Home

आवाहन करता हूँ। पितृवंश एवं मातृबंशरमें जिन लोगॉकी

मृत्यु हुईं है, उन लोगोंके उद्धारके लिये मैं यह पिण्डदान

दे रहा हूँ। मातामह अर्थात्‌ नानाके कुलमें जो लोग मर गये

है, जिनको कोई सद्गति प्राप्त नहीं हुई है, उनके उद्धारके

लिये मैं यह पिण्ड दे रहा हूँ। हमारे कुलमें जो दाँत

निकलनेके पूर्व ही मृत्युकों प्राप्त हो गये और जो कोई

गर्भकालमें विनष्ट हो गये हैं, उन लोगेकि उद्धारके लिये मैं

यह पिण्डदान दे रहा हूँ। बन्धुकुलमें उत्पन्न जो कोई नाम-

गोजसे रहित हैं, स्वगोत्र एवं परगोत्रमें जिनकी कोई गति

नहीं रही है, उनके उद्धारके लिये मैं यह पिण्ड दे रहा हूँ।

उद्रन्धन (फाँसीद्वाए) अथवा बिपसे या शस्त्राघातसे जिनकी

मृत्यु हुई है, जिन्होंने आत्महत्या कौ है, उन लोगोके लिये

यह पिण्ड दे रहा हूँ।

जो लोग अग्निमें जलकर मर गये हैं, जिनकी मृत्यु

सिंह और व्याघ्रादि हिंसक प्राणियोंके द्वारा हुईं है अथवा

विशाल दाँतोंवाले हाथियों या सॉगधारी पशुओंके आघातसे

जो मरे हैं, उन सभीके उद्धारके लिये मैं पिण्ड दे रहा हूँ।

जिनकी मृत्यु अग्निमें जलकर अथवा बिना अग्निर्मे जले

हो गयी है, जो विद्युत्से या चोरोंके द्वारा मारे गये हैं,

उनके लिये मैं पिण्ड दे रहा हूँ। जो रौरब, अन्धतामित्

तथा कालसूत्र नामक नरको गये हैं, उन सबके उद्धारके

लिये यह पिण्ड दे रहा हूँ। जो असिपत्रयन और घोर-

कुम्भीपाक नामक नरकॉमें पड़े हुए हैं, उनके उद्धारके लिये

यह पिण्ड दे रहा हूँ। अन्य जो यातना भोग रहे हैं और

प्ेतलोकर्मे निवास कर रहे हैं, उनके उद्धारके लिये यह

पिण्ड दे रहा हूँ।

जो पितृगण पशुयोनिमे चले गये हैं अथवा जो पक्षी,

कीट-पतंग, सर्प, सरीसृप (छिपकलो, गिरगिट, सर्पादि)

हो गये हैं या जो वृक्षयोनिमें अवस्थित हैं, उनके लिये मैं

यह पिण्ड दे रहा हूँ । जो यमराजके शासनादेशसे यमगणोंकि

द्वात असंख्य यातनाओंके यीच पहुँचाये गये हैं, उन

सभीके उद्धारके लिये यह पिण्ड दे रहा हूँ। जो अपने

कर्मानुसार हजारों योनियॉमें घूमते हुए कष्ट भोग रहे हैं,

जिनको मानुषयोनि दुर्लभ है, उन सभीके लिये यह पिष्ड

दे रहा हूँ।

जो हमारे बान्धव हैं या बान्धव नहीं हैं अथवा जो

अन्य जन्मोमें मेरे बन्धु-बान्धव रहे हैं, ये मेरे द्वारा दिये

गये इस पिण्डदानसे सदैव तृप्तिकों प्राप्त करें। जो कोई

भी पितृजन प्रेतरूपमें अवस्थित हैं, ये सभी इस पिण्डदानसे

तृप्ति प्राप्त करें।

जो हमारे पितृकुल, मातृकुल, गुरु, श्वशुर, बान्धव

अधवा अन्य सम्बन्धियोंके कुलमें उत्पन्न होकर मृत्युको

प्राप्त हुए हैं और जो अन्य बान्धव हैं, जो मेरे कुलमें पुत्र-

पत्रीसे रहित होनेके कारण लुप्तपिण्ड हैं, क्रियालोपसे

जिनकी दुगंति हुईं है, जो जन्मान्ध या पंगु हैं, जो विरूप

हैं अथवा अल्प-गर्भमें हौ मृत्युको प्राप्त हुए हैं, जो ज्ञात

अधवा अज्ञात हैं, उनके निमित्त मेरे द्वारा दिया गया यह

पिण्डदान अक्षय होकर उन्हें प्राप्त हो!

ब्रह्म और ईशान आदि देव! आप सब मेरे इस कारवे

साक्षी हों। मैंने गयातीर्थमें आ करके पितरेकि उद्धारके लिये

यह पिण्डदानादिक कार्य सम्पन्न किया है।

हे देव! भगवान्‌ गदाधर विष्णु! मैं पितृकायके लिये

इस गयातीर्थं उपस्थित हुआ हूँ। मेरे द्वारा सम्पन्न किये

गये आजके इस पितृकार्यमें आप साक्षी हों। आज मैँ

(देव-गुरु एवं पितृ) तोनों ऋणोंसे विमु हो गया

हूँ। (अध्याय ८५)

(+ ऑम्यमयओे-- पल

ये भे पितुकुले जाताः कुले मातुस्तथैव च । गुरुशशुरयन्धूनां ये चान्ये चान्थवा सृत्ता:॥

ये मे कुले लुप्तपिण्डाः पुष्रदारबिवर्जिता:। क्रियालोपहता ये च जात्यन्था: पद्षरत ॥

खिरूपा आमगर्भाक्ष ज्ञाताज्ञाता: कुले मम । वैं पिण्डं मया दत्तमक्षप्यमुपतिहताम्‌

साः सन्तु में देखा ब्रह्ेशानादयस्तथा › मया नयां समास पितृणां निष्कृतिः कृता ॥

आगतोऽहं गयां देव॒ पितृकायें गदाधर । तन्मे स्वक्षौ भवत्व अृोऽकमृणत्रयात्‌ ॥ (८५। २-२२)