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+संक्षिप्त मार्कण्डेम पुराण *

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खौलत। हुआ तेल भरा रहता है और किन्होंमें| और फिर उन दुकड़ोंकों उन्हीं बमं डाल देते

हफये हू लोहेका चूर्ण होता है। यमराजके दूत है । वहाँ ये सभी टुकड़े सीकर तेलपें मिल जाते

पापी मनुष्योंकों उनका मुँह तौचे करके उन्हीं है । मस्तक, शरोर, स्नायु, मांस, त्वचा और

बड़ोंमें डाल देते हैं। बहाँ पढ़ते हो उनके शरीर | हड्डियाँ-सभी गल जाती हैं। तदनन्तर यमराजके

टूट फूट जते रै ¦ शरीरकौ मज्वाका भाग गलकर दूत करछुलसे उलट-पुलटकर खौलते हुए वेलमें

भानो हो जाता है। कपाल और नेत्रोंकों हड्डियाँ|उन पाषिवोंको अच्छो तरह मथते हैं। पिताजी!

चटककर फूटते लगतों हैं। भयानक्त गृध्र उनके इस प्रकार यह तशकुम्प नामक नरककों बात मैंने

अज्लोंको नौच नोचकर टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं, आपको विस्तारपूर्वक बतलायौ है।

जनक -यमदूत-संवाद, भिन्न-भिन्न पापोंसे विभिन्न नरकोंकी प्रापिका वर्णन

पुत्र ( सुमति ) कहता है--पिताजों! इससे | बहती थी. उससे कीचड़ जम गयी थी और काटे

पहले सातवें जमर पं एक वैश्यके कुलपें उत्पण जानेवाले दुष्कर्मियोंके नरकमें पड़नेसे सब ओर

हुआ था। उस समय पौंसलेपर पानी पीनेकों | घोर हाहाकार मचा रहता था। उस नरकमें पड़े

जातो हुई भौओंकों मैंने वहाँ जानेसे रोक दिया | मुझे सौ वर्षसे कुछ अधिक समय बीत गया। मैं

था। उस पापकर्मके फलसे पुझे अत्यन्त भयङ्कर महान्‌ ताप और पीड़ासे सन्तप्त रहता थरा। प्यास

नरकमें जाना पड।, जो भागकी लपके कारण | और जलन बराबर बनी रहती थी। तदनन्तर एक

थोर दुःखदायी प्रतत होता था। उसमें लोहेकौ- | दिन सहसा सुख देनेवालो ठंडी टवा चलने लगी।

सी चॉचवाले पक्षी भरे पड़े थे! कहाँ पापियोकि , उस समय मैं तत्त्रालुका भीर तसकुम्भ नामक

शरीरको कोल्हूमें पेलेके कारण जो रक्तको धारा | नरकोकि वोच था। उस शौतल वायुके सम्पर्कसे

( -ऋक्नाहृष् ट] | उन नस्क पड़े हुए सभौ जीवॉकी चातन दूर हो

८ ९: ४; 2८] । गयी । मुझे भी उतना ही आदन्द हुआ, जितना

स्वर्गमें रहनेबालॉकों वहाँ प्रात होता है| “यह क्या

थात हो गयी ?' यों सोचते हुए हम सभी जीवने

आनन्दकी अधिकताके कारण एकरक नेत्रोंसे जब

चारो ओर देखा, तब हमें धे ही उत्तम एक

नररल दिखासो दिये। उनके साथ बिजलीके

| | समान कान्तिमान्‌ एक भयङ्कर यमदूत धा, जो

आगे होकर रास्ता दिल्ला रहा धा और कहता था,

'प्रहाराज! इधरसे आइये' सैकड़ों यातनाओंसे

व्या8 नरककों देखकर उन पुरुषरलको बड़ी दया

आयौ उन्होंने यपदूतसे कहा।

| आगन्तुक पुरुष बोले- यमदूत | बताओ तो

अही, मैंने कौन-सा ऐसा पाप किया है, जिसके

3358३ | कारण अनेक प्रकरी यातनाओंसे पूर्ण इस

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