये शपथें सुनकर व्याघ्रको उसपर विश्वास

हो गया। वह बोला--“गाय ! तुम्हारी इन शपथोंसे

मुझे विश्वास हो गया है। पर कुछ रग तुमसे यह भी

कहेंगे कि स्ीके साथ हास-परिहासमें, विवाहमें, गौको

संकटसे बचानेमें तथा प्राण-संकट उपस्थित होनेपर जो

हापथ की जाती है, उसकी उपेक्षासे पाप नहीं लगता ।'

किन्तु तुम इन बातोंपर विश्वास न करना । इस संसारमें

कितने ही ऐसे नास्तिक हैं, जो मूर्ख होते हुए भी अपनेको

पष्डित समझते हैं; ये तुम्हारी बुद्धिको क्षणभरमें श्रमे

डाल देंगे। जिनके चित्तपर अज्ञानका परदा पड़ा रहता है,

ये क्षुद्र मनुष्य कुतर्कपूर्ण युक्तियों और दृष्टन्तोंस

दूसरोंको मोहमें डाल देते हैं। इसलिये तुम्हारी बुद्धिमें

यह वात नहीं आनी चाहिये कि मैंने शपथोंद्वारा व्याघ्रको

ठग लिया । तुमने ही मुझे धर्मका सारा मार्ग दिखाया है;

अतः इस समय तुम्हारी जैसी इच्छा हो, करो।''

नन्दा बोली--साधो ! तुम्हारा कथन ठीक है,

तुम्हें कौन ठग सकता है । जो दूसरोंको ठगना चाहता है,

बह तो अपने-आपको ही ठगता है।

व्याघ्रने कहा--गाय ! अब तुम जाओ।

पुत्र॒वत्सले ! अपने पुत्रको देखो, दूध पिल्मओ, उसका

» सरस्वतीके नन्दा नाम पड़नेका इतिहास और उसका माहात्म्य +

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मस्तक चाटो तथा माता, भाई, सखी, स्वजन एवं बन्धु-

बान्धवोका दर्शन करके सत्यको आगे रखकर झञीघ्र ही

यहाँ लौट आओ।

पुलस्त्यजी कहते हैं--वह पुत्रवत्सला धेनु बड़ी

सत्यवादिनी चौ । पूर्वोक्त प्रकारसे शापथ करके जब वह

व्याप्रकी आज्ञा छे चुकी, तब गोष्ठकी ओर चली । उसके

मुखपर आँसुओंकी धारा बह रही थी। वह अत्यन्त दीन

भावसे कपि रही थी । उसके हृदयमें बड़ा दुःख था । वह

शोकके समुद्रमें डूबकर बारम्बार डैंकराती थी। नदीके

किनारे गोष्ठपर पहुँचकर उसने सुना, बछड़ा पुकार रहा है।

आवाज कानमें पड़ते ही वह उसकी ओर दौड़ी और

निकट पहुँचकर नेत्रोंसे आँसू बहाने लगी माताको निकट

पाकर बछड़ेने दाङ्कित होकर पूछा--'माँ ! [आज

हो गया है ?] मैं तुम्हें प्रसन्न नहीं देखता, तुम्हारे हृदयमें

शन्ति नहीं दिखायी देती । तुम्हारी दृष्टिमें भी व्यग्रता है,

आज तुम अत्यन्त डरी हुई दीख पड़ती हो ।'

जन्दा खोली--बेटा ! स्तनपान करो, यह

हमलोगोंकी अन्तिम भेंट है; अबसे तुम्हें माताका दर्शन

दुर्लभ हो जायगा । आज एक दिन मेरा दूध पीकर कल

सबेरेसे किसका पियोगे ? वत्स ! मुझे अभी ततैट जाना

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