उत्तरभाग
पत्नी -सुखके समान कोई (लौकिक) सुख नहीं है।
खेतीके समान कोई धन नहीं है, गाय रखनेके समान
कोई लाभ नहों है, उपवासके समान कोई तप
नहीं है और (मन और) इन्द्रियोंक संयमके समान
कोई कल्याणमय साधन नहीं है। स्सनातृप्तिके समान
कोई (सांसारिक) तृप्ति नहीं है, ब्राह्मणके समान
कोई वर्ण नहीं है, धर्मक समान कोई मित्र नहीं है
और सत्यके समान कोई यश नहीं है। आरोग्यके
समान कोई ऐश्वर्य नहीं है, भगवान् विष्णुसे
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बढ़कर कोई देवता नहीं है तथा लोकमें कार्तिकत्रतके
समान दूसरा कोई पावन ब्रत नहीं है। ऐसा ज्ञानी
पुरुषोंका कथन है। कार्तिक सबसे श्रेष्ठ मास है
और वह भगवान् विष्णुको सदा हौ प्रिय है।
राजन्! कार्तिक मासको आया देख अत्यन्त
मुग्ध हुए महाराज सुक्माङ्गदने मोहिनीसे यह बात
कही-' देवि! मैंने तुम्हारे साथ बहुत वर्षोतक
रमण किया। शुभानने ! इस समय मैं कुछ कहना
चाहता हूँ। उसे सुनो। देवि! तुम्हारे प्रति आसक्त
होनेके कारण मेरे बहुत-से कार्तिक मास व्यर्थ बीत
गये। कार्तिकमें मैं केवल एकादशीको छोड़कर और
किसी दिन ब्रतका पालन न कर सका। अत: इस
बार मैं व्रतके पालनपूर्वक कार्तिक मासमें भगवान्की
उपासना करना चाहता हूँ। कार्तिकर्में सदा किये
जानेवाले भोज्योंका परित्याग कर देनेपर साधकको
अवश्य ही भगवान् विष्णुका सारूप्य प्राप्त होता
है। पुष्करतीर्थमे कार्तिक-पूर्णिमाको त्रत और
स्नान करके मनुष्य आजन्म किये हुए पापसे मुक्त
हो जाता है। जिसका कार्तिक मास त्रत, उपवास
तथा नियमपूर्वक व्यतीत होता है, वह विमानका
अधिकारी देवता होकर परम गतिको प्राप्त होता
ह । अतः मोहिनी! तुम मेरे ऊपर मोह छोड़कर
आज्ञा दो, जिससे इस समय मैं कार्तिकका ब्रत
आरम्भ करं ।'
मोहिनी बोली - नृपशिरोमणे ! कार्तिक मासका
माहात्म्य विस्तारपूर्वक बताइये। मैं कार्तिक-
माहात्म्य सुनकर जैसी मेरौ इच्छा होगी, वैसा
करूँगो।
रुक्माङ्गदने कहा-- वरानने ! मैं इस कार्तिक
मासकी महिमा बताता हूँ। सुन्दरौ ! कार्तिक
मासमे जो कृच्छर अथवा प्राजापत्यत्रत करता है
अथवा एकं दिनका अन्तर देकर उपवास करता है
अथवा तीन रातका उपवास स्वीकार करता है