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देवी के एक सौ आठ साम |] [ १०५

१२--देवी के एक सो आठ नाम

भगवनु ! श्रोतुमिच्छामि पितृणां वंशमुत्तमस्‌ ।

रवेश्चश्चाद्वदेवत्वं सोमस्य च विशेषतः । १

हन्तते कथयिष्यामि पितृणां वंशमुत्तमम्‌ ।

स्वर्गे पितृगणाः सप्तत्रयस्येषाममृत्तेय: ।\२

मूत्तिमन्तोऽय चत्वारः सर्वेषाम मितोजसः ।

अमूत्तयः पितृगणा वैदाजस्य प्रजापतेः ॥।३

यजन्ति यान्‌ देवगणा वैराजा इति विश्च. ता: ।

दिवि ते योगबिश्रष्टाः प्राप्य लोकान्‌ सनातनान्‌ ॥।४

पुनब्र ह्मविदान्ते तु जायन्ते ब्रह्मवादिनः ।

संप्राप्यतां स्मृति भूयो योगं साडः ख्यमनुत्तमम्‌ ।।५

सिद्धिभ्रयान्ति योगेन पुनरावृत्तिदुलेभास्‌ ।

योगिनायेक्देयानि तस्याच्छाद्धानिदातृभिः ।।६

एतेषां मानसी कन्यापत्नो हिमग्तोमता ।

मेनाकस्तस्यदायादः कौञ्चस्तस्याग्रजोऽभवत्‌ ।।७

मनु महाराज ने कहा- हे भगवन्‌ ! अब मैं पितृगण का उत्तम

वंश का श्रवण करना चाहता हं । रवि का ओर धिशेष रूप से सोम का

श्राद्ध देवत्व श्रवण करने की इच्छा उत्पन्न होती है ।१। मत्स्य भगवान्‌

ने कहा--बहुत ही प्रसन्नता का विषय है । अब हम पितृगण के उत्तम

वंश का ही वर्णन करेगे । स्वगं में सात पितृगण है उनमें से तीन अमूत्त

स्वरूप हैं ।२। इन सबमें अपरिमित ओज वाले चार पितृगण मूत्तिमान्‌

हैं जो मूर्ति रहित पितृगण हैं। वे प्रजापति बैराज के हैं ।३।

देवगण जिनका यजन किया करते हैं वे वेराज इस नाम से विश्र॒त

हैं वे दिन लोक में योग से विश्रष्ट होते हुए सनातन लोकों की प्रात्ति

किया करते हैं ।४। पूनः वे ब्रह्म वेत्ताओं में ब्रह्मवादी होकर ही जन्म

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