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२६४ * संक्षिप्त ब्रह्मपुराण *

शङ्ख, चक्र, गदा, पद्म और पीताम्बर धारण | पाता है, उसे पुरुषोत्तमक्षेत्रमें एक ही मासमें प्रात

करनेवाले कमलनयन भगवान्‌ श्रीकृष्ण विराजमान | कर लेता है । तपस्या, ब्रह्मचर्यपालन तथा आसक्ति-

हैं, जिन्होंने कंस और केशीका संहार किया था। | त्यागसे जो फल मिलता है, उसे मनीषी पुरुष

जो लोग बरहा देव-दानव-वन्दित श्रीकृष्ण, बलभद्र | वहाँ सदा ही पाते रहते है । सब तीरथोमिं लान-

और सुभद्राका दर्शन करते हैं, वे धन्य है। | दान करनेका जो पुण्य फल बताया गया है, वह

भगवान्‌ श्रीकृष्ण तीनों लोकोकि स्वामी तथा | मनीषी पुरुषोंको यहाँ सर्वदा प्राप्त होता है।

सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुओके दाता हैँ । जो सदा विधिपूर्वक तीर्थसेवन तथा त्रत और नियमोकि

उनका ध्यान करते हैं, वे निश्चय ही मुक्त हो जाते पालनसे जो फल बताया गया है, उसे वहाँ

हैं। जो सदा श्रीकृष्णे अनुरक्त रहते है, रातको | इन्द्रियसंयमपूर्वक पवित्रतासे रहनेवाला पुरुष प्रतिदिन

सोते समय श्रीकृष्णका चिन्तन करते हैं और फिर | प्रा करता है । नाना प्रकारके यज्ञोंसे मनुष्य जो

सोकर उठनेके बाद श्रीकृष्णका स्मरण करते है, | फल प्राप्त करता है, वह जितेन्द्रिय पुरुषको वहाँ

वे शरीर त्यागनेके बाद श्रौकृष्णमें ही प्रवेश करते | प्रतिदिन मिला करता है । जो पुरुषोत्तमक्षेत्रमें

है- ठीक वैसे हो जैसे मन्त्रोच्चारणपूर्वक होम | कल्पवृक्ष (अक्षयवट )-के पास जाकर शरीरत्याग

किया हुआ हविष्य अग्निमे लीन हो जाता है ।* | करते हैं, वे निःसंदेह मुक्त हो जाते ह । जो मानव

अतः मुनिवरो! मोक्षकी इच्छा रखनेवाले पुरुषोंको | बिना इच्छाके भी वहाँ प्राणत्याग करता है, वह

पुरुषोत्तमक्षेत्रमें सदा यत्पर्वक कमलनयन श्रीकृष्णका | भी दुःखसे मुक्त हो दुर्लभ मोक्ष प्राप्त कर लेता है ।

दर्शन करना चाहिये। जो मनीषी पुरुष शयन और | कृमि, कौट, पतङ्ग आदि तथा पशु-पक्षियोंकी

जागरणकालमें श्रीकृष्ण, बलभद्र तथा सुभद्राका | योनिमें पड़े हुए जीव भी बहाँ देहत्याग करनेपर

दर्शन करते हैं, वे श्रीहरिके धाममें जाते ह । जो | परमगतिको प्राप्त करते है । जो मनुष्य एक नार भी

हर समय भक्तिपूर्वक पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण, रोहिणीनन्दन श्रद्धापूर्वक भगवान्‌ पुरुषोत्तमका दर्शन कर लेता

बलभद्र और सुभद्रादेवोका दर्शन करते हैं, वे है, वह सहस्रो पुरुषोंमें उत्तम है। भगवान्‌

भगवान्‌ विष्णुके लोकमें जाते हैं। जो वषकि चार | प्रकृतिसे परे और पुरुषसे भी उत्तम हैं। इसलिये

महीनोंमें पुरुषोत्तमक्षेत्रक भीतर निवास करते हैं, | वे वेद, पुराण तथा इस लोकमें पुरुषोत्तम कहलाते

उन्हें सारी पृथ्वीको तीर्थयात्रासे भी अधिक फल | हैं। जो पुराण और वेदान्तमें परमात्मा कहे गये हैं,

प्राप्त होता है। जो इन्द्रियोंको जीतकर और क्रोधको | वे ही सम्पूर्ण जगत्‌का उपकार करनेके लिये उस

वशीभूत करके सदा पुरुषोत्तमक्षेत्रमें ही निवास | तरम पुरुषोतमरूपसे विराजमान हैं।| पुरुषोत्तमक्षेत्रके

करते हैं, वे तपस्याका फल पाते हैं। मनुष्य अन्य | भीतर मार्गमे, श्मशानभूमिमें, घरके मण्डपमें,

तीर्थोमिं दस हजारं वर्षोतक तपस्या करके जो फल | सड़कों और गलियोंमें--जहाँ कहीं इच्छा या

* कृष्णे रताः कृष्णमनुस्मरन्ति रात्रौ च कृष्णं पुनरुत्थिता ये।

ते भिन्नदेहाः प्रविशन्ति कृष्णं हविर्यथा मन्त्रहुतं हुताशमु॥ (१७७। ५)

† प्रकृतैः स॒ परो यस्मात्‌ पुरुषादपि चोत्तम:। तस्माद्‌ वेदे पुराणे च लोकेऽस्मिन्‌ पुरुषोत्तम:॥

योऽसौ पुराणे वेदान्ते परमात्मेत्युदाहतः। आस्ते विश्वोपकाराय प्रदेशे पुरुषोत्तमः॥

, (१७७। २२-२३)

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