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बिजली गिरनेसे नष्ट हुए हैं, उन सबको मोक्ष

देनेवाली केवल गङ्गा नदी हैं। यदि आप जाकर

मुझे शाप देनेवाले उस ब्राह्मणको प्रसन्न कर लें

तो मेरी सद्रति हो सकती है।'

राजन्‌! तब लोकपितामह ब्रह्माजी शिव, इन्द्र,

धर्म, सूर्य तथा अग्नि आदि देवेश्वरो ओर मुनिर्योको

साथ ले उपर्युक्त बातें कहनेवाली मोहिनीको आगे

करके ब्राह्मणके समीप गये। वहाँ जाकर देवता

आदिसे घिरे हुए स्वयं ब्रह्माजीने बड़े गौरवसे

उन्हें नमस्कार किया। यद्यपि ब्रह्माजी रुद्र॒ आदि

देवताओंके लिये भी पूजनीय और माननीय हैं,

तथापि पोहिनीके स्नेहके कारण उन्होने स्वयं हौ

नमस्कार किया। राजन्‌! जब तीनों लोकोंमें

असाध्य एवं महान्‌ कार्य प्राप्त हो जाय, तब

बड़ेके द्वारा छोटेका अभिवादन दूषित नहीं माना

जाता। वे ब्राह्मण देवता वेद-वेदाड्रोंके पारदर्शी

विद्वान्‌ ओर तपस्वी थे। लोककर्ता ब्रह्माजीको

देवताओंके साथ आया देख ब्राह्मणने उठकर

मुनियोंसहित उन सबको प्रणाम किया और

संक्षिप्त नारदपुराण

आसनपर बिटाकर भक्तिपूर्वकं ब्रह्माजोका स्तवन

किया, तब प्रसन्न होकर लोककर्ता जगद्गुरु भगवान्‌

ब्रह्मेने मोहिनीके लिये उन राजपुरोहित ब्राह्मणसे

इस प्रकार प्रार्थना कौ--'तात! आप ब्राह्मण हैं,

सदाचारी हैं और परलोकमें उपकार करनेवाले हैं।

कृपासिन्धो ! कृपा कीजिये और मोहिनीको उत्तम

गति प्रदान कीजिये | ब्रह्मन्‌ ! मोहिनी मेरी पुत्री है ।

मानद! यमलोकको सूना देखकर रूक्माङ्गदको

मोहनेके लिये (प्रकारान्तरसे उस भक्तका गौरव

बढ़ानेके लिये) मैंने ही उसे भेजा था। धर्मकौ गति

अत्यन्त सूक्ष्म है। वह सम्पूर्ण लोकका कल्याण

करनेवाली है। यह मोहिनी एक कसौटी थी,

जिसपर सुवर्णरूपी राजा स्क्माङ्गदकी परीक्षा करके

उन्हें स्त्री-पुत्रसहित भगवान्‌के धामको भेज दिया

गया है। राजाने अविचल भक्तिसे एकादशी-ब्रतका

पालन करने और करानेके कारण यमराजकी लिपिको

मिटाकर यमपुरीकों सूना कर दिया था। ब्रह्मन्‌!

सांख्यवेत्ताको जिसकी प्राप्ति असम्भव है,

अष्टाड्रयोगके साधनसे भी जो मिलनेवाला नहीं

है, उस भक्तिगम्य पदकी प्राप्ति राजा, राजकुमार

और देवी संध्यावलीको हुई है। मोहिनीने जो

उस पुण्यशील भूपशिरोमणिके प्रतिकूल आचरण

किया है, उस पापके वेगसे उसकी बड़ी दुर्दशा हुई

है। आपके शापसे दग्ध होकर यह राखकी ढेरमात्र

रह गयी है। इसके द्वारा जो अपकार हुआ है, उसे

क्षमा कर दीजिये। दया कीजिये, शान्त होइये!

आपके शाप देनेसे यह अधोगतिमें डाली गयी है।

इसपर प्रसन्न होइये और इसे उत्तम गति दीजिये।'

ब्रह्माजीके द्वारा ऐसा कहे जानेपर उन

विप्रशिरोमणिने बुद्धिसे विचार करके क्रोध त्याग

दिया और मोहिनीके पिता देवेश्वर श्रोब्रह्माजौसे

इस प्रकार कहा--'देव! आपकी पुत्री मोहिनी

बहुत पापसे भरी हुई है, अतः प्राणियोंसे परिपूर्ण