अथवा पद्मके स्थानपर वाम भागमें पद्या देवौ | एवं गदा धारण करते ई ॥ ८-९॥
सुशोभित होती हैं। लक्ष्मी उनके बायें कूर्षर
(कोहनी)-का सहारा लिये रहती हैं। पृथ्वी तथा
अनन्त चरणोंके अनुगत होते हैं। भगवान् वराहकी
स्थापनासे राज्यकी प्राप्ति होती है और मनुष्य
भवसागरसे पार हो जाता है। नरसिंहका मुँह
खुला हुआ दै । उन्होंने अपनी बायीं जाँघपर दानव
हिरण्यकशिपुको दबा रखा है और उस दैत्यके
वक्षको विदीर्ण करते दिखायी देते हैं। उनके
गलेमें माला है और हाथोंमें चक्र एवं गदा
प्रकाशित हो रहे हैं॥ १--४॥
वामनका विग्रह छत्र एवं दण्डसे सुशोभित
होता है अथवा उनका विग्रह चतुर्भुज बनाया
जाय। परशुरामके हाथोंमें धनुष और बाण होना
चाहिये। वे खद्ग और फरसेसे भी शोभित होते
हैं। श्रीरामचन्द्रजीके श्रीविग्रहकों धनुष, बाण,
खड्ग और शब्डभसे सुशोभित करना चाहिये।
अथवा वे द्विभुज माने गये हैं। बलरामजी गदा एवं
हल धारण करनेवाले हैं, अथवा उन्हें भी चतुर्भुज
बनाना चाहिये। उनके बायें भागके ऊपरवाले
हाथमें हल धारण करावे और नीचेवालेमें सुन्दर
शोभावाली शङ्क, दायें भागके ऊपरवाले हाथमें
मुसल धारण करावे और नीचेवाले हाथमें शोभायमान
सुदर्शन चक्र ॥ ५--७॥
बुद्धदेवकी प्रतिमाका लक्षण यों है । बुद्ध ऊँचे
'पद्ममय आसनपर बैठे हैँ । उनके एक हाथमें वरद
और दूसरेमें अभयकी मुद्रा है । वे शान्तस्वरूप है ।
उनके शरीरका रंग गोरा और कान लम्बे हैं। वे
सुन्दर पीत वस्त्रसे आवृत हैँ । कल्की भगवान्
ब्रह्मन्! अब मैं तुम्हे वासुदेव आदि नौ
मूर्तियोकि लक्षण बताता हँ । दाहिने भागके ऊपरवाले
हाथमे उत्तम चक्र--यह वासुदेवकी मुख्य पहचान
है। उनके एक पारमे ब्रह्म और दूसरे भागमें
महादेवजी सदा विराजमान रहते है । वासुदेवकी
शेष बातें पूर्ववत् है । वे शङ्खं अथवा वरदकी मुद्रा
धारण करते है । उनका स्वरूप द्विभुज अथवा
चतुर्भुज होता है। बलरामके चार भुजाएँ हैं। वे
दार्ये हाथमें हल और मुसल तथा बायें हाथमे गदा
और पद्म धारण करते हैं। प्रद्युम्न दायें हाथमें चक्र
और शङ्कं तथा बायें हाथमें धनुष-बाण धारण
करते हैं। अथवा द्विभुज प्रधुम्रके एक हाथमें गदा
और दूसरेमें धनुष है। वे प्रसन्नतापूर्वक इन
अस्त्रोंकों धारण करते हैं। या उनके एक हाथमें
धनुष और दूसरेमें बाण है। अनिरुद्ध और भगवान्
नारायणका विग्रह चतुर्भुज होता है॥ १०--१३॥
ब्रह्माजी हंसपर आरूढ होते हैं। उनके चार
मुख और चार भुजाएँ हैं। उदर-मण्डल विशाल
है। लंबी दाढ़ी और सिरपर जटा--यही उनको
प्रतिमाका लक्षण है। वे दाहिने हाथोंमें अक्षसूत्र
और सुवा एवं बायें हाथोंमें कुण्डिका और
आज्यस्थाली धारण करते हैं। उनके वाम भागमें
सरस्वती और दक्षिण भागमें सावित्री हैं। विष्णुके
आठ भुजाएँ हैं। वे गरुड़पर आरूढ हैं। उनके
दाहिने हाथोंमें खड्ग, गदा, बाण और वरदकी
मुद्रा है। बायें हाथोंमें धनुष, खेट, चक्र और
शङ्खं हैं। अथवा उनका विग्रह चतुर्भुज भी है।
नृसिंहके चार भुजाएँ हैं। उनकी दो भुजाओंमें
धनुष और तूणीरसे सुशोभित हैं। म्लेच्छोंके शङ्खं और चक्र हैं तथा दो भुजाओंसे वे महान्
संहारमें लगे हैं। वे ब्राह्मण हैं। अथवा उनकी
हिरण्यकशिपुका वक्ष विदीर्ण कर रहे
असुर
आकृति इस प्रकार बनावे-वे घोड़ेकी पीठपर | हैं॥ १४--१७॥
बैठे हैं और अपने चार हाथोंमें खड़, शङ्ख, चक्र | वराहके चार भुजाएँ हैं। उन्होंने शेषनागको