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* पुराणं परमं पुण्यं भविष्यं सर्यसौख्यदम्‌ «

[ संक्षिप्त भविष्यपुराणाङ्क

तकाल किटि कक क # है है # ###कक+क# # € 6. ॥ ततत 9

भगवान्‌ सत्यनारायणकी पूजा करूँगा' पर कह इस बालको

भूल ही गया। उसने पूजा नहीं की।

कुछ दिनोकि बाद वह अपने जामाताके साथ व्यापारके

निमित्त सुदूर नर्मदाके दक्षिण तटपर गया और वहाँ व्यापारनिरत

होकर बहुत दिरनोतक ठहरा रहा । पर वहाँ भी उसने सत्यदेवकी

किसी प्रकार भी उपासना नहीं की और परिणामस्वरूप

भगवानके प्रकोपका भाजन बनकर वह अनेक संकटोंसे ग्रस्त

हो गया। एक समय कुछ चोरोंने एक निस्तब्ध रात्रिमें वहाँके

राजमहलसे बहुत-सा द्रव्य तथा मोतीकी मालाको चुग लिया ।

जाने चोरीकी बात ज्ञात होनेपर अपने राजपुरुषोंकों बुलाकर

बहुत फटकारा और कहो कि “यदि तुमलोगोने चोका पता

लगाकर साय धन यहाँ दो दिनोंमें उपस्थित नहीं किया तो

तुम्हारी असावधानीके लिये तुम्हें मृत्यु-दण्ड दिया जायगा ।'

इसपर राजपुरुषोनि सर्वत्र व्यापक छान-बीन की, परंतु बहुत

अयल करनेपर भी वे उन चोणेंका पता नहीं लगा सके । फिर वै

सभी एकत्रित होकर विचार करने लगे--'अहो ! बड़े कष्टकी

बात है, चोर तो मिला नहीं, धन भी नहीं मिला, अब गजा

हमलोगोंको परिवारके साथ मार डालेगा। मरनेपर भी हमें

ग्रेत-योनि प्राप्त होगी । इसलिये अब तो यही श्रेयस्कर है कि

“हमलोग पवित्र नर्मदा नदीमें डूबकर मर जायै । क्योकि नर्मदाके

प्रभावसे हमें शिवलोककी प्राप्ति होगी।' वे सभी राजपुरुष

आपसमें ऐसा निश्चयकर नर्मदा नदीके तटपर गये । वहाँ उन्होंने

उस साधु वणिक्को देखा ओर उसके कष्टमे मोतीकी माला

भी देखी । उन्होंने उस साधु वणिक्‌को ही चोर समझ लिया

और वे सभी प्रसन्न होकर उन दोनों (साधु वणिक्‌ और उसके

जामाता) को धनसहित पकड़कर राजाके पास ले आये ।

भगवान्‌ सत्यनारायण भी पूजा करनेमें असत्यका आश्रय

लेनेके करण वणिकूके प्रतिकूल हो गये थे। इसी कारण

राजाने भी विचार किये बिना ही अपने सेवकॉको आदेश दिया

कि इनकी सारी सम्पत्ति जन्त कर खजानेमें जमा कर दो ओर

इन्हें हथकड़ी लगाकर जेलमें डाल दो। सेवकोनि राजाज्ञाका

पालन किया । वणिक्की यातरोंपर किसीने कुछ भी ध्यान नहीं

दिया। अपने जामाताके साथ वह वणिक्‌ अत्यन्त दुःखित

हुआ और विलाप करने लगा-- हा पुत्र ! मे धन अब कहाँ

चला गया, मेरी पुत्री और पत्नी कहाँ हैं? विधाताकी

प्रतिकूलता तो देखो । हम दुःख-सागरमें निमग्न हो गये। अब

इस संकटसे हमें कौन पार करेगा ? मैंने धर्म एवं भगवानके

विरुद्ध आचरण किया । यह उन्हीं कर्मक प्रभाव है।' इस

प्रकार विलाप करते हुए वे ससुर और जामाता कई दिनॉतक

जेलमें भीषण संतापका अनुभव करते रहे। (अध्याय २८)

( स्त्यनारायण-म्रत-कथाका पञ्चम अध्याय ]

"र मन

सत्य-धर्मके आश्रयसे सबका उद्धार

(लीलावती एवं कलावतीकी कथा)

सूतजीने कहा--ऋषियों ! आध्यात्मिक, आधिदैविक

तथा आधिभौतिक--इन तीनों तापोंकों हरण करनेवाले

भगवान्‌ विष्णुके मङ्गलमय चरित्रको जो सुनते हैं, वे सदा

हरिके धाममें निवास करते है, किंतु जो भगवान्का आश्रय

नहीं प्रहरण करते--उन्हें विस्मृत कर देते हैं, उन्हें कष्टमय

नरक प्राप्त होता है। भगवान्‌ विष्णुकी पत्नीका नाम कमला

(लक्ष्मी) है। इनके चार पुत्र हैं--धर्म, यज्ञ, राजा और चोर ।

ये सभी लक्ष्मी-प्रिय हैं अर्थात्‌ ये लक्ष्मीकी इच्छा करते हैं।

ब्राह्मणों और अतिथियोंकों जो दान दिया जाता है, वह धर्म

कहा जाता है, उसके लिये धनकी आवश्यकता है। स्वाहा

और स्वधाके द्वारा जो देवयज्ञ और पितृयज्ञ किया जाता है, वह

यज्ञ कहा जाता है, उसमें भी धनकी अपेक्षा होती है।

धर्म और यज्ञकी रक्षा करनेवाला राजा कहलाता है, इसलिये

राजाकों भी लक्ष्मी--धनकी अपेक्षा रहती है। घर्म और

यज्ञको नष्ट करनेवाला चोर कहलाता है, वह भी धनकी

इच्छासे चोरी करता है। इसलिये ये चारों किसी-न-किसी

रूपमे लक्ष्मीके किकर हैं। परंतु जहाँ सत्य रहता है, वहीँ घर्म

रहता है और वहीं लक्ष्मी भी स्थिर-रूपमें रहती हैं।

यह कणिक सत्य-धर्मसे च्युत हयो गया था (उसने

सत्यनारायणका त्रत न कर प्रतिज्ञा-भंग की थी) इसीलिये

सने उस वणिक्‌के घरसे भी सारा धन हरण करवा लिया

और घरमे चोरी भी हो गयी । बेचारी उसकी पत्नी लीलावती

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