दक्ष प्रजापति से मंथुनी सृष्टि | [ ५६.
अनुगत सुनों से पूर्व की भाँत्ति हीं नारद ने कहा थी किइसे भूमिका
सर्वत्र प्रमाण को जानकर कि यह कितनी विस्तृत हैं तथा अपने प्रथमः
गत भाईयों को भी जानकर फिर यहाँ आकर विशेष रूप से सृष्टि'की
रचना करोने । देवधि नारद जी के कहने पर वे सभी उसी मार्गसे चले:
गयें थे, जिससे पहिले उनके बड़े भाई लोग गये थे ।६-१५) तभी से
लेकर भाई के छोटे भाई उस मार्ग-की इच्छा नहीं करता है ।. अन्वेषण .
करते हुये दुःख को प्राप्त होता है अतएव, इसी कारण से उसका परि
वर्तन कर देना चाहिये । ११। इसके अनन्त उनके भी विनष्ट.ही जनि.
पर प्रजापति प्राचेतस दक्ष ने नैरिणी में साठ कन्याओं का सृजन.क्रिया-
था अर्थात् उनको जन्म दियाथा।१२। उन्हीं साठ कन्याओं में से दक्ष
में दस कन्याये तो धर्म को दी थों--ते रह कश्यप ऋषि को प्रदान की .
सत्ताईस सोम को प्रदान की थीं---चार अरिष्टनेसि को दी थीं | अत्र
उनके नाम धिस्तारप््वक बतलाये जाते हैं ।१३-१५ `
` शछृणुध्व देवमातृणां प्रजाविस्तरमादितः ।
मरुत्वतो वसूर्यामी लम्ब) भानुररन्धती । १५
संकल्पा च मुहूर्ता च साध्या विश्वा-च भामिनो ।
धर्मपत्न्यः समाख्यातास्तासां पुत्रान्तिबोधत ।१६
विश्वेदेवास्तु विश्वायाः साध्या साध्यानजीजनत् ।
मरुत्वत्यां मरुत्वन्तो वसोस्तु वसवस्तथा ।१७
भानोस्तु भानवस्तद्वन् मुहूत्तयां मुहतंकाः ।
लम्बायांघोषनामानोनागवीथीतुयामिजा ।१८
पृथिवीतलसम्भूतमरुन्धत्यामजायत । ` ` #
संकल्पायास्तु संकल्पो बसुसृष्टिन्निबोधत ।१६ ` ``
ज्योतिष्मन्तस्तुयेदेवाव्यापकाः पवंतोदिशम् ।
वसवस्ते समाख्यात स्तेषां सगेन्निबोधत ।२०
आपो श्र वश्च सोमश्च धरश्चैवानिलोऽनलः ।
प्रत्य् पश्च प्रभासश्च वसवोऽष्टौ प्रकीर्तिताः ।२१